46 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी जैविक खाद बनाने में मदद करेगा जय गोपाल केंचुआ

Update: 2017-06-09 13:32 GMT
जय गोपाल केंचुए की प्रजाति विकसित करने के लिए बनाया गया नाडेप पिट।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। आमतौर जैविक खाद में इस्तेमाल किए जाने वाले विदेशी केंचुओं का जीवन कम होने के कारण मृदा की उर्वरक क्षमता खत्म जाती है। इसी को मद्देनजर रखते हुए भारतीय पशु अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) ने 'जय गोपाल' स्वेदशी केंचुआ की प्रजाति विकसित की है, जो दो से 46 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी जीवित रहता है। आपको बता दें कि आम तौर पर दूसरी प्रजातियों के केंचुएं 30 से 40 डिग्री तापमान में ही जीवित रह पाते हैं। ऐसे में इस प्रजाति के केचुएं विकसित होने से किसानों के लिए कहीं अधिक लाभ का सौदा माना जा रहा है।

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विशेषज्ञों के अनुसार इस केंचुए के उपयोग से जैविक खाद कहीं अच्छी गुणवत्ता वाली बनती है। इस शोध के बारे में संस्थान के विशेषज्ञ बताते हैं कि पिछले दस वर्षों से आईवीआरआई संस्थान के पशु अनुवांशिकी विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. रणवीर सिंह गोबर और जैविक कचरे से केंचुआ की खाद बनाने के लिए स्वेदशी केंचुआ की प्रजाति विकसित करने में लगे हुए थे। उन्होंने इसके लिए कयी चयन और प्रजनन नीतियों को अपनाकर 25 पीढ़ियों में ऐसी स्वदेशी केंचुआ की प्रजाति विकसित की है।

इस केंचुआ की विशेषता बताते हुए डॉ. रणवीर ने बताया, यह केंचुआ 2 से 46 डिग्री सेल्सियस तापक्रम पर जीवित रहकर कचरा खाता है। एक सप्ताह में प्रत्येक केंचुए से 25 से 30 बच्चे पैदा होते है। इनके काकून जीरे का आकार का होता है। इससे बनी हुई वर्मीकम्पोस्ट विदेशी केंचुओं से ज्यादा अच्छी होती है।

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उत्तर प्रदेश में विदेशी केचुओं की दो प्रजाति आईसीनीया फीटिडा और यूड्रीलस यूजीनी से केंचुआ की खाद बनाई जाती है। लेकिन यूड्रीलस यूजीनी 35 डिग्री सेल्सियस तापक्रम से ऊपर और आईसीनीया फीटिडा 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान होने पर मर जाते है। इस वजह से किसानों के सामने जैविक खाद बनाने की समस्या थी। लेकिन जयगोपाल से किसानों को जैविक खाद बनाने में लाभ मिलेगा।

इस प्रजाति से बनी हुई केंचुए की खाद मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में संजीवनी का कार्य करती है। इस केंचुआ में 67 प्रोटीन और एमीनो एसीड होते है जो मुर्गीपालन और मछली पालन के लिए भी अधिकता होने पर आहार का कार्य भी करते है।

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डॉ. सिंह ने बताया रोजगार के रुप में इस तकनीक के प्रयोग के बारे में डॉ. सिंह बताते हैं, "जिनके गाँव में गोबर और जैविक कचरे की अधिकता हो वहां पर कोई भी बेरोजगार नवयुवक और युवती केंचुआ पालन और जैविक खाद बनाने का उद्यम लगा सकते है। डॉ. रणवीर किसानों, गौशालाओं और केवीके आदि कई संस्थाओं में जयगोपाल वर्मीकल्चर तकनीकी को दे चुके है। सभी जगह इस तकनीक ने सफलता पूर्वक प्रदर्शन किया है। आईवीआरआई इस तकनीक को स्थानांतरण करने के लिए 23000 की फीस लेता है। इसके अंतर्गत इस तकनीक की ट्रेनिंग दी जाती है।

  • आईवीआरआई में इस तकनीक के लिए संपर्क कर सकते है
  • डॉ. रणवीर सिंह
  • जयगोपाल वर्मीकल्चर तकनीकी इनोवेटर
  • 0581-2303382
  • डॉ आर पी सिंह
  • प्रभारी ITMU, आईवीआरआई, इज्जतनगर
  • 0581-2301940

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