बाराबंकी के खेतों में उग रहे ग्लैडियोलस के फूल 

Update: 2017-03-21 17:59 GMT
बाराबंकी के खेतों में उग रहे ग्लैडियोलस के फूल। 

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

बाराबंकी। ग्लैडियोलस के फूलों का उपयोग साज-सज्जा एवं गुलदस्ते के रूप में किया जाता है। चाहे शादी-पार्टी हो या कोई शुभ कार्य सभी जगह साज-सज्जा के लिए गुलाब व ग्लैडियोलस के फूलों का उपयोग बहुतायत में होता है।

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बाराबंकी मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर रामनगर तहसील के उत्तर दिशा में स्थित शाहपुर चक बहेरुवा ग्राम के कुछ किसानों ने ग्लेडियोलस फूलों की खेती शुरू की है।

शाहपुर बहेरुवा गाँव के किसान अमर सिंह (50 वर्ष) ने अधिक लागत और अधिक परिश्रम वाली खेती से निजात पाने के लिए ग्लैडियोलस की खेती करनी शुरू कर दी है। अमर सिंह का कहना है, “हम पहले आलू और पिपरमेंट लगाते थे। पर ज्यादा फायदा नहीं होता था और परिश्रम भी अधिक लगता था

जिसके चलते हमने फूलों की खेती करने का फैसला किया, जिसके लिए हम दफेदारपुरवा के बड़े किसान मुनुद्दीन से सलाह लेकर अपनी जमीन पर फूलों की खेती करने लगे और अब हमें कम समय में अच्छा मुनाफ़ा भी मिलता है और मेहनत भी कम लगती है।” शाहपुर के निवासी राम सिंह का कहना है, “अमर सिंह को देखकर ही हमने भी फूलों की खेती की तरफ अपने कदम बढ़ाए, जिससे हमें भी अच्छा लाभ हो रहा है। इसमें मेहनत कम और मुनाफा ज्यादा है।”

कैसे करें खेती

ग्लेडियोलस के बीजों को बल्ब भी कहा जाता है। बल्ब को बावष्टिन के दो मिली ग्राम के घोल में आधा घंटे डुबाकर 20x20 सेमी की दूरी व पांच सेमी की गहराई में बोना चाहिए। बीज से अंकुर निकल आने पर 15-15 दिन के बाद बावष्टिन का 29 मिली ग्राम घोल छिड़कने से पौधा कीटरहित रहता है।

अमर सिंह ने बताया कि इसकी लगभग 10 हजार प्रजातियां पूरे विश्व में पाई जाती हैं। लेकिन हमारे यहां केवल 19 प्रजातियां ही होती हैं, जिसमें स्नोक्वीन, सिलविया, गोल्ड, अग्नि, म्यूर, मेनाई आदि प्रमुख हैं।

ग्लेडियोलस फूलों की खेती में झुलसा रोग, बीज सड़न, पत्तियों के सूखने की बीमारी लग जाती है। इसकी रोकथाम के लिए पांच मिली ग्राम का ओरियोफजिन नामक दवाई का घोल बनाकर छिड़कना चाहिए और बावष्टिन और बैन लेट इन दोनों दवाओं को अच्छे से मिलाकर 10 से 12 दिनों के अंतर पर छिड़काव करते रहना चाहिए।

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