‘सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक की व्यवस्था का विरोध करे सरकार’

Update: 2016-09-25 17:28 GMT
मुस्लिम महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने सरकार से देश की सबसे बड़ी अदालत में इस ‘महिला विरोधी’ प्रथा का विरोध करने की मांग की।

नई दिल्ली (भाषा)। केंद्र सरकार की ओर से तीन तलाक के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय में सख्त रुख अपनाने की संभावना के बीच देश की कुछ प्रमुख मुस्लिम महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने रविवार को कहा कि सरकार को देश की सबसे बड़ी अदालत में इस ‘महिला विरोधी’ प्रथा का विरोध करना चाहिए और इस पर रोक सुनिश्चित कराना चाहिए।

सरकार के सूत्रों के हवाले से खबर आई है कि सरकार न्यायालय में यह पक्ष रखेगी कि एक साथ तीन तलाक को शरीयत के तहत अपरिहार्य और अपरिवर्तनीय बताना पूरी तरह गलत है और यह अनुचित, अतार्किक और भेदभावपूर्ण है, क्योंकि दुनिया के ढेर सारे मुस्लिम देशों में शादी के कानून को लेकर नियमन की व्यवस्था है। इस महीने के अंत में कानून मंत्रालय उच्चतम न्यायालय के समक्ष इस मुद्दे पर अपना जवाब दाखिल करेगा।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को खुद तीन तलाक की व्यवस्था को खत्म करने के लिए प्रयास करना चाहिए था। पर उसने ऐसा नहीं किया। अब सरकार को इस बारे में सख्त रुख अपनाना चाहिए और उच्चतम न्यायालय में मुस्लिम महिलाओं के अधिकार की बात करनी चाहिए।
नूरजहां सफिया नियाज, ‘भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन’ की सह-संस्थापक

सामाजिक कार्यकर्ता और स्तम्भकार नाइश हसन का कहना है, ‘‘शाह बानो मामले के समय ही पर्सनल लॉ बोर्ड को एक साथ तीन तलाक के मसले पर सोचना चाहिए था। ये लोग जो उस समय कर रहे थे, वही बात अब कर रहे हैं। ये मुस्लिम महिलाओं को उनका हक नहीं देना चाहते।’’

अब सरकार अगर एक साथ तीन तलाक की व्यवस्था के खिलाफ कोई कदम उठाने जा रही है तो हम इसका स्वागत करते हैं। हमारी मांग है कि सरकार मुस्लिम महिलाओं के अधिकार के पक्ष में रुख अपनाए।
नाइश हसन, सामाजिक कार्यकर्ता और स्तम्भकार

मुस्लिम और दलित महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काम करने वाले संगठन ‘तहरीक-ए-निसवां’ की अध्यक्ष ताहिरा हसन का कहना है कि एक साथ तीन तलाक की व्यवस्था महिला विरोधी है और सरकार को इस पर रोक के लिए प्रयास करने चाहिए। ताहिरा ने कहा, ‘‘मेरी समझ में यह नहीं आता कि पर्सनल लॉ बोर्ड में बैठे मौलाना लोग एक साथ तीन तलाक की पैरवी क्यों कर रहे हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और कई मुस्लिम देशों में इस पर रोक लग चुकी है। इस महिला विरोधी व्यवस्था का खत्म होना जरुरी है।’’

सूत्रों के अनुसार केंद्र की यह भी सोच है कि इस मुद्दे को समान नागरिक संहिता के चश्मे से नहीं देखा जाए, बल्कि इसे लैंगिक न्याय और महिलाओं की बुनियादी स्वतंत्रता के मुद्दे के तौर पर देखा जाना चाहिए। गृहमंत्री राजनाथ सिंह, वित्तमंत्री अरुण जेटली, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने पिछले हफ्ते बैठक की थी और एक साथ तीन तलाक कहने (तलाक-ए-बिदअत) पर उच्चतम न्यायालय में सरकार के संभावित रुख पर चर्चा की थी।

इन मंत्रियों ने बहुपत्नी प्रथा और ‘निकाह हलाला’ पर भी चर्चा की थी। निकाह हलाला में तलाक के बाद अगर महिला और पुरुष को फिर से आपस में शादी करनी हो तो उसके लिए जरुरी होता है कि महिला किसी अन्य से शादी करे और उसके बाद फिर नए शौहर को तलाक दे कर पूर्व पति से शादी करे।

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