इस बार हर्बल होली जलाएं और सेहत बनाएं

Update: 2018-02-27 14:17 GMT
होलिका दहन के दौरान बड़ी मात्रा में कर्पूर डाला जाता है

होलिका दहन हिंदुओं का पारंपरिक त्यौहार है और इस त्यौहार का जिक्र वेद पुराणों तक में हैं। होलिका दहन की प्रक्रिया को लेकर बीते दो दशकों में काफी बदलाव आए हैं। पर्यावरण चिंतकों से लेकर डॉक्टर्स तक अब होलिका दहन के नाम पर लकड़ियों को जलाए जाने का विरोध करते दिखायी देते हैं। सच बात ये भी है कि इन दो दशकों में होलिका दहन का स्वरूप काफी बदल गया है। लोग हुड़दंग करने लगे हैं, बहुत ज्यादा मात्रा में लकड़ियों को जलाया जाने लगा है लेकिन पुराने दौर में होलिका का आकार छोटा होता था और इसमें कई तरह की वनस्पतियां भी सम्मिलित होती थीं। हमारे पाठकों को हम बताने जा रहे हैं होलिका दहन के सकारात्मक पहलुओं के बारे में क्योंकि हमारे तीज त्यौहारों को वैदिक काल से ही हर मायने में महत्वपूर्ण माना गया है। आइए हम भी जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर किन वजहों से होलिका दहन को स्वास्थ्य और पर्यावरण की दृष्टि से बेहतर माना जाता रहा है और क्या कहता है आधुनिक विज्ञान इस बारे में।

होलिका दहन त्यौहार शीत काल की विदाई और गर्मियों की शुरुआत का संकेत होता है और आयुर्वेद के अनुसार ये वह समय है जब ठंड से शरीर में जमा कफ पिघलने लगता है और कफ से जुड़े विकारों का आगमन तय सा हो जाता है। होलिका दहन के दौरान बड़ी मात्रा में कर्पूर डाला जाता है। कर्पूर का धुआं एंटिमाइक्रोबियल प्रभाव वाला होता है।

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नेशनल काउंसिल ऑफ साइंस म्युजियम, भारत सरकार के अनुसार होलिका दहन के दौरान इसकी प्रदक्षिणा/ परिक्रमा की जाती है यानी इसके चारो तरफ चक्कर लगाए जाते हैं। होलिका दहन के समय तापमान 60 से 70 डिग्री के आसपास होता है, इतने तापमान की वजह से हमारे शरीर से अनेक सूक्ष्मजीवों का सफाया हो जाता है। यानी शरीर को बाहरी और आंतरिक तौर से डेटॉक्स करने का ये भी एक नायाब तरीका हो सकता है जिसे वैदिक काल से अपनाया जाता आ रहा है।

होलिका दहन के दौरान इसकी परिक्रमा करने से सायनस के रोगियों को भी काफी आराम मिलता है क्योंकि अधिक तापमान की वजह से बलगम ढ़ीला पड़ जाता है और खांसी के साथ बाहर निकल आता है।

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कई ग्रामीण इलाकों में होलिका दहन के लिए लकड़ियों के साथ कर्पूर के अलावा, चिरायता, कुटकी और लोबान भी रखा जाता है। इनसे निकला धुआं भी सेहत के लिए लाभदायक होता है।

60 से 70 डिग्री के तापमान पर हवा में उपस्थित कई तरह के घातक सूक्ष्मजीव भी नष्ट हो जाते हैं, और तो और होलिका दहन के लिए इस्तमाल में लाए जाने वाली लकड़ियों और अन्य वनस्पतियों के धुएं को 10 से 15 मिनिट तक सूंघना सेहत के लिए खतरनाक भी नही होता। वैज्ञानिक सिग्सगार्ड और उनके साथियों ने ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक शोध रपट में बाकायदा बताया है कि थोड़े समय के लिए सूखी वनस्पतियों की लकड़ियों का धुआं सूंघना घातक नहीं है। हालांकि ये रपट कई वैज्ञानिक विचारकों के नज़रिये से बिल्कुल अलग है।

दक्षिण भारत में होलिका दहन के अगले दिन लोग इसकी विभूति को ललाट पर लगाते है और दो चुटकी विभूति को आम की पत्तियों के साथ लपेटकर खाते भी हैं। जानकार मानते हैं कि ऐसा बेहतर सेहत के लिए किया जाता है।

होलिका दहन से उठा धुआं घरों और आस-पास के खुले भागों तक जाता है और इस मौसम में पनप रहे कीटों, मच्छरों को दूर भगाने में मददगार भी साबित होता है। वनस्पतियों के धुंए से कीट-पतंगों और मच्छरों को भगाने संबंधित जानकारियों के कई शोध पत्र इंटरनेट पर वैसे ही मौजूद हैं।

तो बस अब देरी किस बात की..सूखी-सूखी साफ सुधरी लकड़ियों और कर्पूर, लोबान, गिलोय, नीम, तुलसी जैसे वनस्पतियों के साथ छोटी सी होलिका तैयार करें और अपने आंगन में इस प्रज्वलित करके त्यौहार भी मनाएं और सेहत भी बनाएं।

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