कभी स्कूल से भागकर सड़क किनारे कैर बेचने वाले बच्चे, अब हर दिन पढ़ने आते हैं

जैसलमेर के पोखरण के एक गाँव के एक सरकारी स्कूल के प्रधानाचार्य महेश प्रजापत कक्षा से दूर रहने वाले छात्रों को वापस लाते हैं और उन्हें बेहतर शिक्षा देते हैं। यही नहीं वो नियमित रूप से अभिभावकों से भी मिलते रहते हैं।

Update: 2023-04-27 06:59 GMT

पोखरण (जैसलमेर), राजस्थान। महेश प्रजापत हर दिन अपने घर से हर सुबह 34 किलोमीटर की यात्रा करके जसवंतपुरा गाँव पहुंचते हैं, जहां वे 2020 से राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य हैं। स्कूल आठवीं कक्षा तक है, जिन्हें पढ़ाने के लिए आठ शिक्षक नियुक्त हैं। यहां पर आज लगभग 130 बच्चे नियमित रूप से स्कूल आते हैं, ऐसा तब नहीं था जब प्रजापत पहली बार यहां आए थे।

“मेरे सामने सबसे बड़ी चुनौती अनुपस्थिति से निपटने की थी। बहुत कम बच्चे, जिनकी 40 से अधिक नहीं होती थी, स्कूल आते, जबकि 110 बच्चों को नामांकन था, "32 वर्षीय प्रिंसिपल ने गाँव कनेक्शन को बताया। इसलिए, स्कूल के घंटों के बाद प्रजापत नामांकित छात्रों के घरों में यह जानने के लिए जाने लगे कि ऐसा क्यों है।


“अपना होमवर्क पूरा न करने से लेकर, यूनिफार्म और जूते न होने जैसे कई कारण थे। उनमें से कई या तो गाँव की दुकानों में काम करते थे या स्टेट हाईवे के किनारे खड़े होकर कैर बेचते थे, ”प्रजापत ने कहा।

उन्होंने माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल भेजने की सलाह देना शुरू किया और उन्हें ऐसा करने का महत्व बताया। उन्होंने कहा, 'स्कूल स्टाफ की मदद से हमें सभी बच्चों के लिए जूते भी मिले।' प्रजापत ने कहा कि प्रयास रंग लाए और आज लगभग 130 बच्चे नियमित रूप से स्कूल आते हैं, "उन्होंने कहा।

प्रजापत ने कहा, कभी-कभी यह सिर्फ डर होता है जो कुछ बच्चों को दूर रखता है। “एक छात्र, प्रताप सिंह, तीन महीने से स्कूल नहीं आया था। शुरू में मुझे लगा कि वह बीमार है। लेकिन, जब कई दिन बीत गए तो वह दिखाई नहीं दिया, मैं उसके घर चला गया। वह मुझे देखकर घबरा गया। मुझे पता चला कि उसने स्कूल आना बंद कर दिया था क्योंकि कई दिनों पहले उसे दिया गया कुछ होमवर्क अभी अधूरा था, इसलिए वह नहीं आया था! मैंने उसे बिठाया और उससे कहा कि वह अपना होमवर्क अपने समय पर पूरा कर सकता है और कोई भी उसे कुछ नहीं कहेगा। तब से, वह नियमित आता है, ”प्रजापत हंसे।


प्रजापत ने कहा कि बुनियादी ढांचे के मामले में स्कूल को बहुत मदद की जरूरत थी। "शौचालय आदि की कमी, छात्रों के लिए एक बड़ी बाधा थी, विशेष रूप से लड़कियों और महिला कर्मचारियों के लिए, "उन्होंने कहा।

लेकिन, उन्होंने कुछ परोपकारी लोगों और लोगों के कुछ स्थानीय प्रतिनिधियों से संपर्क किया और उनकी मदद मांगी। स्कूल के लिए एक नया मुख्य द्वार तय किया गया था, एक टिन की छत लगाई गई थी जहां बच्चे सुबह में अपनी सभा करते थे। अब वाटर कूलर के माध्यम से बच्चों को साफ पीने का पानी मिल रहा है और लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट भी बन गए हैं। शौचालय आदित्य बिड़ला समूह की मदद से बनाए गए थे।

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