पूर्वांचल में काम कर गई नरेंद्र मोदी की ‘छड़ी’, सीटों से भरी झोली

Update: 2017-03-12 15:31 GMT
भारतीय समाज पार्टी का साथ बना ट्रंप कार्ड।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टीं की जीत में इस बार पीला झंडा और छड़ी ने भी बहुत योगदान दिया है। पूर्वांचल में सपा-कांग्रेस गठबंधन के साथ ही बसपा के चुनावी जीत के समीकरण को ध्वस्त करने के साथ ही इसने बीजेपी को पूर्वांचल में बड़ी जीत दिला दी। पीला झंडा और छड़ी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की पहचान है।

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इस बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के साथ चुनाव लड‍़कर जहां इस पार्टी ने चार सीटें जीती वहीं पूर्वांचल की 128 से ज्यादा सीटों पर बीजेपी को फायदा पहुंचाई। इस बारे में पूर्वांचल के वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार सिंह ने कहा '' अपनी स्थापना के 15 साल पूरी करने वाली इस पार्टी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ी दस्तक देकर सपा और बसपा जैसी पार्टियों का खेल बिगाड़ दिया है। माना जा रहा है कि इस बार की बीजेपी सरकार में कई मंत्रालयों पर भी इस पार्टी का कब्जा होगा। '' इस बार के विधानसभा चुनाव में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 6 लाख, 7 हजार 911 वोट मिले, वहीं कुल मतों में इसका प्रतिशत 0.7 प्रतिशत रहा।

27 अक्टूबर 2002 को वाराणसी के सुहेलदेव पार्क में बनारस के गांव फत्तेपुर के रहने वाले ओमप्रकाश राजभर ने 27 लोगों को लेकर जब सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का गठन किया था तो लोगों ने इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया। पूर्वांचल में निवास करने वाली एक खास जाति राजभर-बिंद की बदौलत यह पार्टी कोई बड़ा राजनीतिक चमत्कार नहीं कर पाएगी। एक शंका यह भी जताई गई कि इस जाति में बहुजन समाज पार्टी की काफी दखल है और परंपरागत तौर यह बसपा का वोट बैंक है। शुरूआत में इस पार्टी को बड़ी सफलता नहीं मिली लेकिन पूर्वांचल में 17.5 फीसदी आबादी वाले इस जाति की ताकत पर अमित शाह की पिछले लोकसभा चुनाव के समय पड़ी।

उन्होंने साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने गठबंधन किया जिसका पूर्वांचल में बीजेपी को जबर्दस्त फायदा हुआ। इसी को देखते हुए इस बार के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने इस पार्टी के साथ गठबंधन बनाकर ऐसी रणनीति बनाई कि पूर्वांचल में सपा और बसपा का सूपड़ा साफ हो गया। विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने भी ओबीसी की जिन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की घोषणा की थी उसमें राजभर जाति भी थ। लेकिन अखिलेश यादव इसका फायदा नहीं उठा पाए।

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