जीएसटी के बाद : जानिए, क्या है नौकरी का हाल

Update: 2017-07-26 10:35 GMT
प्रतीकात्मक तस्वीर।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। “गाँव में काम नहीं मिला तो 6 दिन पहले बहराइच के अपने गाँव से लखनऊ चला आया। यहां 6 दिन में सिर्फ एक दिन काम मिला है। रोजाना हजरतगंज चौराहे पर जाता हूं, लेकिन अक्सर खाली हाथ लौटना पड़ता है।” राजधानी के अम्बेडकर पार्क के सामने छांव में बैठे आत्माराम (40 वर्ष) सिर पर गमछा दुरुस्त करते हुए कहते हैं। लुंगी और फटी शर्ट पहने आत्माराम अब वापस बहराइच जाने के बारे में सोच रहे हैं।

यह कहानी सिर्फ आत्माराम की ही नहीं है। आत्माराम की तरह सैकड़ों दिहाड़ी मजदूर रोजाना नौकरी की तलाश में शहर के अलग-अलग चौराहों पर आते हैं, लेकिन काम कम होने के कारण उन्हें रोजगार नहीं मिल पा रहा है। प्रदेश में खनन पर रोक, नोटबंदी और जीएसटी के कारण असंगठित क्षेत्रों में नौकरियां कम हुई हैं। इससे काफी लोग परेशान हैं। हाल ही में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के सर्वे के अनुसार केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले के कारण देश में संगठित क्षेत्रों में 15 लाख लोग बेरोजगार हो गए हैं।

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नरेंद्र मोदी और भाजपा के बाकी नेताओं ने आमचुनाव से पहले तत्कालीन केंद्र सरकार पर बेरोजगारी दूर नहीं करने का आरोप लगाते हुए प्रत्येक साल दो करोड़ नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन देश भर के 1,61,167 परिवारों से बातचीत पर आधारित सीएमआईई के सर्वे के मुताबिक सितंबर-दिसंबर 2016 के बीच देश में कुल नौकरियों की संख्या 40 करोड़ 65 लाख थी, लेकिन नोटबंदी के बाद जनवरी-अप्रैल 2017 के बीच नौकरियां घटकर 40 करोड़ 50 लाख रह गईं।

लखनऊ में सरकारी ठेका लेने वाले ठेकेदार हरप्रीत साहनी बताते हैं, “नोटबंदी से जैसे-तैसे उबरे थे कि जीएसटी लगने के बाद काम बिलकुल बंद हो चुका है। पहले जहां कुल मिलाकर हमें टैक्स के रूप में आठ प्रतिशत देना होता था, वहीं अब टैक्स बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया गया है। लाभ के तौर पर हमें सरकार से दस प्रतिशत मिलते थे।”

खाड़ी नहीं होता तो लोग भुखमरी के शिकार होते

गाजीपुर से ताल्लुक रखने वाले और जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. संजय सिंह चौहान बताते हैं कि गाजीपुर, मऊ और आजमगढ़ के कई परिवार खाड़ी देशों के भरोसे आजीविका चला रहे हैं। इनके बच्चे खाड़ी देशों मजदूरी करते हैं। वहां से पैसे भेजते हैं तो इनका गुजारा होता है। गाजीपुर शहर में बीस से ज्यादा सेंटर हैं, जहां हर महीने विदेश जाने के लिए इंटरव्यू का आयोजन किया जाता है। वहां युवाओं की भीड़ उमड़ती है।

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यूपी कांग्रेस के प्रवक्ता सुरेन्द्र राजपूत केंद्र सरकार पर व्यंग्य करते हुए दुष्यंत कुमार का एक शेर कहते है, ‘कहां तो तय था चराग़ां हर एक घर के लिए, कहां चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए।’ वह कहते हैं कि भाजपा सरकार रोजगार देने में विफल रही है। सरकार की गलत नीतियों के कारण मजदूर, नौजवान हताश हैं। चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने साल भर में दो करोड़ नौकरी देने के लिए बोला था, लेकिन 15 लाख से ज्यादा लोग अब तक बेरोजगार हो चुके हैं। असंगठित क्षेत्रों में तो और ज्यादा लोग बेरोजगार हो चुके हैं।

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