#स्वयंफेस्टिवल: “कोई धान लेने को तैयार नहीं है, अगर हम जाएं तो जाएं कहां”

Update: 2016-12-30 19:06 GMT
नोटबंदी से परेशान बांदा के छनहरा गाँव के किसान मजहर हुसैन ने बयां किया अपना दर्द।

स्वयं डेस्क

शाहनवाज़ /कम्युनिटी रिपोर्टर (28 वर्ष)

बांदा। "मेरा 100 क्विंटल धान पिछले 15 दिनों से फॉर्म हाउस में पड़ा हुआ है। महाजन 1100 के रेट से पुराने नोट में दे रहा है और अगर नये नोट लेने हैं तो तीन महीने बाद पैसा देंगे। सरकारी रेट 1470 रुपये है। वहां कोई पूछ नहीं रहा है। कोई धान लेने को तैयार नहीं है, अगर हम जाएं तो जाएं कहां।" नोटबंदी से परेशान बांदा से 15 किमी दूर छनहरा गाँव के किसान मजहर हुसैन ने जब अपना दर्द बयां किया तो उनकी समस्या का समाधान किसी के पास नहीं था। उन्हें सब ध्यान से सुन रहे थे, मगर सब शांत थे। यह नजारा था जिले के बाबू लाल चौराहा स्थित जिला पंचायत भवन का, जहां गाँव कनेक्शन की चौथी वर्षगांठ के अवसर पर मनाए जा रहे स्वयं फेस्टिवल के तहत स्वयं अवॉर्ड कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।

मेरा बेटा अपने बाप की तकलीफ देख रहा है...

किसान मजहर ने आगे कहा, "पास के गाँव में धान की मिलों में भी गए। धान का सैंपल लिया है, मगर अब तक कुछ नहीं हुआ है। कई सालों बाद पहली बार फसल अच्छी आई है। मगर मेरे हाथ में 10 रुपये नहीं आया है। मेरा एक बेटा है, बीएससी कर रहा है। मेरा 100 क्विंटल धान पड़ा है, कोई लेने वाला नहीं है। मेरा बेटा अपने बाप की तकलीफ देख रहा है। साहूकारों से हजारों रुपया कर्ज लिया है, खाद के लिए, यूरिया के लिए, डीएपी के लिए। जिससे मैंने कर्ज लिया है, वह पैसा लेना चाहता है, अब आप बताइये मैं करूं तो क्या करूं। मेरा बेटा कैसे खेती करेगा? कोई सरकार किसानों का ध्यान नहीं देती है।"

पांच बीघे का चना अन्नाप्रथा चर गई...

उन्होंने आगे कहा कि गाँव में पांच बीघा में चने की फसल अन्नाप्रथा चर गई। आवारा जानवरों से किसानों को बचाने के लिए कोई उपाय नहीं है। सरकार को कम से कम खेती की भूमि पर तार लगाने पर सब्सिडी मुहैय्या करानी चाहिए, जिससे कम से कम आवारा जानवर किसान की फसलों को नुकसान न पहुंचा सकें।

गेहूं की बुवाई कैसे करें, पैसे नहीं है...

बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि अब हाथों में पैसा नहीं है। गेहूं के बीज खरीदने हैं, बुवाई होनी है, अब कैसे करेंगे। सब्सिडी के नाम पर कुछ किसानों को ही फायदा मिल रहा है, इससे ज्यादा कुछ नहीं। सरकार किसानों पर ध्यान नहीं देती है। ऐसे में गाँव का किसान करे तो क्या करे।

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