नोटा का प्रचार-प्रसार न करने पर हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा जवाब

Update: 2017-02-06 21:13 GMT
जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने मंगलवार तक जवाब मांगा है।

लखनऊ। नोटा पर दायर की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि नोटा का प्रचार-प्रसार उन्होंने क्यों नहीं किया? हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने आयोग को 24 घंटे के अंदर जवाब पेश करने के निर्देश दिए। यह जनहित याचिका लखनऊ के सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद शुक्ला ने लगाई थी।

नोटा को प्रभावी करने की जरुरत है इसीलिए मैंने याचिका लगाई थी, जिस पर कोर्ट ने चुनाव आयोग, केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
अरविंद शुक्ला, याचिकाकर्ता, लखनऊ

पिछले काफी समय से विभिन्न मुद्दों को लेकर आवाज़ उठाने वाले अरविंद शुक्ला ने बताया, “ नोटा को प्रभावी करने जैसे कई बेहद अहम मसलों को लेकर मैँने याचिका लगाई थी, जिसकी सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने चुनाव आयोग से जवाब मांगने के साथ ही इस मुद्दे पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, केंद्र सरकार और राज्य सरकार को भी जवाब देने के निर्देश दिए हैं।” इस मामले में मंगलवार को चुनाव आयोग हाईकोर्ट में अपनी दलीलें पेश करेगा।

नोटा का मतलब- ‘इनमें से कोई नहीं’

चुनाव के दौरान किसी भी पार्टी के उम्मीदवार को पसंद नहीं करने पर मतदाता नोटा का बटन दबा सकते हैं। हर ईवीएम मशीन में नोटा (नन ऑफ दी एबब) यानि इऩमें से कोई नहीं का बटन होता है। यानि जरुरी नहीं है आप गलत उम्मीदवार का चयन करें। भारत निर्वाचन आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में इनमें से कोई नहीं अर्थात `नोटा बटन की शुरुआत कराई थी। नोटा से उम्मीद थी कि दागी और थोपे गए उम्मीदवारों से मतदाताओं को आजादी मिलेगी। लेकिन इसका प्रचार प्रसार नहीं किया गया।

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