कश्मीर अब हमें महसूस होगा देश का अभिन्न अंग

Update: 2019-08-06 07:35 GMT

'कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत' एक कवि अटल जी की कल्पना है। कश्मीरियत तो पंडितों को बेइज्जत करके बाहर निकालते ही चली गई थी अब कश्मीर बचाने की चुनौती है और मोदी सरकार वही कर रही है।

आर्टिकल 370 को मोदी सरकार ने अलविदा कह दिया इसलिए देशवासियों को अब महसूस होगा कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है। सोचिए वल्लभ भाई पटेल ने जिस कश्मीर का भारत में बिना शर्त विलय कराया था, मद्रास, बंगाल, केरल के सैनिक जिस कश्मीर की रक्षा में अपनी जान की बाजी लगा रहे थे, उसी कश्मीर में वे दो गज जमीन नहीं खरीद सकते थे।

जिस कश्मीर में पीढ़ियों से बसे कश्मीरी पंडित अपनी जान और अपनी बहन बेटियों की इज्जत बचाकर भागे और यतीम हो गए, जहां वैष्णो देवी और अमरनाथ की यात्रा पर जाने वाले भारतीय श्रद्धालु डरे सहमे जाते थे, जिस कश्मीर की लड़की गैर कश्मीरी भारतीय लड़के से शादी करके अपनी पैतृक सम्पत्ति में अपना हक खो देती थी, जिस कश्मीर की रक्षा के लिए भारतीयों ने हजारों जानें कुर्बान कीं और अरबों रुपया सब्सिडी पर खर्च किया, उसके विलय को ही अधर में लिटा दिया गया था।

इसकी आवश्यकता ही न पड़ती यदि पटेल के रास्ते से चले होते। ध्यान रहे प्रजातंत्र में तो धरती का स्वामित्व प्रजा का होता है, लेकिन राजतंत्र में राजा ही धरती का स्वामी होता है। जब कर्ण सिंह के पिता राजा हरि सिंह ने अपनी रियासत को बिना शर्त भारत में मिलाया तो उन्होंने अपना स्वामित्व भारत को सौंप दिया था। कठिनाई इसलिए पैदा हुई कि शेख अब्दुल्ला कश्मीर को स्वतंत्र देश बनाना चाहते थे, इसलिए आर्टिकल 370 के माध्यम से नेहरू की मदद से कश्मीर को त्रिशंकु बना दिया।

मोदी सरकार का यह कदम डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि है जिन्होंने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। उसके बाद ही देश से दो प्रधान, दो निशान और दो विधान का अन्त हुआ था। आर्टिकल 370 न तो विलय की शर्त थी और न संविधान का अंग थी। विलय हुआ 1947 में और आर्टिकल 370 आई 1954 में शेख अब्दुल्ला और नेहरू के कारण, संविधान बनकर लागू हो चुका था 1950 में, इस धारा से चार साल पहले।

किसी भी रियासत के विलय की कोई शर्त नहीं मानी थी पटेल ने इसलिए कश्मीर को स्पेशल स्टेट्स या इसके निमित्त किसी धारा की आवश्यकता नहीं थी। तथाकथित सेकुलरवादियों द्वारा विलाप करने की आवश्यकता नहीं है। राज्यसभा में मोदी सरकार का बहुमत तक नहीं है, वहीं विपक्ष से दूने मत मिले कश्मीर पुनर्गठन के पक्ष में। आर्टिकल 370 कहां गई पता ही नहीं चला।

जम्मू-कश्मीर प्रान्त का पुनर्गठन महत्वपूर्ण है जिसके अनुसार अब एक की जगह दो केन्द्र शासित प्रदेश बन गए हैं। प्रशासनिक दृष्टि से अधिक सार्थक होता यदि तीनों क्षेत्रों को अलग-अलग इकाई बनाया गया होता। तीनों क्षेत्र भाषा, धर्म, परिस्थितियों और भौगोलिक दृष्टि से परस्पर भिन्न हैं। लेकिन शायद डर रहा होगा कश्मीर घाटी को अलग प्रान्त बनाना और संभालना कठिन होता। बिल भारी बहुमत से लोकसभा में पास हो गया है और महामहिम ने हस्ताक्षर भी कर दिए हैं। मोदी सरकार का एक बड़ा वादा पूरा हो गया है। लद्दाख का विकास अब अवरु़द्ध नहीं होगा।

कुछ लोगों के मन में आता होगा इतना भारी भरकम इन्तजाम, सेनाओं का जमावड़ा, संचार सेवाएं रोकने, अमरनाथ यात्रा रोकने और जनता को कष्ट पहुंचाने की क्या जरूरत थी। मोदी सरकार हर स्थिति के लिए तैयार है, पता नहीं पाकिस्तान खुराफात करने की नादानी कर बैठे, कश्मीर में बैठे अराजक तत्व विध्वंसक हो जाएं अथवा चीन कोई चाल चल दे। मोदी सरकार किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं।

महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला ने जो कुछ कहा और किया वह सरकार के खिलाफ बगावत से कम नहीं था इसलिए पहले नजरबंद किया, फिर हिरासत में ले लिया। भारत को बेहद दु:खी किया था उमर अब्दुल्ला के दादा और फ़ारूख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला ने। खूंखार आतंकवादियों को छोड़ा था महबूबा मुफ्ती के पिता मुफ्ती मुहम्मद सईद ने अपनी बैटी रूबिया को छुड़ाने के लिए।

यह भी पढ़ें- आर्टिकल 370, 35 A हटने और केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद जम्मू कश्मीर में क्या-क्या बदलेगा?
यह भी पढ़ें- जानिए अनुच्छेद 370 हटाए जाने के फैसले पर कश्मीरी पंडितों ने क्या कहा


Similar News