आंध्र प्रदेश के इस प्रगतिशील किसान ने अश्वगंधा की खेती से 200 किसानों की बदली जिंदगी

66 वर्षीय प्रगतिशील किसान जीवी कोंडैयाह आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले के गुंटकल तहसील के जी. कोट्टला गांव में अश्वगंधा की खेती से कीर्तिमान रच रहे हैं।

Update: 2019-07-29 07:24 GMT

अनंतपुर (आंध्रप्रदेश)। खेती-बाड़ी में आने वाले तमाम अवरोधों के बावजूद भी हमारे देश के किसानों ने मुश्किलों पर जीत हासिल करते हुए कामयाबी की कहानियां लिखी हैं। ऐसी ही एक सफलता की कहानी 66 वर्षीय प्रगतिशील किसान जीवी कोंडैयाह ने लिखी है, जो आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले के गुंटकल तहसील के जी. कोट्टला गांव में अश्वगंधा की खेती से कीर्तिमान रच रहे हैं।

उन्होंने अश्वगंधा की खेती में ना सिर्फ सफलता पाई है बल्कि 200 से अधिक किसानों को अश्वगंधा की खेती से जोड़ा है। आंध्रप्रदेश के अनंतपुर और कुर्नूल जिलों में मुख्य तौर से अश्वगंधा की खेती की जा रही है। अनंतपुर और कुर्नूल जिले रायलसीमा क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं और इनका मुख्यालय अनंतपुर में है। अनंतपुर में अर्द्ध शुष्क जलवायु है, जिसमें अधिकांश वर्ष के लिए गर्म और सूखी स्थितियां होती हैं।

यहां मानसून सितंबर में आता है और नवंबर की शुरुआत तक लगभग 250 मिमी वर्षा तक ही रहता है। अनंतपुर जनपद में कुल वार्षिक वर्षा लगभग 520-600 मिमी होती है, लेकिन कुर्नूल जिले में औसत वार्षिक वर्षा लगभग 700-750 मिलीमीटर तक होती है।

प्रगतिशील किसान जीवी कोंडैयाह कभी मूंगफली जैसी फसलों की परंपरागत खेती करते थे, लेकिन आज अश्वगंधा की खेती करते हुए न केवल खुद मुनाफा कमा रहे हैं, बल्कि उनकी राह पर चलते हुए 200 से अधिक किसान भाइयों ने भी अश्वगंधा की खेती करना शुरू किया है।


कोंडैयाह ने लगभग 60 से ज्यादा गरीब महिलाओं को बीज निकालने, अश्वगंधा की जड़ों को साफ करने, पैकिंग करने जैसे रोजगार से जोड़कर गांव ही में उन्हें आर्थिक संबल देने की एक मिसाल क़ायम की है। इतना ही नहीं, कोंडैयाह ने 'किसान अश्वगंधा आयुर्वेदिक औषधि फसल विकास समाज' नामक अपनी एक संस्था भी बना ली है, जिससे किसानों को हरसंभव मदद मिलती है।

बातचीत के दौरान कौंडेयाह बताते हैं, "हम लोग इस इलाके में पहले मूंगफली की खेती करते थे, लेकिन अच्छी बारिश न होने के कारण हमको उसकी अच्छी उपज नहीं मिल पा रही थी। फिर हमें ‛सीमैप' शोध संस्थान, हैदराबाद द्वारा अश्वगंधा की फसल के बारे में जानकारी दी गई। इसी के साथ हमने एक छोटे से क्षेत्र में अश्वगंधा की खेती करना शुरू किया, जिससे हमें अच्छा मुनाफा भी मिला।"

"आज आसपास के कई किसान हमारे साथ मिलकर अश्वगंधा की खेती करते हुए अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं क्योंकि यह फसल हमारे क्षेत्र की जलवायु के अनुसार सटीक साबित हुई है। इस फसल को अधिक पानी की जरूरत नहीं पड़ती, जिससे हम लोगों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ है।", कौंडेयाह आगे बताते हैं।

आज अश्वगंधा की खेती दक्षिण भारत, आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले में लगभग 10,000 एकड़ में की जा रही है। अनंतपुर और कुर्नूल जिले के किसान अपना अश्वगंधा मध्यप्रदेश के नीमच में बेचने आते हैं।


बता दें कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में अश्वगंधा की जड़ों की बहुत मांग रहती है क्योंकि इसकी जड़ों के पाउडर का प्रयोग खांसी और अस्थमा को दूर करने के लिए भी किया जाता है। नपुंसकता में पौधे की जड़ों का एक चम्मच पाउडर दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करने से भी लाभ मिलता है। अश्वगंधा के पौधे की जड़ें शक्तिवर्धक, शुक्राणुवर्धक एंव पौष्टिक होती हैं, साथ ही शरीर को शक्ति प्रदान कर बलवान भी बनाती हैं।

कोंडैयाह बताते हैं, "अश्वगंधा को हम सभी किसान मिलकर मध्यप्रदेश के नीमच जिले की मंडी में बेचने जाते हैं, जहां इसकी सुखी जड़ों को खरीदा जाता है। हम किसानों को इन सुखी जड़ों के दाम 250 से 300 रूपये प्रति किलो तक मिल जाते हैं।"

क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक?

हैदराबाद के सीमैप शोध केंद्र कृषि वैज्ञानिक डा. ज्ञानेश एसी बताते हैं, "आंध्रप्रदेश के कुछ जिलों में मूंगफली फसल को बदलने के लिए वैकल्पिक फसलों की खोज के दौरान जीवी कोंडैयाह को सीएसआईआर, सीमैप शोध संस्थान, हैदराबाद द्वारा अश्वगंधा का बीज नि:शुल्क उपलब्ध करवाया गया। संस्थान द्वारा उपलब्ध करवाई जानकारी के आधार पर कोंडैयाह ने कुछ किसानों के साथ मिल कर इसकी वैज्ञानिक विधि के तहत एक छोटे से क्षेत्र में खेती शुरू की, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति में वृद्धि हुई।" 

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