कृषि बाजारों को ऑनलाइन करने से पहले दें सुविधाएं

Update: 2017-04-14 20:32 GMT
कृषि बाजारों को कंप्यूटरीकृत करने से पहले ढांचागत सुधार की जरूरत। 

लखनऊ। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले हफ्ते प्रदेश के सभी जनपदों में स्थापित किए गए उपमंडी स्थलों और एग्रीकल्चर मार्केटिंग हब बाज़ारों में कृषि व्यापार की निगरानी के लिए आधुनिक सुविधाओं के साथ-साथ इन्हें कम्प्यूट्रीकृत बनाने का बड़ा फैसला लिया, लेकिन गाँवों में बने मार्केटिंग हब बाज़ारों को कम्प्यूटराइजेशन से पहले ढांचागत सुधार की अधिक आवश्यकताएं हैं।

लखनऊ की कुर्सी रोड पर बने एग्री. मार्केटिंग हब, ग्राम गुडम्बा बाज़ार में हफ्ते में दो दिन बाज़ार लगती है। मार्केट में जगह कम होने के कारण यहां पर बाज़ार का कार्यालय नहीं बना है। मार्केट से सटी परचून की दुकान चला रहे व्यापारी आशाराम रावत (50 वर्ष) बताते हैं, ''हफ्ते में बुधवार और रविवार को यहां पर बाज़ार लगती है। यहां फल, साग-सब्जी के अलावा बड़ी मात्रा में अनाज बेचा जाता है। बाज़ार में दुकान लगाने वाले लोगों के लिए यहां पर ना तो पीने के पानी की सुविधा है और ना ही शौचालय की।''

बता दें कि प्रदेश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में गाँव के नज़दीक कृषि उपज बेचने के लिए 1,600 मंडी स्थलों की स्थापना की गई है। वर्ष 2014 में राज्य सरकार ने कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक 100 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में एग्रीकल्चर मार्केटिंग स्थापित करने की योजना शुरू की थी। लेकिन मौजूदा समय में इन मार्केंटों की ज़मीनी हालत सुधारने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

बाजार में सिर्फ एक हैंडपंप

मार्केटिंग हब बाज़ार गुडंबा से 10 किमी. की दूरी पर बेहटा गाँव में बने एग्री. मार्केटिंग हब में मंगलवार और शनिवार को बाज़ार लगती है। बेहटा गाँव के मार्केटिंग हब बाज़ार में पलका, पैकरामऊ, परणिया-ड़ी और कौड़ियामऊ से किसान अपना सामान बेचने आते हैं। बेहटा गाँव के निवासी सुखलाल गुप्ता (52 वर्ष) ने बताया,'' बाज़ार में सामान बेचने आने वाले किसानों के लिए मात्र एक हेंडपंप लगवाया गया है। बाज़ार में सफाई के लिए पहले हर हफ्ते लगने वाली बाज़ार से पहले सफाई की जाती थी,लेकिन अब वो भी नहीं होती है।''

जरूरी क्या है?

गाँव में स्थापित किए गए उपमंडी स्थल और एग्री. मार्केटिंग हब बाज़ारों में फल, सब्जी और राशन बेचा जाता है। इन स्थलों का उपयोग करने के लिए गाँव से आने वाले किसानों को सामान बेचने के लिए छांवदार चबूतरा नि:शुल्क उप्लब्ध कराया जाता है। सप्ताह में एक से दो बार खुलने वाली इन बाज़ारों को कंप्यूट्रीकृत किए जाने से सरकार ने गाँवों में होने वाले कृषि व्यापार और इन स्थलों की ज़मीनी हकीकत जानने की कोशिश की है। अब बात यह उठती है कि क्या इन बाज़ारों को कंप्यूट्रीकृत करना ज़्यादा ज़रूरी है या इससे पहले इनकी ढांचाकृत कमियों को दूर करना।

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