पैरालिसिस को हराकर गाँवों के गरीब बच्चों की जिंदगी रोशन कर रहे अनुराग

Update: 2016-11-04 16:14 GMT
गाँव में गरीब बच्चों को पढ़ाते अनुराग सिंह।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

सहार (औरैया)। “कुछ परेशानियों से जिन्दगी कभी खत्म नहीं होती” अपने बिछड़े दोस्त के इन शब्दों ने अनुराग की जिंदगी बदल दी। औरैया जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर सहार ब्लाक के देवीदास गाँव में रहने वाले अनुराग सिंह (23 वर्ष) का बचपन बहुत ही मुश्किलों भरा रहा, लेकिन अनुराग ने इन मुश्किलों को अपनी जिंदगी में रूकावट नहीं बनने दिया। जन्म के छह महीने बाद अनुराग को पैरालिसिस हो गया था। ये मुश्किलें अनुराग के लिए क्षणिक थी। अपनी बीमारी से लड़कर एलएलबी करने के बाद आज ये अपने दोस्तों के सहयोग से सैकड़ों बच्चों को मुफ्त में पठन सामग्री उपलब्ध कराने के साथ ही योग्य शिक्षकों द्वारा उन्हें नि:शुल्क शिक्षा भी दे रहे हैं।

पांच भाई और दो बहनों में सबसे छोटे

अनुराग अपने बारे में बताते हैं कि पांच भाई और दो बहनों में मैं सबसे छोटा हूँ। जन्म के छह महीने बाद ही मुझे पैरालिसिस हो गया था। निरंतर इलाज चला और मै डेढ़ साल की उम्र में ठीक हो गया था। अनुराग आगे बताते हैं कि इलाज के बाद पैरालिसिस तो ठीक हो गया था, लेकिन तीन साल की उम्र से ही मुझे दौरे पड़ने शुरू हो गये। इलाज चलने के साथ ही मेरी पढाई कभी बंद नहीं हुई। वर्ष 2006 में दसवीं परीक्षा पास करने के बाद मानसिक संतुलन पूरी तरह से गड़बड़ा गया।

गल्योसिस बीमारी से पीड़ित रहे अनुराग

आईसीयू में एक महीने तक एडमिट रहने के बाद अनुराग के घर वालों को ये पता चला कि गल्योसिस नामक बीमारी है। पूरे पांच साल इस बीमारी की पीड़ा से लड़ने के बाद अनुराग जिन्दगी से हार मानने लगे थे। परिवार और दोस्तों के प्रोत्साहन से पढ़ाई लगातार जारी रही। 15 वर्ष की उम्र में ही कम्प्यूटर टीचर के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की। इस करियर में ढाई हजार रुपये मिलने शुरू हुए और अनुराग की पढ़ाई जारी रही। सबकुछ ठीक चलना शुरू ही हुआ था कि एक बार फिर अनुराग पारिवारिक विवाद में 17 वर्ष की उम्र में सलाखों के पीछे पहुंच गये। नाबालिग होने की वजह से अनुराग दो दिन में छूट तो गये था, मगर उन्हें अपना करियर खत्म होते नजर आ रहा था और वो पूरी तरह से अवसाद ग्रस्त हो गये थे।

सड़क हादसे में हो गई थी सुमित की मौत

अनुराग के इन मुश्किल क्षणों में सबसे जिगरी दोस्त सुमित गुप्ता ने उबारने की बहुत कोशिश की। अनुराग की आँखें ये बताते हुए भर जाती हैं कि वर्ष 2014 में एक सड़क हादसे में मेरा दोस्त नहीं रहा मगर उसके कहे शब्द “कुछ परेशानियों से जिन्दगी कभी खत्म नहीं होती” इस वाक्य ने मुझे हिम्मत दी और मैंने “आओ मिलकर करें मदद” नाम की एक संस्था खोली।

अपनी सैलरी से लगाते हैं पैसा

“आओ मिलकर करें मदद” इस संस्था का उद्देश्य गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देना, महिलाएं अपने अधिकार जाने, बेटी बचाओ जैसे तमाम मुद्दे पर कार्य करना है। अनुराग बताते हैं कि हमारे चार मित्र रोहित वर्मा, नीतेश प्रताप सिंह, आर्यन कुशवाहा और यश पूरी तरह से हमारी इस मुहिम में शामिल हैं। मैं और मेरे सभी मित्र प्राइवेट जॉब करते हैं और उससे जो पैसा कमाते हैं, उससे इस संस्था को चलाया जा रहा है।

गरीब बच्चों को मुफ्त में मिल रही शिक्षा

इस संस्था में अब तक सैकड़ों की संख्या में गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया जा रहा है, जिसे आस-पास के साथी मित्र मिलकर पढ़ा रहे हैं। इनमें अमित, विकास, जीत पाल, विपिन, अवनीश हैं। लड़कियों की एक टीम महिलाओं को उनके मुद्दे पर जागरूक करने का कार्य कर रही हैं, जिसमें अनुराधा, कुमारी विजया, शिवानी, भावना, एकता जैसी कई ग्रामीण लड़कियाँ शामिल हैं।

अभी कारवां बहुत आगे ले जाना है

अनुराग खुश होकर बताते हैं कि हमारे सभी साथी हमें बहुत सहयोग कर रहें है। ये पैसे के लिए काम नहीं कर रहे, बल्कि समाज के लिए काम कर रहे हैं। अनुराग को पत्रकारिता का बहुत शौक है। वो बहुत सारी कविताएँ और लेख भी लिखते हैं। अनुराग कहते हैं कि आज मैं अपने काम से बहुत खुश हूँ। कोशिश है कि औरैया जिले में बहुत सारा काम करूं। अभी शुरुआत है और ये कारवां बहुत आगे ले जाना है।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

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