ट्रॉमा सेंटर केजीएमयू: अब पहले इलाज, बाद में जांच  

Update: 2018-01-14 19:23 GMT
ट्रॉमा सेंटर, किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज 

लखनऊ। किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के ट्रॉमा सेंटर में लोगों के अच्छे इलाज के लिए कुछ बदलाव किये गए हैं। इन बदलाव के बारे में ट्रॉमा सेंटर के नए इंचार्ज डॉ संदीप तिवारी ने गाँव कनेक्शन से विशेष बातचीत की।

डॉ संदीप तिवारी ने बताया, “ट्रॉमा का मतलब होता है शरीर के किसी भी हिस्से को किसी भी प्रकार से चोट पहुँच जाना। शरीर में चोट दुर्घटना की वजह से लग सकती है, उंचाई से से गिरने से लग सकती है, मारपीट में लग सकती है, पानी में डूबने से लग सकती है, चाक़ू से लग सकती है, गोली से लग सकती है, आग लगने से लग सकती है। जहाँ पर इन सभी चीजों का बेहतर इलाज हो सके उसे ट्रॉमा सेंटर कहा जाता है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में जो ट्रॉमा सेंटर है यहाँ पर आकस्मिक सेवा के साथ साथ ट्रॉमा की सुविधाएं दी जाती हैं। केवल दिल से जुड़ी समस्याओं को छोड़कर किसी भी बड़ी बीमारी से जुड़ा गंभीर व्यक्ति का ट्रॉमा में इलाज किया जाता है।”

“ट्रॉमा में कोई व्यक्ति ऐसा आता है कि उसे ऑपरेशन की तुरंत आवश्यकता है अगर उसका ऑपरेशन नहीं किया गया तो उस व्यक्ति की मौत हो सकती है ऐसे मरीज 100 में से 20 ही आते हैं। इन मरीजों में ऐसा होता है कि लगातार अंदरूनी खून रिसाव तेजी से हो रहा होता है उसे बाहर से नहीं रोका जा सकता है। इस समय हमें खून की आवश्यकता होती है इसके लिए क्रॉस स्पेसचिमेचिंग करके उन्हें खून दिया जाता है।

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ऐसी व्यवस्था में जरूरी नहीं होता है कि मरीज का खून जो है वही देना है उन्हें क्रॉस स्पेसचिमेचिंग करके खून दिया जाता है। इस सर्जरी को डैमेज कंट्रोल सर्जरी कहा जाता है। अब सरकार का ये नियम बन गया है कि बिना रक्तदान के किसी को भी खून न दिया जाये। पहले खून की दलाली बहुत ज्यादा होती थी उस पर अब रोक लग गयी है।” डॉ संदीप ने बताया।

रक्तदान की प्रक्रिया में किया जायेगा सुधार

खून के लेन-देन की प्रक्रिया में अब काफी समय कम कर दिया गया है इससे मरीजों को कोई दिक्कत नहीं होती है। जब तक व्यक्ति तक रक्त नहीं पहुँचता है तब तक खून के रिप्लेसमेंट देते रहते हैं। खून का मुख्य काम होता है कि ब्लडप्रेशर को कंट्रोल करना होता है। व्यक्ति के पास खून का इंतजाम करने के लिए जो समय लगता है उस समय हम खून के रिप्लेसमेंट से कवर कर सकते हैं। खून की लेनदेन की प्रक्रिया में और सुधार किया जायेगा।

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हर समस्या का समाधान करेंगें पीआरओ

पद लेने के तुरंत बाद हमने काफी बदलाव कर रहे हैं हमने शुरुआत के दिनों में अच्छा सफाई अभियान चलाया है जिससे पूरा परिसर स्वच्छ रहे। पब्लिक रिलेशन ऑफिसर (पीआरओ) को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि अब एक शिफ्ट में दो पीआरओ ड्यूटी पर रहेंगें। एक पीआरओ अपने ऑफिस का कार्यभार देखेगा और दूसरा पीआरओ पुरे ट्रॉमा सेंटर की पाँचों मंजिल तक का दौरा करेगा और मरीजों और तीमारदारों की की समस्यायों का समाधान करेगा।

सभी डॉक्टर को किया गया है निर्देशित

ट्रॉमा सेंटर के सभी जूनियर डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ को निर्देश दिए गए हैं कि यहाँ पर आने वाले सभी मरीजों और तीमारदारों से ठीक वैसे ही बात करें जैसे अपने घर वालों से व्यवहार करते हैं। अगर आपके घर में कोई बीमार हो जाता है तो आपकी और आपके परिजन की मानसिक स्थिति क्या होती है ठीक वैसे ही सोंचकर ही उसका इलाज करें और तीमारदार से बात करें।

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एक ही जगह पर होंगें सारे काम

आगे हम ये भी कर रहे हैं कि जो मरीजों को कई जगह पर पैसा जमा करना पड़ता है या कई जगह पर जाकर काम करवाना पड़ता है उससे मरीजों और तीमारदारों से छुटकारा दिया जाये। इसके लिए हम जगह चिन्हित कर रहे हैं कहां पर एक काउन्टर पर सभी काम हो सकें। आकस्मिक चिकित्सा के लिए और सुविधाएं बढ़ाई जाएँगी। ये भी किया जायेगा कि मरीज जो गंभीर हालत में आता है उसे तुरंत जांच के लिए न भेजा जाये उसका पहले इलाज शुरू किया जाए। हालत में सुधार हो जाने पर उसे जांच के लिए भेजा जाये।

हमारा सभी उन अस्पतालों से अनुरोध है कि हमारे पीआरओ का नम्बर ले लें और जब कभी किसी भी मरीज को अस्पताल से यहाँ भेजना हो तो एक बार उससे बेड की स्थिति को जरुर जांच लें। ऐसे ही बिना पता किये मरीज को अस्पताल भेजकर व्यक्ति की जान को जोखिम में न डालें। अस्पताल में मरीज को लेकर आने वाले सभी तीमारदारों से एक अपील है कि वो जब भी अस्पताल आयें तो थोड़ा धैर्य के साथ आयें और डॉक्टर से बहस न करें। अस्पताल परिसर में फालतू की भीड़ न बढ़ाएं क्योंकि इससे अस्पताल में संक्रमण के साथ-साथ मरीज के इलाज में भी रूकावट पैदा हो सकती है।

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