ग्रामीण बोले, “सपा सुप्रीमो को स्वीकार कर लेनी चाहिए सेवानिवृत्ति”

Update: 2016-12-31 17:40 GMT
प्रतीकात्मक तस्वीकर (साभार: गूगल)

लखनऊ। समाजवादी पार्टी में बीते कुछ महीने से चल रहे राजनीतिक दंगल का आखिरकार शनिवार को अंत हो गया। हालांकि, मन में आई इस दूरी का हक़ीकत से कितना साबका रहेगा, यह तो वक़्त बताएगा। फिर भी शुक्रवार की शाम को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पार्टी के थिंकटैंक माने जाने वाले सांसद रामगोपाल यादव के निष्कासन के बाद जो समीकरण बने उसे देखकर यह कहना लाजिमी है कि सपा सुप्रीमो को अब सेवानिवृत्ति स्वीकार कर लेनी चाहिए।

‘जनता के सामने अखिलेश ने अपनी अच्छी छवि बनाई है’

“दरअसल, साल 2012 में समाजवादी पार्टी ने जब विधानसभा चुनावों में अपना परचम फहराया तो सभी ने अखिलेश पर भरोसा जताते हुए उन्हें प्रदेश की सबसे बड़ी कुर्सी यानी मुख्यमंत्री का जिम्मा सौंप दिया था। स्वयं सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने भी अखिलेश को अपनी राजनीतिक विरासत दे दी थी। इसके बाद वे खुद नई दिल्ली में जाकर गठबंधन की राजनीति करने लगे।” यह कहना है सरोजनी नगर के मुल्लाहीखेड़ा गाँव में रहने वाले किसान जनार्दन यादव का। उनकी बात को बढ़ाते और अलाव तापते हुए नटकुर गाँव के रहने बब्लू सिंह ने कहा, “इस बीच अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री के पदभार को अच्छी तरह से पालन किया। योजनाओं की बरसात की। वरिष्ठ नेताओं के दबाव के बीच खुद को जनता के सामने स्थापित किया। जाहिर है, जनता के सामने अखिलेश ने अपनी छवि को अच्छा बना लिया। ऐसे में उन्हें वर्ष 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में खुलकर फैसले करने का भी अवसर देना चाहिए था। मुलायम सिंह को खुद ही सेवानिवृत्ति स्वीकार कर लेनी चाहिए थी।”

‘अखिलेश ने हमेशा अपने पुत्रधर्म का पालन किया’

वहीं, अलाव तापते शाम को सात बजे के करीब इस बैठक में मौजूद बिजनौर गाँव के रहने वाले यशस्वी प्रधान बोलते हैं, “अखिलेश यादव को जिस तरह से मंत्री गायत्री प्रजापति के सामने कुछ महीने पहले हार माननी पड़ी थी। वह नेताजी मुलायम सिंह के कारण ही हुआ था। एक ऐसा नेता (गायत्री) जो अवैध खनन के तमाम आरोपों से घिरा हुआ हो। जो हमेशा ही सपा के लिए किरकिरी का सबब बना रहा हो, वह मुलायम की शह पाकर खुद को निष्कासन के बाद भी मंत्रीमंडल में शामिल करवा लेता है। यह अखिलेश की हार थी। मुख्यमंत्री के पद की गरिमा का भी हनन हुआ था उस समय। फिर भी अखिलेश ने अपने पुत्रधर्म का पालन करते हुए मुलायम की सारी बातों को स्वीकार करते हुए मीडिया में अपना कदम छोटा कर लिया था। इसके बाद भी जिस तरह उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता का दिखाया गया है वह कहीं से भी उचित नहीं लग रहा है। यह चिंता का विषय है।” वे अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए और बिजनौर मार्ग स्थित नटकुर तिराहे के पास स्थित एक चाय की दुकान चलाने वाले मंटू को आवाज देते हुए चाय मांगते हुए कहते हैं, “पता नहीं क्यों नेताजी (मुलायम) इतनी जिद पर क्यों अड़े हैं? उन्हें समय को देखते हुए अपनी सेवानिवृत्ति को स्वीकार कर लेना चाहिए। पूत जब उनका नाम रोशन कर रहा है तो उसे मीडिया में कुपूत की तरह तो नहीं पेश करना चाहिए।”

‘अखिलेश को खुलकर काम करने दिया जाए’

इस बात पर अपनी मुहर लगाते हुए चाय की दुकान चलाने वाले मंटू भी कहते हैं, “भइया! सुबह से शाम तक लोग यहां चुनाव की बातें करते हैं। ऐसे में लोग यही कहते हैं कि अखिलेश को खुलकर काम करने दिया जाए तो यूपी का विकास हो जाएगा। लोगों के बीच अखिलेश ने अच्छी इज्जत बनाई है। जब उन्होंने मुख्यमंत्री बनाकर अखिलेश को सपा का जिम्मा सौंप दिया है तो फिर अपनी उम्र को देखते हुए सेवानिवृत्ति को स्वीकार कर लेना चाहिए।”

‘पार्टी में तोड़फोड़ का संदेश नहीं देना चाहिए’

प्रदेश में हो रही इस उठापटक के बीच जहां गाँवों में कुछ ऐसी चर्चा हो रही थी वहीं एक टीवी चैनल पर रात नौ बजे के प्राइम टाइम शो में एक राजनीतिक टिप्पणीकार कहते हैं, “मुलायम सिंह को अब यह मान लेना चाहिए कि उनकी राजनीतिक विरासत को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अच्छी तरह से संभाल रहे हैं। उन्हें अखिलेश के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की रणनीति बनानी चाहिए। जनता के मन में इस तरह से निष्कासन करके पार्टी में तोड़फोड़ का संदेश नहीं देना चाहिए। दिल्ली जीतने की उनकी चाह इस तरह के फैसलों से कभी परवान नहीं चढ़ने वाली। सपा प्रमुख को अब राजनीति से संन्यास लेने के साथ ही अखिलेश को खुलकर काम करने देने का अवसर देना चाहिए।”

चारों खाने चित्त करते हुए पार्टी में अपनी वापसी की

हालांकि, शनिवार की सुबह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के घर पर जिस तरह से कार्यकर्ताओं और विधायकों का हुजूम उमड़ा और मुलायम के घर पर सन्नाटा सा छाया रहा उसे देख सभी राजनीतिक विश्लेषकों का यही कहना है कि अखिलेश को सभी अपना सिरमौर स्वीकार कर लिया है। मुलायम को अब राजनीति से दूरी बना लेनी चाहिए। शायद, यही कारण है कि इतना बड़ा राजनीतिक दंगल तमाम दांवपेंच के बाद भी अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव के पक्ष में जा सिमटा। उन्हें परिवार में खिंचे इस दंगल के मैदान में सभी के चारों खाने चित्त करते हुए पार्टी में अपनी वापसी हासिल कर ली।


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