धान नर्सरी डालने से पहले करें बीजोपचार, मिलेगी अच्छी उपज 

Update: 2018-04-24 15:26 GMT
धान की नर्सरी डालने से पहले किसान बीजोपचार कर फसल को रोगों से बचा सकते हैं।

बारिश के बाद किसान धान की खेती की तैयारी शुरू कर देते हैं, ऐसे में धान की नर्सरी डालने से पहले किसान बीजोपचार कर न केवल फसल को रोगों से बचा सकते हैं, साथ ही ज्यादा उत्पादन भी पा सकते हैं।

इलाहाबाद जिला मुख्यालय से लगभग 35 किमी दूर होलागढ़ ब्लॉक के पूरबनारा गाँव के किसान विजय सिंह (45 वर्ष) बीस बीघा में धान की फसल लगाने की तैयारी कर रहे हैं। विजय बताते हैं, “हम जैसा बीज बाजार से खरीदकर लाते हैं, वही पानी से भिगोकर नर्सरी डाल देते हैं, पिछली बार कुछ धान के बीज बीजोपचार के बाद लगाए थे, दूसरों के मुकाबले वो ज्यादा अच्छी फसल थी, इसलिए इस बार बीजोपचार के बाद ही नर्सरी लगाऊंगा।”

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कृषि विज्ञान केन्द्र, अंबेडकरनगर के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. रवि प्रकाश मौर्या बीजोपचार के फायदों के बारे में बताते हैं, “कई बार किसान जल्दबाजी में बीज का उपचार किए बिना ही नर्सरी तैयार कर लेते हैं, जिससे कई बार फसल में कई तरह के रोग लग जाते हैं। मानसून आने के बाद किसान को धान के बीजों का बीजोपचार करके ही नर्सरी डालनी चाहिए।” डॉ. रवि प्रकाश वर्मा ने आगे बताया,“अच्छा उत्पादन पाने के लिए किसान उन्नत किस्म के बीजों का चयन करते हैं, उन्नत बीजों के चुनाव के बाद उनका उचित बीजोपचार भी जरूरी है क्यों कि बहुत से रोग बीजों से फैलते हैं।”

बीजों को कवकनाशी रसायन से उपचारित किया जाता है, जिससे बीज जमीन मे सुरक्षित रहते है, क्योंकि बीजोपचार रसायन बीज के चारों और रक्षक लेप के रूप में चढ़ जाता है और बीज की बुवाई ऐसे जीवों को दूर रखता है। बीजों को उचित कवकनाशी से उपचारित करने से उनकी सतह कवकों के आक्रमण से सुरक्षित रहती है, जिससे उनकी अंकुरण क्षमता बढ़ जाती है। बीज पर कवकों का प्रभाव बहुत अधिक होता है तो भंडारण के दौरान भी उपचारित सतह के कारण उनकी अंकुरण क्षमता बनी रहती है।

बीजोपचार करते समय सावधानियां

बीजों को पहले फफूंद नाशक दवा से उपचारित करना चाहिए उसके बाद जैविक कल्चर से उपचार करना चाहिए, उपचारित बीज को तुरंत बुवाई में प्रयोग करना चाहिए। अगर बोने के बाद उपचारित बीज की मात्रा बच जाए तो उसे न तो जानवरों को खिलाना चाहिए न ही खुद खाना चाहिए। दवा के खली डिब्बे या पैकेट नष्ट कर देना चाहिए।

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ऐसे करें बीजोपचार

पानी में नमक का दो प्रतिशत का घोल तैयार करें, इसके लिए 20 ग्राम नमक को एक लीटर पानी में अच्छी तरह मिलाएं। इनमें बुवाई के लिए काम में आने वाले बीजों को डालकर हिलाए, जिससे हल्के व रोगी बीज इस घोल में तैरने लगते हैं।

इन्हें निथार कर अलग कर दें और तली में बैठे बीजों को साफ पानी से धोकर सुखाकर फिर फफूंदनाशक, कीटनाशक व जीवाणु कल्चर से उपचारित करके बुवाई करें। बाविस्टीन दो-तीन ग्राम प्रति किग्रा या ट्राइकोडर्मा 7.5 ग्राम प्रति किग्रा. के साथ पीएसबी कल्चर छह ग्राम और एजेटोबैक्टर कल्चर छह ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित कर नम जूट बैग के ऊपर छाया में फैला देना चाहिए।

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