ट्रैक्टरों के आने से खत्म हो रही बैलों की अहमियत

Update: 2016-07-08 05:30 GMT
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बैरी दरियांव (कानपुर देहात)। कुछ साल पहले तक हर किसान के पास एक जोड़ी बैल रहते थे, जिससे खेत की जुताई की जाती थी, लेकिन अब ट्रैक्टर आने के बाद उनकी अहमियत पूरी तरह से खत्म हो गयी है।

किसी भी फसल के लिए तीन से चार बार खेत की जुताई करनी पड़ती है, एक बीघा खेत में एक जुताई में ट्रैक्टर से जुताई कराने पर 300 रुपए लग जाते हैं। चार जुताई के 1200 रुपए तब कहीं जाकर फसल की बुवाई की जाती है। जबकि पहले बैलों से जुताई करने पर इसका खर्च बच जाता था।

कानपुर देहात जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर पूरब दिशा में बैरी दरियांव गाँव है। गाँव की जनसंख्या करीब चार हजार है, आज से दस साल पहले गाँव में पूरी जुताई बैलों की जोड़ी से की जाती थी, बदलते परिवेश के साथ बैलों की जोड़ियों की जगह ट्रैक्टर ने ले ली है।

अभी भी कुछ किसान बैल से ही खेती कर रहे हैं। इस गाँव में रहने वाले किसान रामेश्वर (50 वर्ष) बताते हैं, “हमने हमेशा से अपनी खेती बैलों से की है, हमारे खेत चार-चार बिस्वा के टुकड़े हैं। इतने खेत हम आसानी से अपने बैलों से जोत लेते हैं। कम खेत जोतने के लिए ट्रैक्टर वाले जाते नहीं हैं और अगर जाते भी हैं तो एक बिस्वा का 50 रुपए लेते हैं और इसके बाद हमे खेत के कोनों की गुड़ाई अलग से करनी पड़ती है, जिसमें आधा दिन लग जाता है।” वो आगे कहते हैं, “ट्रैक्टर से जुताना घाटे का सौदा है। हम हर चीज बाजार से खरीद कर लाते हैं और अगर जुताई भी पैसों से कराने लगेंगे तब तो हम हमेशा कर्जे में ही रहेंगे।”

19वीं पशुगणना के अनुसार प्रदेश में 3,64,000 बैल की संख्या है, जबकि उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग की वेबसाइट के अनुसार दस लाख से ज्यादा ट्रैक्टर की संख्या है। वहीं ट्रैक्टर वाले किसान अपना अलग ही मत देते हैं। निखिल शुक्ला (22 वर्ष) बताते हैं, “हमारे यहां दस साल से ट्रैक्टर है पहले बड़े भैया चलाते थे अभी हम चलाते हैं। ट्रैक्टर की जुताई से समय की बचत हो जाती है। एक साल में चार बार सर्विसिंग करानी पड़ती हैं और एक बार में 2500 रुपए खर्च होते हैं।” वो आगे कहते हैं, “पर साल भर में अच्छी खासी कमाई हो जाती है जिससे घर के खर्च आसानी से चलते रहते हैं।” एक बीघा की 300 रुपए जुताई लेते हैं जिसमे 150 रुपए का डीजल लग जाता है। 150 रुपैये की बचत हो जाती है, 45 मिनट में एक बीघा खेत की जुताई हो जाती है।

संतोष अवस्थी (55) वर्ष बताते हैं, “जब अपन खेत जोते के होये तुरंत लैके चले जाओ, परखे कै नाई पड़त है।” बैलों से गहरी जुताई होती है और खेत की मिट्टी उपजाऊ होती है, बैल गरीब और अमीर कोई भी रख सकता है और इसे वक़्त पर बेचा भी जा सकता है जो हमारे काम आ जाता है।

स्वयं वालेंटियर: उमा शर्मा

स्कूल: प्रखर प्रतिभा इंटर कालेज

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

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