पाले से आलू किसानों को हो सकता है नुकसान  

Update: 2017-11-23 13:08 GMT
प्रतीकात्मक फोटो। 

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

मेरठ। स्मॉग खत्म होते ही पाले ने आलू किसानों की चिंता बढ़ा दी है। आलू की फसल निकलते ही पाले की चपेट में आने लगी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि आलू को पाले से बचाना बहुत जरूरी है, नहीं तो उत्पादन प्रभावित होगा। इसलिए किसान और वैज्ञानिक फसल को बचाने का प्रयास कर रहे हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान गन्ने की खेती के साथ-साथ आलू की खेती भी बड़ी संख्या में करते हैं। जिले में इस समय लगभग 5500 हेक्टेयर में आलू की फसल खड़ी है। साथ ही और भी आलू की बुवाई का काम चल रहा है। स्मॉग खत्म होते ही पाले ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। बढ़ते पाले का असर आलू की फसल पर साफ दिखाई दे रहा है। मौसम की मार से मेरठ सहित पूरे वेस्ट यूपी की फसल प्रभावित हो रही है, जिसको लेकर किसान भारी चिंता में है।

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मोटी हो रही पाले की परत

माछरा ब्लाक के माउखास गाँव के किसान रविन्द्र (44 वर्ष) बताते हैं, “सुबह के समय पाले की परत मोटी हो रही है, जिसके चलते आलू की फसल पर सीधा असर पड़ रहा है।” रछौती गाँव के किसान रामकरण (65 वर्ष) बताते हैं, “पाले की वजह से आलू के पौधे सूखने शुरू हो गए हैं। सुबह पड़ रहे पाले ने फसल को खराब कर दिया है। पिछले तीन दिनों से पाला पड़ रहा है। यदि समय रहते कुछ उपचार नहीं हुआ तो आलू किसान बर्बाद हो जाएगा।”

ऐसे बचाएं आलू की फसल

  • फसल में हल्का पानी दें
  • खेत में नमी लगातार बनाएं रखें
  • साथ ही ज्यादा पानी न दें नहीं तो नुकसान होगा
  • फसल में कोई बीमारी आ रही है तो वैज्ञानिक से संपर्क करें
  • किसान सुबह के समय पूरे खेत को जरूर देखें

इन जनपदों में होती है आलू की खेती

मेरठ के अलावा शामली, बागपत, सहारनपुर, मुज्जफरनगर, बुलंदशहर, मुरादाबाद, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बदायूं, हाथरस, अलीगढ़, मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद, इटावा, एटा, शिकोहाबाद, हापुड़, रामपुर, बरेली, पीलीभीत आदि जनपदों में आलू की खेती बड़े स्तर पर की जाती है।

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पाले का उपचार सिर्फ जागरूकता से ही संभव है। खेत में नमी बनाए रखने से आलू पर पाले का असर कम होता है। 
डॉ. मनोज कुमार, संयुक्त निदेशक, केन्द्रीय आलू अनुसंधान केन्द्र (मोदीपुरम)

जागरूकता ही उपचार

कृषि वैज्ञानिक डॉ. आरएस सेंगर बताते हैं, “पाला आलू की फसल के ऊपरी हिस्से पर जम जाता है, जिसकी नमी नीचे पौध तक बढ़ जाती है। इसके बढ़ने से पौधा खराब होने लगता है और वह मुरझा जाता है।”वो आगे बताते हैं कि, इस समय जो पाला पड़ रहा है वो बहुत ज्यादा है। जिसे आलू का पौधा नहीं झेल पा रहा है।

मोदीपुरम केन्द्रीय अनुसंधान के संयुक्त निदेशक डॉ. मनोज कुमार बताते हैं, “आलू पर मौसम की मार बढ़ती जा रही है। ऐसे में किसानों को जागरूक होकर काम करना होगा। अभी प्रारंभिक तौर पर आलू की फसल में 8 से 12 प्रतिशत तक पाले का असर दिखाई दे रहा है।

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इन फसलों को भी होता है नुकसान

शीत लहर एवं पाले से सर्दी के मौसम में सभी फसलों को थोड़ा या ज्यादा नुकसान होता है। टमाटर, आलू, मिर्च, बैंगन आदि सब्जियों, पपीता एवं केले के पौधों एवं मटर, चना, अलसी, जीरा, धनिया, सौंफ अफीम आदि फसलों में सबसे ज्यादा 80 से 90 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है। अरहर में 70 प्रतिशत, गन्ने में 50 प्रतिशत एवं गेहूं तथा जौ में 10 से 20 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।

पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलसे हुए दिखाई देते है। एवं बाद में झड़ जाते हैं। यहां तक कि अधपके फल सिकुड़ जाते है। उनमें झाुर्रियां पड़ जाती हैं एवं कलिया गिर जाते है। फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं एवं बन रहे दाने सिकुड़ जाते है। दाने कम भार के एवं पतले हो जाते है रबी फसलों में फूल आने एवं बालियां/ फलियां आने व उनके विकसित होते समय पाला पडऩे की सर्वाधिक संभावनाएं रहती है। अत: इस समय कृषकों को सतर्क रहकर फसलों की सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिये। पाला पडऩे के लक्षण सर्वप्रथम आक आदि वनस्पतियों पर दिखाई देते है। पाले का पौधों पर प्रभाव शीतकाल में अधिक होता है।

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