सौ बाहुबली हर बार बनते हैं माननीय

Update: 2017-02-26 13:50 GMT
पचास मुकदमे हों या उम्मीदवार जेल में, शायद मतदाता को इससे फर्क नहीं पड़ता है।

लखनऊ। पचास मुकदमे हों या उम्मीदवार जेल में, शायद मतदाता को इससे फर्क नहीं पड़ता है। तभी तो मुख्तार अंसारी, राजा भइया, अखिलेश सिंह, हरीशंकर तिवारी, जैसे करीब 100 नाम हैं जो खुद या उनके खड़े किये गये प्रत्याशी हर बार चुनाव जीतते हैं। इनके लिए बाहुबली की ये छवि चुनाव जीतने का काम करती है।

चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली एनजीओ एडीआर इलेक्शन वॉच के सर्वे के मुताबिक सात चरण के चुनाव में करीब 400 दागी उम्मीदवार उतारे गए हैं। इनमें से कम से कम 100 उम्मीदवारों को बाहुबली की श्रेणी में रखा जा सकता है।

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दागी उम्मीदवारों के काम करने का तरीका अलग होता है। ये अपनी रॉबिनहुड छवि को अपने क्षेत्र में बनाए रखते हैं। इलाकाई लोगों की समस्याओं का समाधान, उनकी सामाजिक, आर्थिक और पारिवारिक मदद की जाती है। उनके घर के सुख दुख में शामिल होकर ऐसे उम्मीदवार अपने क्षेत्र में जनता की नजर में आदर्श बने रहते हैं।
संजय सिंह, संयोजक, एडीआर 

संजय सिंह बताते हैं कि राजनैतिक व्यवस्था में इनका प्रभाव इतना बढ़ जाता है कि, ठेकों, सरकारी कामों, धनी लोगों और अन्य समर्थ वर्ग के बीच में ये वसूली अभियान चला कर कमाई करते हैं। प्रभाव इतना अधिक होता है कि इनके नाम की पर्चियां ही काम चला देती हैं।

एडीआर ने पांचवें चरण में 11 जिलों की 52 विधानसभा सीटों पर लड़ रहे 617 में से 612 प्रत्याशियों के शपथ पत्रों के आधार पर रिपोर्ट जारी की है। ये चुनाव सोमवार को होगा।इस चरण में सबसे ज्यादा दागी उम्मीदवार बहुजन समाज पार्टी के हैं, इसके बाद भाजपा है। बसपा के 51 में 23, भाजपा के 51 में से 21, सपा के 42 में से 17, कांग्रेस के 14 में से तीन और रालोद के 30 में से आठ उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। जबकि 220 में से 19 यानी नौ फीसदी निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपने ऊपर आपराधिक मामलों का जिक्र किया है।

22 सीटों पर तीन से अधिक दागी उम्मीदवार मैदान में हैं। इनमें से 96 उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। नौ उम्मीदवारों पर हत्या तथा 24 पर हत्या का प्रयास और आठ उम्मीदवारों पर महिला उत्पीड़न के मामले दर्ज हैं। चार उम्मीदवारों के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज है। 156 उम्मीदवारों ने अपने पैन की डिटेल नहीं दी हैं। वहीं 612 में से 365 ने आयकर की अपनी डिटेल सार्वजनिक नहीं की हैं।

बाहुबली राजनीति का इतिहास

साल 1889 के बाद उत्तर प्रदेश में बाहुबली राजनीति का प्रभाव बढ़ा। इसके बाद में अपराध और राजनीति एक साथ होते गए। पूर्वांचल और पश्चिम में संगठित अपराध के बढ़ने के साथ धीरे धीरे पुलिस से बचने के लिए अपराधी राजनैतिक दलों से जुड़ने लगे। पूर्वांचल के अब तक के सबसे बड़े अपराधी माने जाने वाले शिवप्रकाश शुक्ला को गोरखपुर के एक राजनेता और पूर्व मंत्री का प्रश्रय जगजाहिर था। ओमप्रकाश श्रीवास्तव बबलू का नाम भी राजनैतिक हलकों में लिया जाता रहा था।

उनके खास दुश्मन लखनऊ के डालीगंज इलाके में रहने वाले माफिया छवि वाले अरुण शंकर शुक्ल अन्ना को एक समय मुलायम सिंह यादव की नजदीकी की वजह से मिनी चीफ मिनिस्टर तक कहा जाता था। इसी तरह से लखनऊ से उन्नाव तक रेलवे के ठेकों पर आधिपत्य रखने वाले अजीत सिंह भाजपा के एमएलसी रहे थे। जिनकी मौत अपने ही गनर की गोली से हुई थी। राजा भइया और मुख्तार अंसारी जैसे बड़े नाम भी सामने आने लगे। इसके बाद में धीरे धीरे रायबरेली में अखिलेश सिंह, गोंडा में बृजभूषण शरण सिंह और पंडित सिंह, राममूर्ति वर्मा जैसे नाम भी अपराधियों की फेहरिस्त में शामिल रहे।

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