सियासी रार बनेगी अखिलेश के लिए चमत्कार

Update: 2016-10-23 20:29 GMT
अखिलेश यादव (प्रतीकात्मक फोटो)

लखनऊ। ये तो होना ही था। होते-होते देर लगी। मुलायम सिंह यादव की सपा और अखिलेश यादव की सरकार के बीच कदमताल कभी नहीं हो सकी। दरअसल जिस तरह से अखिलेश सरकार चली वैसे सपा कभी नहीं चली। पीढ़ी का ये अंतर स्पष्ट होता रहा। मगर अब इस लड़ाई को लेकर बड़ा अनुमान ये है कि सबसे बड़े नेता बन कर यहां से अखिलेश यादव ही उभरेंगे। ये सियासी रार अखिलेश के लिए एक चमत्कार से कम नहीं होगा। भविष्य में उन पर चाचा और पिता के दबाव में रहने का धब्बा इस पूरे प्रकरण में मिट चुका है।

परंपरागत ढर्रे पर चलाने के इच्छुक

अखिलेश विकास की राजनीति के जरिये सपा को 2017 के चुनाव में ले जाना चाहते थे। ऐसे अधिकारी जिन पर सालों से सपा का ठप्पा लगा हुआ था, उनसे निजात पाकर अखिलेश विकास को तेजी से आगे बढ़ाने वालों पर भरोसा कर रहे थे। बाहुबलियों और माफियाओं से दूर साफ सुथरे युवा चेहरों को साथ लाना चाह रहे थे। मगर वहीं पार्टी में उनके चाचा शिवपाल यादव पार्टी को परंपरागत ढर्रे पर चलाने के इच्छुक रहे।

मगर विजेता तो अखिलेश ही होंगे

लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनैतिक विज्ञान के प्रोफेसर मनोज दीक्षित बताते हैं कि ये विवाद कई चीजों का मिक्सचर है। अखिलेश की सरकार और मुलायम सिंह की सपा दोनों चीजें मिसमैच। मुलायम सिंह यादव की जो स्वाभिवक पसंद रही हैं, वह धीरे-धीरे अखिलेश की नापसंद बन गई हैं। अखिलेश दूसरी इमेज के साथ सरकार चलाना चाहते हैं। दोनों तरह के माहौल हैं। इसी वजह से ये टूट हुई मगर सरकार भले गिरे, पार्टी भले टूट जाये, मगर विजेता तो अखिलेश ही होंगे।

अफसरशाही में भी जुदा अंदाज

मुलायम सिंह और शिवपाल की बात करें तो पुराने अफसरों की पोशाकों पर लगे दागों से उनको कोई गुरेज नहीं था। दीपक सिंघल उसका एक बड़ा उदाहरण रहे। अनेक अफसरों को सुपरसीड कर के उनके मुख्य सचिव बनने के पीछे शिवपाल यादव ही थे। मगर सीएम कभी भी राजी नहीं थे। इसी वजह से आलोक रंजन को उन्होंने अपना प्रधान सलाहकार बनाया। ताकि वे अपनी विकास योजनाओं को अपने हिसाब आगे बढ़ा सकें। पंचम तल पर भी मुख्य सचिव और प्रधान सलाहकार होने से अफसरशाही के दो ध्रुव साफ नजर आने लगे थे। इस बारे में सेवानिवृत्त पीसीएस अफसर और एक समय सरकार के खास माने जाने वाले अष्टभुजा प्रसाद तिवारी कहते हैं कि अखिलेश यादव अपने विकास कार्यों को लेकर बहुत अधिक सख्त थे। वे टाइमलाइन का बहुत ख्याल रखने वाले रहे हैं। इसलिए उनका तारतम्य पुराने अंदाज में काम करने वाले अफसरों से कभी भी नहीं बन सका।

मुख्तार के नाम पर पिछले दो महीने से बढ़ी रार

शिवपाल और अखिलेश के बीच बढ़ती रार की खबरें पिछले दो महीने में बहुत अधिक सामने आने लगी। बाहुबली मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल में सपा के विलय को लेकर ये तकरार हुई थी। शिवपाल की ओर से ये घोषणा की गई थी। मगर अखिलेश ने इस विलय को साफ मना कर दिया था। जिसके बाद में विभिन्न मौकों पर शिवपाल यादव ने तल्खी दिखाई थी। मगर मुलायम सिंह के बीच में आने बाद शिवपाल ने सार्वजनिक मंचों से सीएम की तारीफ भी की। जिसके बाद में ये मामला शांत हो गया था। सीएम ने जनेश्वर मिश्र पार्क में आयोजित कार्यक्रम में यहां तक कह दिया था कि मीडिया के लोगों से बच के रहना ये चाचा और भतीजा के बीच झगड़ा करवाना चाहते हैं। माना जा रहा था कि चाचा और भतीजे के बीच युध्द विराम हो गया है।

फिर से अमर प्रेम नहीं रास आया

जैसा कि मुख्यमंत्री के खुद के बयान में ये बात सामने आई कि समाजवादी पार्टी और सरकार की नीतियों को बाहरी लोग तो नहीं तय करेंगे। ऐसे में ये तय हो गया कि अमर सिंह के प्रति पुराने नेताओं का प्रेम अखिलेश यादव को कभी भी नहीं भाया। अमर सिंह चाहते थे कि जया प्रदा को सपा का उपाध्यक्ष बना दिया जाये। इसके अलावा अनेक अन्य मुद्दों में भी अमर सिंह ने दखल देना शुरू कर दिया था जो कि मुख्यमंत्री को रास नहीं आ रहा था। इसी वजह से उनकी नाराजगी बढ़ी।

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