एक ऐसा किसान जिसने 30 सालों से बिना जुताई के खेती की, कमाता है पचास से साठ लाख सालाना  

Update: 2017-06-21 19:29 GMT
राजू टाईटस (बीच में ) किसान 

नीतू सिंह

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। मध्य प्रदेश के किसान राजू टाईटस ने पिछले 30 वर्षों से 12 एकड़ जमीन में न कभी हल चलाया और न ही मिट्टी के प्राकृतिक रूप से छेड़छाड़ की है। ये अपने खेतों में बाजार से खरीदी गयी खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं करते हैं, बीजों की सीड बाँल बनाकर खेतों में बुआई करते हैं। इस खेती से राजू टाईटस सालाना पचास से साठ लाख की कमाई भी करते है।

मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में मूल रूप से खोजनपुर गांव के रहने वाले राजू टाईटस (71) पिछले 30 सालों से खेतों की जुताई न करने को लेकर फोन पर अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं, "खेतों की जुताई करने से उपजाऊं मिट्टी की परत बह जाती हैं जिसमे असंख्य सूक्ष्म जीवाणु होते हैं, जुताई करने से ये जीवाणु नष्ट हो जाते हैं, इसलिए मै सीड बाँल बनाकर बिना जुताई के खेती करता हूँ।" वो आगे बताते हैं कि बाजार से खरीदी गयी रासायनिक खाद और कीटनाशक का इस्तेमाल करने से हमारी मिट्टी जहरीली हो रही थी और लागत बहुत ज्यादा आ रही थी, इसलिए मैंने पूरी तरह से इसका प्रयोग करना बंद कर दिया, सुबबूल के पेड़ लगाने से जमीन को यूरिया और नाइट्रोजन पर्याप्त मात्रा में मिल जाती है।"

राजू टाईटस को बिना जुताई बिना रसायन खेती करने की प्रेरणा कहां से मिली इस बारे में उनका कहना है, “जापान के ख्याति प्राप्त कृषि वैज्ञानिक एवं कुदरती खेती के प्रणेता मस्नोबू फुकुओकाजी ने एक किताब लिखी जिसमे बिना निराई-गुड़ाई और बिना रसायन की खेती करने का जिक्र था, पूरी किताब पढ़ने के बाद मुझे वहीं से प्रेरणा मिली इसके बाद इस पर मैंने बहुत रिसर्च किया, इस पद्धति को अपनाने में मुझे फायदा लगा और तब से मै इसी पद्धति से खेती कर रहा हूँ।"

किसानो को राजू अपना खेत दिखाते हुए 

होशंगाबाद जिले से डेढ़ किलोमीटर दूर ‘टाईटस फॉर्म’ के नाम से मशहूर इनके फॉर्म को सब जानते हैं। सुबबूल एक ऐसा वृक्ष है जिससे मिट्टी को पर्याप्त उर्वरकता मिलती रहती है ये पौधे इन्होने अधिकाधिक मात्रा में लगाये है। बिना रसायन 30 वर्षों से लगातार खेती कर रहे राजू बताते हैं, “अगर हम प्रकृति के साथ छेड़छाड़ न करें तो हमे खेती करने में किसी भी प्रकार की कोई असुविधा नहीं होगी, जुताई करने से असंख्य जीवाणु तो नष्ट होते ही है साथ ही झाड़ियाँ भी काट देते हैं जिनके सहारे असंख्य जीव-जन्तु, कीड़े-मकोड़े मर जाते हैं, पेड़ो के साथ झाड़ियाँ और झाड़ियों के साथ घास और अनेक वनस्पतियां रहती हैं जो एक दूसरे की पूरक होती हैं, अगर हम जुताई नहीं करते हैं तो हमारे खेत असंख्य वनस्पतियों से भर जाते हैं, बकरी पालन करते हैं जिससे खरपतवार का नियंत्रण होता है।”

ये कीड़े मकोड़े जमीन में बहुत काम करते हैं और मिट्टी को भुरभुरा बना देते हैं, इनके जीवन चक्र से खाद और पानी का संचार होता है। राजू टाईटस बिना जुताई के बीज बोने की प्रक्रिया के बारे में बताते हैं, "सीड बाँल बनाना बहुत ही आसान चीज है, सीड बाँल बनाने के लिए खेतों की मिट्टी, पहाड़ों से बहकर निकलने वाली मिट्टी, नदी-नालों और तालाब की मिट्टी या फिर वो मिट्टी जिससे मिट्टी के बर्तन बनते हैं, असली नाईट्रोजन इसी मिट्टी से मिलते हैं, यह मिट्टी सर्वोत्तम खाद है, इसी मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है इसमे किसी खाद की जरूरत नहीं पड़ती है, इस मिट्टी में असंख्य सूक्ष्म जीवाणु होते हैं जो खेत को उर्वरता प्रदान करते हैं।"

छुट्टियों में आसपास के बच्चे खेल-खेल में ये सीड बाँल बनाने के लिए हमारे फॉर्म पर आ जाते हैं

सीड बाँल बनाने के लिए अगर ये मिट्टी गीली है तो बीज के साइज के हिसाब से इसकी गोलियां बना लेते हैं उसके अन्दर बीज भी भर देते हैं, इन गोलियों को सूखा लेते हैं और बरसात आने पर अपने खेतों में फेंक देते हैं। राजू इन गोलियों को बनाने के बारे में अपने अनुभव साझा करते हुए बताते है, “गर्मियों की छुट्टियों में आसपास के बच्चे खेल-खेल में ये सीड बाँल बनाने के लिए हमारे फॉर्म पर आ जाते हैं, ये बाँल साल भर तक खराब नहीं होती हैं और बीज सुरक्षित रहता है, बरसात से पहले इन बालों को बनाकर सुखाने के बाद इन्हें खेतों में बिखरा देते हैं, बीज चिड़ियां और चूहे नही खा सकते।”वो आगे बताते हैं, “बरसात आने पर जो बीज जमीन के ऊपर से उगते हैं वो बहुत ताकतवर होते हैं, इनमे कीड़े नहीं लगते हैं, इन सीड बाँल की गोलियों में असंख्य सूक्ष्म जीवाणु होते हैं जो खेतों में जैविक खाद का काम करते हैं, पूरे साल बुआई होने वाली फसलों के बीज सीड बाँल बनाकर ही करते हैं, इस तरह से बोआई करने से एक एकड़ में लगभग 20 कुंतल की उपज हो जाती है जिससे चार पांच लाख की वार्षिक आय हो जाती है, अब तो कई जगह के किसान इसे देखने आते हैं, बकरी पालन भी किया है इससे शुद्ध दूध मिल जाता है और आसपास जमे खरपतवार ये साफ़ कर देती हैं।”

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