वर्षों से बंद पड़ी गंगा प्रयोगशाला, अब नहीं बनेगा कोई रिवर इंजीनियर

काशी विश्वविद्यालय के अंदर गंगा और नदियों के संरक्षण के लिए चलने वाली गंगा प्रयोगशाला पर 2011 से ही ताला लटका हुआ है। उसके बाद से ही इस प्रयोगशाला से न कोई रिवर इंजीनियर निकला है, और न ही आगे कोई रिवर इंजीनियर निकलेगा।।

Update: 2019-06-18 07:07 GMT

अमल श्रीवास्तव, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

वाराणसी(उत्तर प्रदेश) । नमामि गंगे परियोजना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वकांक्षी योजनाओं में से एक मानी जाती है। 2014 में एनडीए की सरकार आने के बाद गंगा की सफाई के लिए अलग से मंत्रालय भी बनाया गया। गंगा सफाई के लिए कई एनजीओ भी आगे आते दिखे। इसको लेकर लगातार अभियान भी चलाया गया। लेकिन इसके इतर काशी विश्विद्यालय के अंदर गंगा और नदियों के संरक्षण के लिए चलने वाली गंगा प्रयोगशाला पर 2011 से ही ताला लटका हुआ है। उसके बाद से ही इस प्रयोगशाला से न कोई रिवर इंजीनियर निकला है, और न ही आगे कोई रिवर इंजीनियर निकलेगा।

1985 में की गई थी गंगा प्रयोगशाला की स्थापना

स्वच्छ गंगा व निर्मल गंगा के लिए सरकार ने करोड़ो रुपए खर्च कर दिए, लेकिन गंगा की स्थिति में अभी भी ज्यादा सुधार नहीं है। बीएचयू के रिटायर्ड प्रोफेसर और गंगा वैज्ञानिक प्रोफेसर यू.के.चौधरी बताते हैं, "साल 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने गंगा की समस्याओं को देखते हुए काशी हिंदू विश्वविद्यालय के अंदर गंगा प्रयोगशाला की स्थापना की थी। उस समय गंगा की समस्याओं के निदान के लिए 12 वैज्ञानिकों की टीम बनाई गई थी। जिन्होंने साथ मिलकर इस प्रयोगशाला के कार्यप्रणाली पर चर्चा की और फिर इस प्रयोगशाला की स्थापना की गई।


देश की पहली प्रयोगशाला जहां सिखाई जाती थी नदियों की मॉडलिंग

प्रोफेसर चौधरी आगे कहते हैं, "गंगा प्रयोगशाला से जो भी रिवर इंजीनियर निकलते थे, उन्हें नदियों के मॉडलिंग सिखाई जाती थी। बिना नदियों के मॉडलिंग के नदियों की समस्याओं को दूर ही नहीं किया जा सकता। प्रोफेसर यूके चौधरी कहते हैं कि जब तक आपको पते नहीं होगा कि नदी में प्रदूषण कैसे फैलता है, नदियां मिट्टी का कटाव कैसे करती हैं, मिट्टी के कटाव से कैसे बचाव किया जाए। बाढ़ जैसी समस्याओं पर कैसे नियंत्रण किया जाए तब तक आप किसी भी नदी की समस्या का निदान नहीं कर सकते हैं।"

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गंगा प्रयोगशाला देश की पहली प्रयोगशाला रही है जहां नदियों की मॉडलिंग की पढ़ाई कराई जाती थी। यहां से 50 स्टूडेंट्स ने एम.टेक. पूरा किया है। तीन ने अपनी पीएचडी भी कंप्लीट की है। लेकिन 2011 के बाद से ही प्रयोगशाला पर ताला लटका हुआ है। अब शायद ही भविष्य में इस प्रयोगशाला को फिर से शुरू किया जाए और यहां से कोई रिवर इंजीनियर निकले। 

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