बिना मर्ज़ी शादी भी घरेलू हिंसा, इन धाराओं में हो सकती है एफआईआर

Update: 2018-12-17 07:12 GMT
ग्रामीण क्षेत्रों में आए दिन किशोरियों-महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा

लखनऊ। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में आए दिन किशोरियों-महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के तहत मारने पीटने की घटनाएं पढ़ने और सुनने को मिलती हैं। मारने-पीटने के अलावा भी तीन तरह की और हिंसा होती हैं जिसका जिक्र कभी-कभार ही सुनने को मिलता है।

उत्तर प्रदेश में घरेलू हिंसा पर काम कर रही ब्रेकथ्रू संस्था की स्टेट समन्वयक कृति प्रकाश बताती हैं, "हर महिला और लड़की को अपने लिए खुद आवाज़ उठानी होगी। घरेलू हिंसा सिर्फ शादी के बाद मारपीट ही नहीं होती बल्कि अगर आपके परिजन आपको पढ़ने से रोकते हैं, आपकी मर्जी के खिलाफ शादी तय करते हैं, आपके पहनावे पर रोकटोक लगाते हैं तो ये भी घरेलू हिंसा के अंतर्गत आता है।"

भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सम्बन्ध में वर्ष 2015 में जो मामले दर्ज हुए हैं उनमें उत्तर प्रदेश का पहला स्थान है। उत्तर प्रदेश में 35527, महाराष्ट्र में 31126, पश्चिम बंगाल में 33218 मामले दर्ज हुए हैं। महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम का निर्माण वर्ष 2005 में हुआ जो 26 अक्टूबर 2016 को लागू किया गया। यह अधिनियम महिला बाल विकास द्वारा संचालित किया जाता है।

"ये सभी हिंसाएं घरेलू हिंसा क़ानून 2005 के अंतर्गत आती हैं इसके तहत महिला जिले में तैनात सुरक्षा अधिकारी के पास आईपीसी की धारा 498ए के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकती है।"

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घरेलू हिंसा के क्षेत्र में वर्ष 2005 से उत्तर प्रदेश के कई जिलों में काम कर रही कृति बताती हैं, "अगर कोई पति, पत्नी की मर्जी के खिलाफ शारीरिक सम्बन्ध बनाता है तो ये भी हिंसा के अंतर्गत आता है। ये हिंसा है ये कोई मानने को तैयार ही नहीं। महिलाओं को पता ही नहीं हैं कि उनके साथ हिंसा हो रही हैं।"

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के अनुसार पिछले चार वर्षों से 2015 तक महिलाओं के खिलाफ अपराध में 34 फीसदी की वृद्धि हुई है जिसमें पीड़ित महिलाओं द्वारा पति और रिश्तेदारों के खिलाफ सबसे अधिक मामले दर्ज हुए हैं।

उत्तर प्रदेश और झारखंड में महिला अधिकार के लिए कार्य करने वाली संस्था 'आली' की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा जो महिला अधिकार के मामलों की विशेषज्ञ हैं उनका कहना है, "अगर किसी के साथ घरेलू हिंसा होती है, जैसे खाना न देना, किसी से मिलने न देना, मायके वालों को ताना मारना, दहेज की मांग करना, चेहरे को लेकर ताना मारना, शक करना, घरेलू खर्चे उपलभ्ध न कराना जैसे तमाम मामले शामिल हैं।"

वो आगे कहती हैं, "ये सभी हिंसाएं घरेलू हिंसा क़ानून 2005 के अंतर्गत आती हैं इसके तहत महिला जिले में तैनात सुरक्षा अधिकारी के पास आईपीसी की धारा 498ए के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकती है।"

देश के कई इलाकों में आज भी हो रहे बाल विवाह भी इसी का हिस्सा है।


 


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