सिर्फ मारपीट ही घरेलू हिंसा नहीं, चार तरह की होती हैं घरेलू हिंसाएं

खाना न देना, किसी से मिलने न देना, मायके वालों को ताना मारना, दहेज की मांग करना, चेहरे को लेकर ताना मारना, शक करना, घरेलू खर्चे न देना, जैसे तमाम मामले शामिल हैं।

Update: 2018-12-24 05:40 GMT
मारपीट के अलावा भी तीन तरह की और हिंसा होती हैं जिसका जिक्र कभी-कभार ही सुनने को मिलता है।

लखनऊ। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में आये दिन किशोरियों-महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा के तहत मारने पीटने की घटनाएं पढ़ने और सुनने को मिलती हैं। मारने-पीटने के अलावा भी तीन तरह की और हिंसा होती हैं जिसका जिक्र कभी-कभार ही सुनने को मिलता है।
उत्तर प्रदेश में घरेलू हिंसा पर काम कर रही ब्रेकथ्रू संस्था की स्टेट समन्वयक कृति प्रकाश बताती हैं, "हर महिला और लड़की को अपने लिए खुद आवाज़ उठानी होगी। घरेलू हिंसा सिर्फ शादी के बाद मारपीट ही नहीं होती बल्कि अगर आपके परिजन आपको पढ़ने से रोकते हैं, आपकी मर्जी के खिलाफ शादी तय करते हैं, आपके पहनावे पर रोकटोक लगाते हैं तो ये भी घरेलू हिंसा के अंतर्गत आता है।"

घरेलू हिंसा के क्षेत्र में वर्ष 2005 से उत्तर प्रदेश के कई जिलों में काम कर रही कृति बताती हैं, 'अगर कोई पति पत्नी की मर्जी के खिलाफ शारीरिक सम्बन्ध बनाता है तो ये भी हिंसा के अंतर्गत आता है। ये हिंसा है ये कोई मानने को तैयार ही नहीं। महिलाओं को पता ही नहीं हैं कि उनके साथ हिंसा हो रही हैं।'
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के अनुसार पिछले चार वर्षों से 2015 तक महिलाओं के खिलाफ अपराध में 34 फीसदी की वृद्धि हुई है जिसमें पीड़ित महिलाओं द्वारा पति और रिश्तेदारों के खिलाफ सबसे अधिक मामले दर्ज हुए हैं।

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उत्तर प्रदेश और झारखंड में महिला अधिकार के लिए कार्य करने वाली संस्था 'आली' की कार्यकारी निदेशक रेनू मिश्रा जो महिला अधिकार के मामलों की विशेषज्ञ हैं उनका कहना है, "अगर किसी के साथ घरेलू हिंसा होती है, जैसे खाना न देना, किसी से मिलने न देना, मायके वालों को ताना मारना, दहेज की मांग करना, चेहरे को लेकर ताना मारना, शक करना, घरेलू खर्चे उपलभ्ध न कराना जैसे तमाम मामले शामिल हैं।" वो आगे कहती हैं, "ये सभी हिंसाएं घरेलू हिंसा क़ानून 2005 के अंतर्गत आती हैं इसके तहत महिला जिले में तैनात सुरक्षा अधिकारी के पास आईपीसी की धारा 498ए के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकती है।"

ग्रामीण महिलाएं ज्यादा होती हैं उत्पीडन का शिकार

घरेलू हिंसा चार प्रकार की होती है

शारीरिक हिंसा - किसी महिला को शारीरिक पीड़ा देना जैसे मारपीट करना, धकेलना, ठोकर मारना, लात-घूसा मारना, किसी वस्तु से मारना या किसी अन्य तरीके से महिला को शारीरिक पीड़ा देना शारीरिक हिंसा के अंतर्गत आता है।
यौनिक या लैंगिक हिंसा – महिला को अश्लील साहित्य या अश्लील तस्वीरों को देखने के लिए विवश करना, बलात्कार करना, दुर्व्यवहार करना, अपमानित करना, महिला की पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा को आहत करना इसके अंतर्गत आता है।
मौखिक और भावनात्मक हिंसा – किसी महिला या लड़की को किसी भी वजह से उसे अपमानित करना, उसके चरित्र पर दोषारोपण लगाना, शादी मर्जी के खिलाफ करना, आत्महत्या की धमकी देना, मौखिक दुर्व्यवहार करना।
आर्थिक हिंसा - बच्चों की पढ़ाई, खाना, कपड़ा आदि के लिए धन न उपलब्ध कराना, रोजगार चलाने से रोकना, महिला द्वारा कमाए जा रहे धन का हिसाब उसकी मर्जी के खिलाफ लेना।

कहां दर्ज कराएं रिपोर्ट


डीआईआर को घरेलू घटना रिपोर्ट (डोमेस्टिक इंसीडेंट रिपोर्ट) कहते हैं। जिसमे घरेलू हिंसा सम्बन्धी प्रारंभिक जानकारी दर्ज कराई जाती है। हर जिले में सुरक्षा अधिकारी सरकार द्वारा नियुक्त होता है। सुरक्षा अधिकारी ही घरेलू हिंसा रिपोर्ट दर्ज करता है। राज्य सरकार द्वारा हर राज्य के जिलों में स्वयंसेवी संस्था की नियुक्त होती है जो सुरक्षा अधिकारी के पास रिपोर्ट दर्ज कराने में मदद करती है। (ये खबर मूल रुप में २०१७ में प्रकाशित हुई थी) Full View

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