#स्वयंफेस्टिवल से गाँव-गाँव तक पहुंची पेटीएम की सौगात

Update: 2016-12-13 17:08 GMT
रायबरेली जिले के देवांद्रपुर गांव की जीजीआईसी कालेज की छात्र-छात्राओं ने जाना, कैसे करें पेटीएम का इस्तेमाल।

स्वयं डेस्क

लखनऊ। देश में नोटबंदी का असर हर आम इंसान पर दिखाई पड़ा है। एक तरफ शहरों में जहां नोट बदलवाने के लिए लंबी-लंबी लाइन लगानी पड़ी हैं, वहीं गाँवों में भी बैंकों के बाहर ग्रामीण खड़े दिखाई दिए हैं। इन परिस्थितियों में पेटीएम लोगों के लिए सौगात बन कर उभरा। कई लोगों ने अपने मोबाइल में पेटीएम डाउनलोड कर न सिर्फ अपने, बल्कि अपने परिवार के छोटे-मोटे खर्चे पेटीएम की सहायता से पूरे किये। मगर गाँव में जानकारी के अभाव में पेटीएम का उतना इस्तेमाल नहीं हो सका। ऐसे में गाँव-गाँव तक पेटीएम की पहुंच बढ़े और ग्रामीण भी पेटीएम के इस्तेमाल से अपनी जरूरतें पूरी कर सकें, इसके लिए गाँव कनेक्शन की चौथी वर्षगांठ के अवसर पर 2 से 8 दिसंबर तक उत्तर प्रदेश के 25 जिलों में मनाए गए 'स्वयं फेस्टिवल' के तहत हुए 1000 विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये ग्रामीणों को पेटीएम के इस्तेमाल के प्रति जागरूक किया गया।

गाँवों में बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्गों ने जाना 'पेटीएम'

देश के सबसे बड़े ग्रामीण उत्सव 'स्वयं फेस्टिवल' के जरिये उत्तर प्रदेश के 25 जिलों में एक सप्ताह के भीतर गाँव-गाँव तक पेटीएम के फायदे के बारे में ग्रामीणों को जागरूक किया गया। इनमें जहां बच्चे भी शामिल रहे, वहीं बड़े-बुजुर्गों को भी कार्यक्रमों के जरिये पेटीएम के बारे में न सिर्फ बताया गया, बल्कि पेटीएम का इस्तेमाल कैसे करें, इस बारे में भी जानकारी दी गई। इन कार्यक्रमों के जरिये ग्रामीणों को बताया गया कि कैसे पेटीएम के इस्तेमाल से बिजली का बिल, मोबाइल रिचार्ज, दुकानों से खरीदारी आदि जैसे कई खर्चे बड़े आराम से कर सकते हैं।

सुनाई गई मीनल की कहानी

कार्यक्रमों में जहां ग्रामीणों को पेटीएम के बारे में जानकारी दी गई, वहीं नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली मीनल के बारे में भी बताया गया, जिसने नोटबंदी के दौरान पेटीएम के जरिये न सिर्फ अपने गाँव के लोगों के खर्चों को पूरा किया, वहीं पेटीएम को अपनी कमाई का जरिया भी बनाया। असल में नोटबंदी के दौरान मीनल ने अखबारों में पेटीएम के बारे में पढ़ा। तब मीनल ने अपने एंड्रायड फोन में पेटीएम डाउनलोड करके उससे रिचार्ज कर लिया। सिर्फ इतना ही नहीं, अपने पेटीएम के माध्यम से मीनल ने अपने गाँव के लोगों की खरीदारी की जरूरतों को भी पूरा किया। इसके बदले मीनल ने सभी से एक निश्चित फीस लेना तय किया। ऐसे में मीनल ने नोटबंदी के दौरान न सिर्फ अपने खर्चों को पूरा किया, बल्कि गाँव के लोगों के खर्चों को पूरा करने में सहयोग दिया और फीस के माध्यम से कमाई का जरिया भी पेटीएम को बनाया।

बच्चे भी बोले, पेटीएम आज की जरूरत

देश के सबसे बड़े ग्रामीण उत्सव 'स्वयं फेस्टिवल' के जरिये गाँव-गाँव तक पेटीएम की सौगात पहुंची। न सिर्फ ग्रामीणों ने पेटीएम के बारे में जानने में रुचि दिखाई, बल्कि स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों ने भी माना, पेटीएम आज की जरूरत है। इतना ही नहीं, गाँवों में ग्रामीणों ने भी माना कि पेटीएम मतलब मोबाइल में बटुआ।

नोटबंदी में बढ़ा ई-वॉलेट का इस्तेमाल

देश में 500 और 1000 के पुराने नोट बंद होने से डिजिटल वॉलेट के कारोबार में तेजी से बढ़त दर्ज की गई। हाल में दिनों में यानी नोटबंदी के दौरान पेटीएम मोबाइल एप्लीकेशन को डाउनलोड करने पर 200 फीसदी का रिकॉर्ड दर्ज किया गया। ऐसे में पेटीएम एप्प के जरिये भुगतान करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या में 435 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया है।

स्वयं फेस्टिवल बना जरिया

इस परिस्थिति में गाँव-गाँव तक ग्रामीणों को पेटीएम के बारे में जानकारी और उसकी उपयोगिता के बारे में बताने में देश का सबसे बड़ा ग्रामीण उत्सव 'स्वयं फेस्टिवल' जरिया बना है। गाँवों में 2 से 8 दिसंबर तक एक सप्ताह के दौरान उत्तर प्रदेश के 25 जिलों में 1000 विभिन्न कार्यक्रमों के जरिये करीब 7 लाख लोगों तक पहुंच बनाई गई।

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