लोक कलाकारों के जरिए होगा चुनाव प्रचार, अभी से होने लगी एडवांस बुकिंग

Update: 2016-11-27 17:45 GMT
अपनी खूबसूरत प्रस्तुति देते लोक कलाकार।

लखनऊ। भईया दिन चुनाव के आए वोटर तू कर लेना जरूर...के बोल और परंपरागत मृदंग, ढोल, झाल, तुरही के साथ कुशीनगर जिले से आए लोक कलाकारों ने जब लखनऊ महोत्सव में थिरकना शुरू किया तो आसपास के लोग झूमने लगे। यह लोक कलाकार सिर्फ यहां ही नहीं, बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव में भी गांव-गांव जाकर लोगों को लोक संगीत पर झूमाएंगे।

राजनीतिक दलों ने किया संपर्क

इस कलाकार दल के मुखिया रामनरेश राम कहते हैं कि चुनाव प्रचार करने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों ने उनसे संपर्क किया है। कुछ लोग अभी से एडवांस बुकिंग भी किए हैं। चुनाव की घोषणा होते ही उनका दल प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार करना शुरू करेगा। कभी स्कूल का मुंह न देखने वाले और मुश्किल से अपना हस्ताक्षर करने वाले लोक कलाकार रामनरेश कहते हैं कि उनका नृत्यदल बहुत पुराना है। सदियों से यह गांव में चला आ रहा है। बचपन से ही उन्होंने गांव के लोगों के बीच ही इसे सीखा ओर जाना।

नोटबंदी के असर से लौट सकता है लोक कलाकारों का दौर

रामनरेश बताते हैं कि पहले जब शादी-ब्याह और शुभकार्य में हम लोग गांव-गांव जाकर प्रस्तुति देते थे। लेकिन बदलते समय के अनुसार अब उन लोगों की मांग कम हो गई है। मेले और महोत्सव को छोड़कर अब कलाकारों को याद नहीं किया जाता है। लेकिन जब भी चुनाव आता है तो जरुर उनका काम बढ़ जाता है। चुनाव प्रचार में पिछले कुछ सालों से सेलिब्रेटी के जरिए चुनाव प्रचार करने की डिमांड बढ़ी है, लेकिन इस बार नोटबंदी के असर से लोक कलाकारों का दौर दोबारा वापस लौटने की उम्मीद है।

कहरवा, मृदंगी और धोबियानाच दिलाएंगे वोट

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में सामाजिक और जातीय पहचान रखने वाले विभिन्न प्रकार के लोकनृत्य दलों की परंपरा रही है। यह दल सामाजिक उत्सवों और शादी-त्योहार में अपनी प्रस्तुति देते थे। लेकिन बदलते समय के अनुसार, इनकी डिमांड कम हो गई। नोटबंदी के बाद चुनाव प्रचार के लिए राजनीतिक दलों ने फिर से चुनाव प्रचार के परंपरागत तरीकों की ओर लौटने का फैसला किया है।

चुनाव में जरूर याद किया जाता है

गोरखपुर जिले खजनी तहसील के जिगिनाबाबू गांव के रामबदल मृदंगी नाच का दल चलाते हैं। वह बताते हैं कि मृदंगी नाच का इतिहास सदियों साल पुराना है। इसको सिर्फ दलित समाज के लोग ही करते हैं। उनका कहना है कि शादियों के सीजन में उन लोगों के पास बहुत काम होता है। शादी में मृदंग की नाच जरूर होती थी, लेकिन अब मुश्किल से काम मिलता है। लेकिन चुनाव में जरूर उन लोगों को याद किया जाता है। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी उन लोगों से विभिन्न राजनीतिक दलों के लोगों ने चुनाव प्रचार करने के लिए संपर्क किया है। वह लोग अपने दल के साथ गांव-गांव जाकर अपना परंरागत लोकनृत्य प्रस्तुत करके पार्टियों के लिए वोट मांगगे।

कम्युनिस्ट पार्टियों और बसपा ने शुरूआत में किया था प्रयोग

चुनाव प्रचार में नुक्कड़ नाटकों, लोक कलाकारों के जरिए चुनाव प्रचार करने का इतिहास देश की वामपंथी पार्टियों ने शुरू किया था, लेकिन यह कलाकार उनकी पार्टियों से जुड़े सांस्कृतिक फ्रंटल संगठनों से होते थे। लेकिन उत्तर प्रदेश में लोक कलाकारों का चुनाव प्रचार और पार्टी में विस्तार में सहयोग बहुजन समाज पार्टी ने किया था। बीएसपी के गठन से पहले डीएस-2 और बसपा का जब विस्तार किया जा रहा था तो गांव-गांव उनके समाज से जुड़े लोकदल जाकर सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश करते थे। कांशीराम ने बकायदा डीएस-4 का एक नाट्य दल बनवाया हुआ था। लेकिन राजनीति में बसपा जब स्थापिल दल हो गया था तो इन सांस्कृतिक दलों की भी पूछ कम हो गई। बीजेपी, कांग्रेस और सपा जैसे राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में फिल्मस्टार को इस्तेमाल करते रहे हैं, लेकिन वामपंथी अभी भी अपने परंपरागत तरीकों से ही चुनाव प्रचार करते हैं।

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