गांव कनेक्शन सर्वे: किसानों ने कहा- मेहनत मेरी, फसल मेरी, तो कीमत तय करने का अधिकार भी मेरा हो

गांव कनेक्शन सर्वे की रिपोर्ट में यह सामने आया कि फसल खरीद की जो भी प्रक्रिया अभी चल रही है किसान उससे नाराज हैं। अभी 23 फसलों की कीमत सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से तय करती है। लेकिन किसान इस प्रक्रिया से संतुष्ट नहीं हैं।

Update: 2019-06-28 06:45 GMT
गांव कनेक्शन के सर्वे में किसानों ने रखी अपना बात।

लखनऊ। देश के किसान चाहते हैं कि उनकी फसल की कीमत कोई दूसरा नहीं बल्कि वे खुद तय करें। गांव कनेक्शन के सर्वे में 60 फीसदी से ज्यादा किसानों ने कहा कि फसल की कीमत उनके माध्यम से ही तय होनी चाहिए।

देश के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया प्लेटफॉर्म गांव कनेक्शन ने देश के 19 राज्यों में ग्रामीण भारत की मन की बात जानने के लिए सर्वे किया। इस सर्वे में 18,267 लोगों ने हिस्सा लिया।

सर्वे की रिपोर्ट में यह सामने आया कि फसल खरीद की जो भी प्रक्रिया अभी चल रही है, किसान उससे नाराज हैं। अभी 23 फसलों की कीमत सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से तय करती है। लेकिन किसान इससे संतुष्ट नहीं हैं।

गांव कनेक्शन के सर्वे में 62.2 फीसदी किसान ने कहा कि वे चाहते हैं कि उनकी फसल की कीमत पर उनका अधिकार होना चाहिए, इसे तय करने का अधिकार उनके पास हो।

किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था लागू की गयी है। अगर फसलों की कीमत गिर जाती है, तब भी सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल खरीदती है, इसीलिए ये व्यवस्था लागू की गयी है। इसके जरिये सरकार उनका नुकसान कम करने की कोशिश करती है। 

आर्थिक सहयोग विकास संगठन और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (OECD-ICAIR) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2000 से 2017 के बीच किसानों को उत्पाद का सही मूल्य न मिल पाने के कारण 45 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।


बिहार के मुजफ्फरपुर के औराई प्रखंड के किसान 60 वर्षीय किसान विष्णु साहनी कहते हैं " किसान-पसीना बहाकर अन्न पैदा करता है। लेकिन ज्यादातर बार ऐसा होता है कि उसे उसकी उपज की कुल कीमत नहीं मिल पाती, सरकार दे नहीं पाती।"

वे आगे कहते हैं " जो कीमत मिलती भी है वो या तो कम रहती है या बहुत देर से मिलती है। ऐसे में हमारे पास कम से इतना अधिकार तो होना ही चाहिए कि हम अपनी उपज की कीमत तय कर सकें।"

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बिहार के कैमूर जिले के रहने वाले युवा किसान मुकेश कुमार सिंह भी यही बात दुहराते हैं। वे कहते हैं "जब पैदा हम करते हैं तो कीमत तय करने का अधिकार भी मेरे पास ही होना चाहिए। मेरी उपज में कितना खर्च लगता है यह तो मुझे ही मालुम होगा न।"

पिछले कई सालों से टमाटर, प्याज का सड़कों पर फेंके जाने की खबरें आती रहती हैं। पिछले वर्ष यानि 2018 में ही महाराष्ट्र का एक किसान कम कीमतों से इतना नाराज हुआ कि उसने फसल के बदले मिली रकम को पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) को भेज दिया।

महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के रहने वाले अरुण इंगले (56) 2018 में नौ सितंबर को लगभग एक कुंतल ताजा टमाटर मंडी लेकर पहुंचते हैं। लेकिन जब उन्हें पता चला कि टमाटर की कीमत 100 रुपए प्रति कुंतल तक पहुंच गई है तो बहुत निराश होती है।


गाँव कनेक्शन से फोन पर बातचीत में अरुण ने बताया था, "मंडी तक टमाटर ले जाने के लिए मैंने छोटा हाथी बुक किया था। जिसने मुझसे 200 रुपए किराया ले लिया। टमाटर फेंकने की मेरी हिम्मत नहीं हुई, मेरी मेहनत लगी थी उसमें। इसलिए मैंने उसे गाँव में बांटना ही बेहतर समझा।"

अरुण के अनुसार उन्हें 100 किलो टमाटर के बदले 100 रुपए मिला। दो सौ रुपए ऑटो का खर्च। मतलब 100 रुपए का नुकसान तो तुरंत हुआ, बाकी निराई, सिंचाई और मेहनत को छोड़ दीजिए। ये बात लगभग 8 महीने पुरानी है।

इस पर अरुण गांव कनेक्शन से अब कहते हैं " ये जो मैंने आपको कीमत और खर्च का ब्योरा दिया, ये तो बस मैं ही बता सकता हूं। ये सरकार को क्से पता होगा। बहुत ज्यादा मुनाफा भले न मिले लेकिन अपनी कीमत तय करने का अधिकार तो हमारे पास ही होना चाहिए।"

एक शोध के अनुसार यह पाया गया है कि केवल 9.14% किसान अपनी फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में जानते हैं जबकि 6% किसान अपनी फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य ले पाते हैं।

200 से ज्यादा किसान संगठनों की समिति किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वीएम सिंह कहते हैं, "संसद को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाना चाहिए, ताकि तय रेट से कोई कारोबारी किसान की फसल खरीद न सके, और खरीदे तो उसे जेल हो, साथ ही किसानों को फसल बुवाई से पहले बताया जाए कि उनकी फसल किस दर पर बिकेगी।"

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