सहकारी चीनी मिल बंद होने से किसान सड़क पर

Update: 2016-03-29 05:30 GMT
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पीलीभीत। उत्तर प्रदेश की सीमा व उत्तराखंड राज्य की सीमा पर स्थित किसान सहकारी चीनी मिल मझोला उत्तराखण्ड बनने से पहले 1964 में प्रदेश की तीसरी चीनी मिल थी। इस चीनी मिल की स्थापना से इस क्षेत्र में हज़ारों किसानों ने अपने खेतों में अधिक गन्ने की फसल पैदा करना शुरू कर दिया था पर आज इस चीनी में टूटी खिड़कियों और जर्जर मशीनों के अलावा कुछ भी नहीं बचा है।

मिल के स्थापना के समय प्रदेश की मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी ने इस मिल को क्षेत्र के गन्ना किसानों की खेती को जीवनदान बताया था। लेकिन उत्तर प्रदेश चीनी मिल फैडरेशन के उच्च अधिकारियों व प्रदेश सरकार की उदासीनता के कारण वर्ष 2008 में यह चीनी मिल बन्द हो गयी लेकिन जो कर्मचारी साल 2004 से 2011 के बीच रिटायर हुए थे उनकी ग्रेचुटी के भुगतान नहीं किए गए।

इस बारे में मिल के रिटायर कर्मचारी राम बहादुर बताते हैं, “वर्ष 2004 से 2011 के बीच इस मिल के 258 कर्मचारी ऐसे हैं,जो रिटायरमेन्ट के बाद आज तक अपनी ग्रेचुटी का भुगतान नहीं पा सके हैं जबकि वर्ष 2011 के बाद रिटायर कर्मचारी को वीआरएस के साथ ही तमाम देय का भुगतान कर दिया गया इन 258 कर्मचारियों में से कुछ की मृत्यु हो चुकी है जबकि बाकी कर्मचारी भुखमरी के कगार पर हैं।”

सबसे पहली सहकारी चीनी मिल बागपत जनपद में बनाई गई थी। दूसरी चीनी मिल उत्तराखण्ड के बाजपुर में चली गई है और तीसरी चीनी मिल किसान सहकारी चीनी मिल मझोला में स्थापित की गई थी।

बंद पड़ी चीनी मिल के कर्मचारियों ने जनपद के चीनी मिल के मौजूदा मंत्रियों व केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी से भी अपना दुखड़ा सुनाया। बीसलपुर के सपा विधायक रामसरण वर्मा ने मिल की हालत पर विधानसभा में प्रश्न भी उठाया और प्रदेश सरकार के मौजूदा मंत्री हाजी रियाज अहमद व हेमराज वर्मा ने भी इन कर्मचारियों की समस्या के समाधान का काफी प्रयास किया पर आज तक कोई ध्यान नहीं दिया गया। इस चीनी मिल में जनपद पीलीभीत के अलावा उत्तराखंड राज्य के किसानों का गन्ना आता था। मिल के बंद होने से हज़ारों किसानों को प्राइवेट  मिलों को अपना गन्ना देना पड़ रहा है।

रिपोर्टर - अनिल चौधरी

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