नकद चंदे की सीमा और भी कम हो सकती थी  

Update: 2017-02-05 20:05 GMT
फोटो प्रतीकात्मक है।

नई दिल्ली (भाषा)। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्तों का मानना है कि राजनीतिक पार्टियों के दिए जाने वाले नकद चंदे की सीमा दो हजार रुपए प्रति व्यक्ति तय किया जाना स्वागतयोग्य कदम है, लेकिन इन प्रावधानों को और कड़ा बनाया जा सकता हैं क्योंकि पार्टियां इन नियमों को तोड़ने का रास्ता ढूंढ सकती हैं।

निर्वाचन सदन में अपने कार्यकाल के दौरान चुनाव में सुधार के लिए बड़ी संख्या में प्रस्ताव देने वाले पूर्व आयुक्तों को आशंका है कि पार्टियां कानून की आंख में धूल झोंक सकती हैं, उन्होंने पूरी प्रक्रिया को ज्यादा पारदर्शी बनाने के लिए पार्टियों को नगदीहीन चंदा देने की प्रक्रिया शुरु किए जाने का भी सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को ऐसी पार्टियों को ‘गैर पंजीकृत' करने के अधिकार दिया जाना चाहिए जिन्होंने लंबे समय से चुनाव नहीं लडा है और इन्हें काले धन को वैध करने के साधन के रुप में इस्तेमाल किया जा रहा हैं.

चुनाव प्रक्रिया से काले धन का सफाया करने के लिए बजट में एक अहम प्रस्ताव दिया गया है जिसके अनुसार राजनीतिक पार्टियां एक व्यक्ति से केवल 2000 रुपए का नकद चंदा ले सकती हैं। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एच एस ब्रह्मा ने कहा, ‘‘ यह एक स्वागत योग्य कदम हैं हालांकि आदर्श नहीं है।'' उन्होंने कहा, ‘‘आज इसे घटा कर दो हजार किया गया है कल इसे शून्य किया जा सकता है। पैसा दान करने के अनेक तरीके हैं मसलन ऑनलाइन ,चेक तो आने वाले दिनों में नकद में चंदा क्यों देना। यह लोकतंत्र और चुनाव सुधार की दिशा में नई शुरुआत है।'' पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी ने इस नए प्रस्ताव पर थोडा शक जताया है। उन्होंने कहा,‘‘ अगर पुरानी कहानी दोहराई जाए तो राजनीतिक पार्टियां दावा कर सकती हैं कि 80 अथवा 90 प्रतिशत लोग हमें नकद देते हैं, वह हमें 2000 से कम देते हैं। तब तो हम घूम फिर कर वहीं आ जाते हैं।'' एक अन्य पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा कि यह कदम अच्छा है लेकिन यह और अच्छा होता अगर आयोग सभी नकद चंदे को बंद करके नकदीहीन तंत्र की सिफारिश करता।


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