गुजरात: कुम्हारों के सामने रोजी-रोटी का संकट, लागत बढ़ने के कारण बढ़ी मुश्किल

Update: 2019-07-25 13:53 GMT

उमेश कुमार, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

छोटा उदयपुर(गुजरात)। "हमारी तीन पीढ़ी मिट्टी के बर्तन बनाते आ रही है। पहले इतनी समस्या नहीं थी। लेकिन चार पांच सालों से काफी समस्या हो गई है। मिट्टी जल्दी नहीं मिलती। पहले जहां से मिट्टी लाते थे उस जमीन को फॉरेस्ट विभाग ने ले लिया है। अब हमको लकड़ी बेच कर मिट्टी लानी पड़ती है। मिट्टी लाने के लिए ट्रैक्टर वाले पंद्रह सौ से सोलह सौ रुपए ले लेते हैं।" सुभाष भाई वरिया कहते हैं, जो गुजरात के छोटा उदयपुर में मिट्टी का बर्तन बनाते हैं।

छोटा उदयपुर का जोज गांव मिट्टी के बर्तन बनाने को लेकर मशहुर है। इस गांव में मिट्टी के बर्तन बनाने वाले 14 परिवार रहते हैं, लेकिन अब केवल 4 परिवार ही इस काम को कर रह हैं। इन 4 परिवारों में से भी केवल दो परिवार ही लगातार मिट्टी बनाने के काम करते हैं, बाकि दो परिवार कभी कभार जरूरत पड़ने पर ही मिट्टी के बर्तन बनाते हैं।

अब मिट्टी के लिए पैसे खर्च करने पड़ते हैं 

मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कमलेश भाई वरिया कहते हैं, "हम अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी हैं जो मिट्टी का बर्तन बनाते हैं, लेकिन हमारी चौथी पीढ़ी मिट्टी की कमी की वजह से इस काम को शायद ही जारी नहीं रख पाए। मिट्टी कहीं मिलती ही नहीं, इसलिए हमें खेतों से मिट्टी से लाना पड़ता है, जिसकी कीमत ज्यादा पड़ती है। इस वजह से हमारा व्यवसाय बेहद नीचे गिर गया है।

कमलेशभाई के दो लड़के हैं। एक कॉलेज में पढ़ता है। वह चाहते हैं कि उनके बच्चे भी उनकी पुश्तैनी काम करें। उनका कहना है कि इस व्यवसाय से जितना फायदा होना चाहिए उतना नहीं होता है। सरकार भी अब ज्यादा ध्यान नहीं देती है।

पहले आसानी से मिल जाती थी मिट्टी

पहले इन कुम्हारों को आसानी से मिट्टी मिल जाती थी। जहां से मिट्टी लाते थे वह  सरकारी जमीन थी। सरकार ने वहां से मिट्टी निकालने पर रोक लगा दी है। सुभााष भाई कहते हैं कि मिट्टी के बर्तन बनाते ही उनका काम खत्म नहीं हो जाता है। मिट्टी की बर्तन बनाने के बाद घर की महिलाओं को दूर गांवों और शहरों में जाकर उन बर्तनों को बेचना पड़ता है। तब जाकर हमारे घरों का चूल्हा जलता है।

ये भी पढ़ें- भारत में कुम्हारों का वो गांव , जहां के कारीगरों का हाथ लगते ही मिट्टी बोल उठती है...

नहीं चाहते उनके बच्चे इस काम को करें

कमलेश भाई वरिया और सुभाष भाई वरिया दोनों कहते हैं कि मिट्टी का बर्तन बनाना भी हस्तकला में आता है। अगर सरकार अन्य हस्तकलाओं की तरह हमारे व्यवसाय पर ध्यान नहीं देती है तो वह इस कला को खो देगी। इस पर जल्द कुछ नहीं किया गया तो मिट्टी का बर्तन बनाने वाले जल्दी मिलेंगे ही नहीं।

Similar News