सलाह: बीज शोधन से आलू को झुलसा रोग से बचाएं किसान

Update: 2018-09-22 12:08 GMT
आलू की बुवाई के लिए है सही समय।

लखनऊ। उत्तर भारत में अक्टूबर के पहले हफ्ते से आलू की बुआ‍ई शुरु हो जाती है। आलू को नगदी फसल माना जाता है। पिछले साल किसानों को इससे फायदा भी हुआ। आलू बुआई के समय किसान अगर कुछ बातों का ध्यान रखें तो उन्हें बेहतर उपज मिल सकती है। किसानों को आलू की बुवाई से पहले भूमि और बीज शोधन करना चाहिए, जिससे अच्छी पैदावार हो सके और फसल को भी सूड़ी कीट के प्रकोप से बचाया जा सके। इससे फसल में सूड़ी का प्रकोप नहीं आएगा और आलू की पैदावार भी अधिक होगी।

जनित रोगों की हो सकती है रोकथाम

भूमि शोधन करने को जैविक के लिए मैटाराइजियम ऐनीसोप्ली के साथ ट्राइकोडरमा हरजीयानम को 2.50 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाला जाना चाहिए या कोई दानेदार कीटनाशक 10 से 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से डाल कर भूमि शोधन कर ही आलू की बुवाई करनी चाहिए। इससे आलू की फसल में लगने वाले कीट मर जाएंगे और पैदावार अच्छी होगी। वहीं इसके साथ ही किसानों को बीज को भी कई तरह की दवाओं का छिड़काव करने के बाद ही बोना चाहिए। आलू के बीज शोधन के लिए कार्बनडाजिम मैकोजेव दवा का एक किग्रा प्रति 30 क्विंटल बीज पर छिड़काव करना जरूरी होता है। इससे बीज जनित रोगों की रोकथाम की जा सकती है।

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किसान यह भी रखें ध्यान

आलू की बुआई के 20 से 25 दिन बाद प्रत्येक दशा में अगेती झुलसा रोग के बचाव के लिए डाईथेन एम 45 दो किलो प्रति हेक्टेयर की दर से 600 से 800 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना होता है। कभी-कभी रस चूसने वाले कीड़ों के प्रकोप से मोजैक जैसी बीमारी हो जाती है। इस रोग में पौधे की पत्तियां घूम जाती हैं और आलू की पैदावार पर असर पड़ता है।

इससे बचने के लिए किसानों को डाइथेन एम 45 के साथ ही क्यूनाल फास 25 फीसदी को मिलाकर छिड़काव किया जाए। आलू की फसलों को दीमक से बचाव के लिए फिप्रोनिल को 8 किलोग्राम प्रति एकड़ से बुआई के पूर्व अंतिम जुताई में ही भूमि शोधन करना चाहिए, ताकि दीमक एवं अन्य जमीनी कीट रोगों से छुटकारा मिल जाए। (लेखक- डॉ. दया शंकर श्रीवास्तव, वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केन्द्र, कटिया, सीतापुर में पादप रक्षा वैज्ञानिक हैं।)

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