मुलायम के ‘अजगर’ को तोड़ेंगे अजीत सिंह और शरद यादव 

Update: 2016-11-22 20:37 GMT
अजीत सिंह, मुलायम सिंह और शरद यादव (फोटो साभार: गूगल)।

लखनऊ। देश की राजनीति में विभिन्न जातियां का समीकरण बनाकर सत्ता में आने का फॉर्मूला पुराना है। ब्राम्हण, दलित और मुसलिम को एक साथ करके जहां कांग्रेस ने लंबे समय तक देश अैर उत्तर प्रदेश में राज किया, वहीं उसके इस समीकरण से ब्राम्हण और दलितों को अपने साथ मिलाकर बसपा सुप्रीमो मायावती भी उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार भी बना चुकी हैं। लेकिन इससे पहले देश में गैर कांग्रेसवाद की राजनीति करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत जातियों को एक साथ मिलाकर सियायत में अजगर फॉर्मूला की नींव रखी थी। जिसकी बदौलत उनको कामयाबी मिली थी, लेकिन उनकी मौत के बाद इस समीकरण का विस्तार करते इसमें मुसलिमों को जोड़कर मुलायम सिंह ने इसे आगे बढ़ाया।

ऐसे हैं जिलों में जातीय समीकरण

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 10-12 ऐसे जिले हैं, जहां पर जाट-गुर्जरों का वर्चस्व हैं। वहीं इटावा, मैनपुरी, बुलंदशहर, गाजियाबाद, उन्नाव, सीतापुर और कानपुर ऐसे जिले हैं, जहां पर अहीर यानि यादवों की अच्छी खासी आबादी है। वहीं पूर्वांचल और अवध के कई जिलों में राजपूतों का वर्चस्व है। लेकिन बदलते समय के साथ जहां जाट चौधरी अजीत सिंह के राष्ट्रीय लोकदल और बीजेपी की तरफ बंट गए हैं, वहीं राजपूतों का रूझान सभी पार्टियों की तरफ हो गया। जिसके बाद मुलायम सिंह ने माई (MY) यानि मुसलिम-यादव समीकरण बनाकर अपने को खड़ा किया।

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक

जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक और बीबीसी से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी का कहना है कि 1989 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के बाद लोकदल में सत्ता को लेकर संघर्ष हुआ, जिसमें एक खेमा जहां चौधरी चरण सिंह के वारिस अजीत सिंह को मुख्यमंत्री बनाना चाहता था, वहीं दूसरा खेमा मुलायम सिंह के साथ था। ऐसे में जीते हुए विधायकों के बीच मुख्यमंत्री के चुनाव को लेकर वोटिंग हुई, जिसमें 2 वोटों से जीत दर्ज करते हुए मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और अपने को चौधरी चरण सिंह का सच्चा सियासी वारिस साबित करने में जुटे। मुलायम और अजीत सिंह के बीच उसी समय से दूरियां हैं। हालांकि तीन दशक की सियासी उठापठक में दोनों कई बार साथ आए और गए हैं।

सपा को लग सकता है जोरदार झटका

आगामी यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर लग रहा था कि दोनों एक बार साथ आएंगे, लेकिन दोनों के रास्ते एक बार फिर अलग हो गए हैं। मुलायम सिंह ने अजीत सिंह की पार्टी से चुनावी गठबंधन की बात की थी, लेकिन वह अब मुकर गए हैं जिससे उनके खिलाफ राष्ट्रीय लोकदल, जनता दल युनाइटेड और बीएस-4 पार्टियों ने मिलकर एक नया गठबंधन बनाकर चुनावी मैदान में आने का फैसला कर चुकी हैं। इससे मुलायम सिंह के वोटबैंक में सेंध लगने के साथ ही कई सीटों पर सपा को जोरदार झटका लग सकता है। क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुसलमान एक बार फिर अजीत सिंह के साथ लामबंद हो रहा है। साथ ही नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल युनाइटेड का साथ मिलने से अवध और पूर्वांचल की कई विधानसभा सीटों पर निर्णायक कुर्मी वोट इस गठबंधन को मिल सकता है।

देश भी जब सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ लोहिया और चौधरी चरण सिंह की जमातों को एक साथ लाने की कोशिश हुई, मुलायम सिंह ने उस कोशिश को पूरा नहीं होने दिया। सांप्रदायिकता के खिलाफ महागठबंधन मुलायम सिंह नहीं बनने देते। ऐसा वह क्यों करते हैं यह मुलायम सिंह ही बता सकते हैं। हमारा मकसद बीजेपी को हराना है।
अजीत सिंह, अध्यक्ष राष्ट्रीय लोकदल

डेढ़ साल पहले पुराने लोकदल और जनता दल से निकली सभी छह पार्टियों को एक साथ लाने की सामूहिक कोशिश हमने की थी। हम चाहते थे कि चौधरी चरण सिंह और डा. राममनेाहर लोहिया के सभी अनुयायी एक साथ आएं। मगर मुलायम सिंह की वजह से यह मामला परवान नहीं चढ़ पाया। चौधरी चरण सिंह और डा. राममनोहर लोहिया के रास्ते से मुलायम सिंह भटक गए हैं।
शरद यादव, पूर्व अध्यक्ष जनता दल यूनाइटेड

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