Economic Survey 2019: मनरेगा के आंकड़ों से बनाई जाए गांवों में कार्य योजना

आर्थिक सर्वे के अनुसार परिवारों को उस समय तत्काल सहायता उपलब्ध कराने की जरूरत होती है जब आर्थिक झटके की वजह से उनका उपभोग खर्च घट जाता है।

Update: 2019-07-04 13:54 GMT

लखनऊ। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के आंकड़ों के जरिये ग्रामीण क्षेत्रों में किसी भी दबाव के बारे में जानकारी देने वाला संकेतक तैयार किया जा सकता है। संसद में बृहस्पतिवार को पेश आर्थिक सर्वे 2019 में यह सुझाव दिया गया है।

सर्वे कहता है कि मनरेगा के तहत समय पर मजदूरी के भुगतान से काम की मांग बढ़ सकती है। अब इस योजना के तहत कार्य की परिभाषा के विविधीकरण की जरूरत है। समीक्षा में कहा गया है कि मनरेगा के लिए काम के लिए मांग के जरिये जिल-पंचायत स्तर पर दबाव के बारे में तत्काल आधार पर पता लगाया जा सकता है।

सर्वे यह भी कहता है कि मौजूदा डेटा सेट के जरिये जिला या पंचायत स्तर पर किसी दबाव का तत्काल आधार पर पता लगाना मुश्किल है। रोजगार से संबंधित राष्ट्रीय नमूना सर्वे (एनएसएस) सर्वे पांच-छह साल में एक बार कराया जाता है। वहीं परिवार के स्तर पर आंकड़े सर्वे की तरीख से दो साल बाद जारी किया जाता है।

आर्थिक सर्वे के अनुसार परिवारों को उस समय तत्काल सहायता उपलब्ध कराने की जरूरत होती है जब आर्थिक झटके की वजह से उनका उपभोग खर्च घट जाता है। सर्वे कहती है कि मनरेगा के तहत कार्य की सूचना का इस्तेमाल कर और उसे अन्य मौसम जैसे कारकों से जोड़कर एक डैश बोर्ड बनाया जा सकता है जो दबाव वाले क्षेत्रों के बारे में अलर्ट जारी करे। इससे नीति निर्माता समयबद्ध तरीके से कदम उठाकर इस तरह के दबाव को दूर करने का प्रयास कर सकते हैं।  

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