जब किसान को पोस्ट ऑफिस के ज़रिये मिला उन्नत बीज

Update: 2015-11-11 05:30 GMT

सीतापुर। सीतापुर के कटिया गाँव के किसान निर्मल तिवारी को इस बार जब केवीकी और नज़दीकी पोस्ट ऑफिस के ज़रिये उन्नत सरसों का बीज मिला, तो एक ऐसे वितरण तंत्र की परिकल्पना पूरी होती नज़र आई, जो महंगे-मिलावटी बीज, बीज केन्द्रों से दूरी जैसी किसानों की समस्याओं को दूर करने में सक्षम है|

देश की राजधानी दिल्ली के पश्चिम में लगभग 500 किमी दूर स्थित तिवारी को सीधे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से आयी सरसों की उन्नत किस्म टीएम-26 के आधा किलो बीज केवीके और पोस्ट ऑफिस द्वारा उपलब्ध कराये गए। ''नए बीज मिलने के साथ हमें इसे उगाने की ट्रेनिंग भी दी गई, जिसमें हमें पानी की ख़पत और खाद की मात्रा के बारे में बताया गया,” निर्मल (45 वर्ष) बताते हैं|

अगर प्रयोग सफल रहा तो देश में उन्नत बीजों के बाजार में यह तंत्र एक क्रांति हो सकता है, क्योंकि इससे बीज की बंदरबांट, मिलावट और जमाखोरी पर लगाम लग पायेगा|

तिवारी का चायन एक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की एक पायलट परियोजना के तहत किया गया है| पायलट परियोजना यह कि किसान को पोस्ट ऑफिस के ज़रिये सीधे वैज्ञानिक द्वारा बनाया गया उन्नत बीज भेजा जा सके| फिलहाल यह तंत्र स्वरुप ले रहा है, अभी केवीके को वितरण नेटवर्क में इसलिए भी रखा गया है ताकि किसानों को इन बीजों की एहमियत और सही उपयोग की ट्रेनिंग दी जा सके| 

''बीज को बढ़ने के समय हमें कुछ खास बातों का ध्यान रखना होता है वरना परागण के माध्यम से अन्य बीजों के शामिल होने की संभावना बढ़ जाती है” सीतापुर केवीके के वैज्ञानिक डॉ शैलेन्द्र ने बताया|

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के कृषि विस्तार विभाग द्वारा संचालित इस पायलेट परियोजना के  संचालक डॉ राजस बर्मन भी लागातार नज़र बनायें हैं कि ये वितरण तंत्र कितना सफल है| वे बताते हैं, ''हम इस योजना के ज़रिए उन्नत बीजों को उन किसानों तक पहुंचा रहे हैं, जो बाज़ार तक नहीं पहुंच पाते। हम उन्हें ब्रीडर और फॉउडेशन बीज देते हैं, जिसे वह बढ़ा कर अगले दो-तीन साल तक इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरह से उन्नत क्वालिटी का बीज किसानों को सीधे मिल जाएंगे। यह पाइलेट चरण है, इससे हमें जो नतीजे मिलेंगे उसी से परियोजना का भविष्य तय होगा।”

सीतापुर के पारसेंडी ब्लॉक के गाँव हरीहर के किसान मिश्री लाल (55 वर्ष) को जुलाई में चार किलों उन्नत धान का बीज मिल गया था, जिसे उन्होंने एक चौथाई एकड़ में लगाया था। ''जो धान का बीज केवीके वालों ने दिया वह धान बहुत अच्छी किस्म का पतला धान था। सिंचाई अच्छे से नहीं हो पाई वरना अच्छी पैदवार देता” उन्होंने बताया।

पायलट परियोजना के तहत अभी मौजूदा वितरण प्रणाली की संरचना समझाते हुए डॉ शैलेन्द्र कहते हैं कि इसके लिए सबसे पहले आईएआरआई कुछ केवीके का चयन करता है, जिसके बाद केवीके को अपने पास के पोस्ट ऑफिसों से एक-एक पोस्ट मास्टर का चयन करना होता है। इन पोस्ट मास्टर को अपने क्षेत्र के किसानों का चयन करके केवीके वैज्ञानिकों को बताना होगा। अंतिम चरण में चयन किए गए किसानों को केवीके ट्रेनिंग देगा और उन्नत बीज वितरित करेगा।

अभी आईएआरआई केवीके को बीज भेजता है और केवीके उसे किसानों को वितरित कर देता है। कुछ समय बाद जब पूरा चैनल विकसित हो जाएगा तब पूसा सीधे किसानों को उनके पते पर बीज भेज सकेगा। 

आईएआरआई से अभी केवीके को बीज की जो मात्रा प्राप्त हो रही है, वह उस मात्रा को किसानों में बराबर बांट दे रहे हैं। यह बीज किसानों को फ्री दिया जा रहा है ताकि वह इनसे अधिक मात्रा में बीज बना सके। बीज बढ़ने के बाद किसानों को बीज की उतनी मात्रा केवीके को वापस करनी होगी, जितनी उन्हें फ्री मिली थी। इस तरह से केवीके उन बीजों को और ज़्यादा किसानों तक पहुंचा सकेंगे।

''हमारी यह भी योजना है कि किसानों को एक ऐसा समूह बनाया जा सके जो उन्नत बीज को बढ़ा कर ज्यादातर किसानों को दे सके। हालांकि इसमें कुछ समय ज़रुर लगेगा लेकिन इससे हमें आने वाले सालों में बहुत बड़ा लाभ मिलेगा” डॉ बर्मन ने कहा।

''आमतौर पर जब हमें किसी बीज को बाजार में भेजने के लिए अनुमति मिल जाती है, तब हम उसे बीज विकास एजेंसियों को देते हैं और वह उसे मल्टीप्लाई करके किसानों के नज़दीक बीज केंद्रों तक पहुंचाते हैं, इस प्रक्रिया में तीन साल लग जाते हैं। अगर पाइलेट योजना सफल रही तो बीज उगाने की अनुमति मिलते ही सीधे बीज हम किसानों को पहुंचा सकेंगे” डॉ बर्मन ने बताया।

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