सिखों के फर्ज़ी एनकाउंटर मामले में यूपी पुलिस के 47 पुलिसकर्मी दोषी करार

Update: 2016-04-02 05:30 GMT
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश के पीलीभीत ज़िले में 25 साल पहले हुई एक कथित मुठभेड़ में दस सिख तीर्थयात्रियों के मारे जाने के मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने 47 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया है। 12 जुलाई 1991 को पुलिस ने दस सिख तीर्थयात्रियों को चरमपंथी बताते हुए कथित तौर पर मुठभेड़ में मार डाला था। सीबीआई कोर्ट के विशेष न्यायाधीश लल्लू सिंह ने इस मुठभेड़ पर कई तरह के सवाल उठाते हुए इसे फ़र्जी करार दिया है।

सज़ा को लेकर सुनवाई 4 अप्रैल को होगी

अदालत के फ़ैसले के बाद वहां मौजूद बीस अभियुक्तों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया जबकि बाक़ी के ख़िलाफ़ ग़ैर ज़मानती वारंट जारी करते हुए उन्हें चार अप्रैल को अदालत में हाज़िर होने का निर्देश दिया गया है। किसी एक मामले में एक साथ इतने पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराए जाने का ये शायद देश में पहला मामला है। पीलीभीत में 12 जुलाई 1991 को पटना साहिब और कुछ अन्य स्थलों से तीर्थयात्रियों का एक जत्था बस से लौट रहा थास, इस बस मे 25 यात्री सवार थे। आरोप थे कि कछालाघाट पुल के पास पुलिस ने इनमें से दस यात्रियों को बस से ज़बरन उतार लिया और एक दिन बाद उन सभी की लाशें तीन अलग-अलग जगहों से मिलीं।

पुलिस ने अपनी एफ़आईआर में इन सभी को चरमपंथी बताते हुए पुलिस पर हमला करने का आरोप लगाया लेकिन बाद में मारे गए लोगों के परिवारजनों ने आरोप लगाया कि मुठभेड़ फ़र्जी थी। 15 मई 1992 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए मुठभेड़ की सीबीआई जांच के आदेश दिए। सीबीआई ने इस मामले में 57 पुलिसकर्मियों को अभियुक्त बनाया था जिनमें से दस की मुकदमे की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई।

मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने पुलिसकर्मियों पर बेहद तल्ख़ टिप्पणी की और कहा कि प्रमोशन और पुरस्कार के लालच में इस घटना को अंजाम दिया गया। अदालत ने ये भी सवाल उठाया है कि यदि ये युवक चरमपंथी थे तो उनके पास से कोई हथियार क्यों नहीं बरामद हुए और तीन अलग-अलग थाना क्षेत्रों में मुठभेड़ कैसे हुई? अदालत का ये भी कहना था कि जब ये युवक पुलिस की पकड़ में आ गए थे तो उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई होनी चाहिए थी।

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