इस गाँव में सैनिटरी नैपकिन फेंकने के लिए किशोरी मटके का होता है इस्तेमाल

Update: 2017-03-30 19:16 GMT
पपना मऊ गाँव में ज्यादातर घरों में सैनिटरी नैपकिन फेंकने के लिए मिट्टी के बने मटके का इस्तेमाल हो रहा है, जिसे किशोरी मटका नाम दिया गया है

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। ‘पहले हम सैनिटरी नैपकिन खुले में फेंकते थे जिसके कारण कई बार खेत वालों से लड़ाई भी हो जाती थी, लेकिन अब हमने मिट्टी का ‘किशोरी मटका’ बनाया है, जिसमें हम सैनिटरी पैड को रखते हैं और जला देते हैं।’ यह कहना है 35 वर्षीय सुनीता कनौजिया का।

राजधानी लखनऊ से 20 किलोमीटर पूर्व स्थित पपना मऊ गाँव में ज्यादातर घरों में किशोरी मटका का इस्तेमाल हो रहा है जिन घरों में लोग इस्तेमाल नहीं कर रहे वहां स्थानीय जागरूक महिलाएं और लड़कियां जागरुकता फैला रही हैं।

आंगनबाड़ी में सहायिका का काम करने वाली सुनीता कनौजिया ( 35 वर्षीय ) हमेशा घर में किशोरी मटका का इस्तेमाल करती हैं। गाँव में हुए इस बदलाव में उनकी काफी भूमिका रही है। सुनीता बताती हैं कि पहले हम लोग माहवारी के दिनों में इस्तेमाल किए गए कपड़े या पैड को पॉलीथिन में डालकर खेत में फेंक देते थे जिसके बाद आवारा जानवर उसे बीच सड़क पर ले जाकर नोंचते थे। इस वजह से आसपास गंदगी तो फैलती ही थी, साथ ही हमें काफी शर्मिंदगी का सामना करना भी पड़ता था लेकिन किशोरी मटका के इस्तेमाल के बाद यह परेशानी खत्म हो गई है।

क्या है किशोरी मटका

सैनिटरी पैड को लेकर अभियान वात्सल्य एनजीओ द्वारा शुरू किया गया है। इसके जरिए मिट्टी का मटका बनाकर महिलाएं अपने घरों में रख लेती हैं। माहवारी के दौरान कपड़े या पैड को इस्तेमाल करने के बाद उस मटके में रख देते हैं। मटके के अंदर नीम का पत्ता रखा जाता है जो कीटाणु नाशक का काम करता है। एक-दो महीने बाद मटके में आग लगा देते हैं जिससे कपड़ा और पैड जल जाता है। फिर राख को फेंक दिया जाता है और दोबारा मटके का इस्तेमाल शुरू हो जाता है।

वात्सल्य से जुड़ी अंजुम मौर्या बताती हैं, ‘वात्सल्य संस्था और वाटर ऐड दोनों मिलकर स्वस्थ भारत अभियान के तहत चुप्पी तोड़ो अभियान लखनऊ के आठ ब्लॉक में चला रहा है। इसके तहत हम आसपास की साफ-सफाई के साथ-साथ व्यक्तिगत साफ-सफाई की बात करते हैं। इस अभियान की शुरुआत में हमने महिलाओं से पूछा कि माहवारी के दिनों में इस्तेमाल कपड़ों का क्या करती हैं तो जवाब आया कि या तो तालाब में या कूड़े के साथ फेंक देते हैं। इसके बाद हमने लोगों को समझाया और आज बदलाव दिख रहा है। पपना मऊ गाँव में ही 35 से ज्यादा परिवार किशोरी मटका इस्तेमाल करता है।’

कपड़े के बजाय सैनिटरी नैपकिन को तरजीह

पपना मऊ गाँव की रहने वाली शीलम सिंह (23 वर्ष) बताती हैं कि हमारे घर में आठ महिलाएं और लड़कियां हैं। पहले हम लोग भी माहवारी के दिनों में इस्तेमाल कपड़े और सैनिटरी पैड को कूड़े के साथ बाहर फेंक देते थे लेकिन अब हम उसे जला देते हैं। शीलम आगे बताती हैं कि अब गाँव में ज्यादातर महिलाएं सैनिटरी पैड ही इस्तेमाल करने लगी हैं। कुछ महिलाएं कपड़े इस्तेमाल करती हैं तो भी वे भी साफ कपड़े को ही तरजीह देती हैं । वैसे भी अब सूती कपड़े कम होने के कारण लोग सैनिटरी पैड ही इस्तेमाल करते हैं।

गाँव में कूड़ादान नहीं है

नूरजहां (35 वर्ष) बताती हैं कि सैनिटरी पैड या कपड़ा बाहर फेंकने के कारण हमारी कई बार लोगों से लड़ाई भी हुई है। गाँव में कोई कूड़ादान नहीं है और न ही कोई कर्मचारी आता है जिस वजह से हमें नैपकिन फेंकने की कोई जगह नहीं मिलती, खुले में फेंकने से लोग लड़ाई करते हैं।

साथ ही यह सेहत के लिए भी ठीक नहीं है। हमने ज़मीन में गाड़ना शुरू किया तो कुत्ते ज़मीन से निकालकर सड़क पर लेकर चले आते थे, लेकिन अब हम सैनिटरी पैड को किशोरी मटका में रखकर जला देते हैं। नूरजहां आगे बताती हैं कि गाँव में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अभी भी खुले में ही नैपकिन फेंकते हैं तो हम उन्हें समझाते हैं।

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