लखनऊ। भारत में रोजाना 400 लोगों की मौत सड़क हादसों में होती है। इनमें से सबसे ज्यादा 49 लोगों की जान उत्तर प्रदेश में जाती है। ये आंकड़ें आपराधिक घटनाओं में होने वाली मौतों से दोगुने हैं।
यातायात निदेशालय उत्तर प्रदेश का लगातार पांच वर्षों का आंकड़ा यह हकीकत बयां कर रहा है। अपराध को लेकर हर कोई पुलिस विभाग पर उंगली उठाता है लेकिन हादसों में मरने पर जिम्मेदारी किसकी है? अपराध को रोकने की जिम्मेदारी पुलिस पर है लेकिन हादसों के लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।
यातायात निदेशालय के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में वर्ष 2009 में आपराधिक घटनाओं से 7184 लोग मारे गये जबकि सड़क हादसों में 14638 लोग जान गंवा बैठे।
वर्ष 2010 में आपराधिक घटनाओं से 8478 लोग, जबकि हादसों में 15175, वर्ष 2011 में आपराधिक घटनाओं से 8478 जबकि हादसों में 21512 लोग, वर्ष 2012 में आपराधिक घटनाओं से 8447 लोग जबकि हादसों में 16149, वर्ष 2013 में आपराधिक घटनाओं से 9234 लोग जबकि सड़क हादसों में 16004 लोग अपनी जान गंवा बैठे। वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेश में कुल 32385 सड़क दुर्घटनाएं हुई।
इस सड़क दुर्घटनाओं में कुल 17666 व्यक्तियों की अकाल मृत्यु हुई, जिसमें 67 प्रतिशत पुरुष एवं 33 प्रतिशत महिला सड़क दुर्घटना में शिकार हुए। प्रदेश में हुई सड़क दुर्घटनाओं में कुल 23205 व्यक्ति इस दुर्घटना में गम्भीर रूप से घायल हुए जिसमें 72 प्रतिशत पुरुष एवं 28 प्रतिशत महिला है।
आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में औसतन प्रत्येक 16 मिनट में एक सड़क दुर्घटना होती है।विगत पांच वर्षो में प्रदेश में हुई सड़क दुर्घटनाओं तथा अपराध के आंकड़ों के विश्लेषण से ये पाया गया है कि उत्तर प्रदेश में सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतों की संख्या, अपराधों में हुई मृत्युओं की संख्या से दोगुने से भी काफी ज्यादा है।
एनसीआरबी के मुताबिक भारत में 2014 में साढ़े चार लाख से ज्यादा दुर्घटनाएं हुईं जिनमें एक लाख 41 हजार से ज्यादा लोग मारे गए। इनमें से एक तिहाई की मौत उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हुई। सवा लाख से अधिक लोगों ने जीने में कोई लाभ नहीं देखा और परेशानी में अपनी जान खुद ले ली, जिनमें किसान और महिलाएं सबसे ऊपर रहे। पिछले दस साल की अवधि में सड़क हादसों में होने वाली मौतों में साढ़े 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि इसी अवधि में आबादी में सिर्फ साढ़े 14 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।
अपर पुलिस अधिक्षक यातायात हबीबुल हसन ने बताया कि नियम तोड़ने पर अधिकतर सड़क हादसे होते हैं। नियम तोड़ने में शिक्षित लोगों की संख्या ज्यादा होती है। नियमों का पालन हो और अभिभावक अपने बच्चों के ऊपर निगरानी रखें तो हादसों में कमी हो सकती है।
सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं दोपहिया वाहनों से
प्रदेश में वर्ष 2015 में विभिन्न प्रकार के वाहनों से घटित सड़क दुर्घटनाओं में से 23 प्रतिशत सड़क दुर्घटनाएं दो पहिया वाहन तथा 21 प्रतिशत सड़क दुर्घटनायें चार पहिया वाहनों से घटित हुईं। वर्ष 2009 से 2013 तक घटित सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों के आधार पर सर्वाधिक सड़क दुर्घटनायें मोटर साइकिल व ट्रक के द्वारा घटित हुईं। वाहनों की फिटनेस बन रही बड़ी समस्या
वाहनों की फिटनेस बन रही बड़ी समस्या
वर्ष 2015 में प्रदेश में हुई सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पाया गया कि सड़क दुर्घटनाओं के प्रकरण में 38 प्रतिशत वाहन ऐसे है जो आठ या उससे अधिक वर्ष पुराने है। वाहन की आयु बढ़ने से उनके द्वारा हो रही दुर्घटनाओं में वृद्धि होती है। इसका मुख्य कारण पुराने वाहनों का उचित रख-रखाव तथा नियमित देखभाल न होना है। प्रदेश में आठ वर्ष से नीचे 14 प्रतिशत, छह वर्ष से नीचे 14 प्रतिशत, चार वर्ष से नीचे 14 प्रतिशत, दो वर्ष से नीचे 13 प्रतिशत जबकि एक वर्ष के वाहनों की संख्या सात प्रतिशत है।
राष्ट्रीय राजमार्ग पर सबसे ज्यादा दुर्घटना
घातक दुर्घटनाएं सर्वाधिक राष्ट्रीय राजमार्गों पर हुई हैं जबकि गम्भीर रूप से घायल लोगों की संख्या अन्य सड़कों पर अधिक रही। वर्ष 2009 से 2013 तक उत्तर प्रदेश में हुई सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों के अनुसार प्रान्तीय राजमार्गों की अपेक्षा राष्ट्रीय सड़कों पर 1.5 गुना अधिक घातक दुर्घटना घटित हुई हैं।
युवा वर्ग सबसे ज्यादा हो रहा मौत का शिकार
वर्ष 2015 में प्रदेश में हुई सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पाया गया कि सड़क दुर्घटनाओं के प्रकरण में 53 प्रतिशत वाहन चालक जो 18 से 34 आयु वर्ग के हैं, हादसों के शिकार हो हुए। तेज रफ्तार, यातायात नियमों की अनदेखी और हेलमेट न लगाना बड़ी वजह है।
रिपोर्टर - गणेश जी वर्मा