अमर कथा से ही सपा में आया भूचाल

Update: 2016-10-23 20:13 GMT
अमर सिंह (प्रतीकात्मक फोटो)

लखनऊ। वह अमर हैं और उनकी कथा कहानियां भी। जब-जब समाजवादी पार्टी में कोई भूचाल आया, उसमें अमर सिंह नजर आते रहे। आजम खान पार्टी से गये, तब अमर सिंह थे। अब रामगोपाल गये, तब भी अमर सिंह हैं। मुलायम सिंह को रफीकुल मुल्क कहने वाले आजम पर भी अमर भारी पड़े। खुद को मुलायम का पुत्रवत बताने वाले रामगोपाल के लिए भी अमर सिंह ताबूत की अंतिम कील रहे। अमर सिंह की कहानियां अभी खत्म नहीं हुई हैं। संसद में नोट लहराये जाने के आरोपी होने से लेकर खुद को दलाल तक कह देने वाले अमर सिंह सियासत के केंद्र में कहीं पर्दे के पीछे खड़े हुए खुद को फिर से मासूम ही कहेंगे।

जो समाजवादी नहीं, वह काहे का मुलायमवादी

सितंबर के आगा में समाजवादी पार्टी में बाहरी कौन है, ये महासचिव रामगोपाल यादव के इस बयान से तय हो गया था कि वह अब ज्यादा दिन के मेहमान नहीं हैं। रामगोपाल ने कहा था कि जो समाजवादी नहीं, वह काहे का मुलायमवादी। ये बयान आमतौर से अमर सिंह गाहे बगाहे दिया करते हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी अमर सिंह पर अंगुली उठाई थी कि आखिर बाहरी लोग नहीं तय करेंगे कि सरकार कैसे चलाई जाएगी। कुल मिला कर सालों बाद एक बार फिर से अमर सिंह की वजह से समाजवादी पार्टी और राज्य सरकार के सामने बड़ा सियासी संकट मंडराने लगा है।

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बड़ों के खिलाफ अखिलेश ने खोला मोर्चा

पिछली बार इसी तरह का संकट तब आया था जब जयाप्रदा और अमर सिंह के मुद्दे पर आजम खान ने सपा छोड़ी थी। इस बार खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने बड़ों के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है। जबकि उनको साथ चाचा रामगोपाल का मिलता हुआ नजर आ रहा है।

आजमगढ़, अलीगढ़, कोलकाता से लखनऊ

अमर सिंह का मूल स्थान तरवाँ (आजमगढ़) है। उनके पिता हरिश्चन्द्र सिंह जब अलीगढ़ में रहते थे, तब 27 जनवरी 1956 को अमर सिंह का जन्म हुआ। हरिश्चन्द्र सिंह कोलकाता में अपने पिता विश्वनाथ सिंह द्वारा स्थापित ‘वर्मन एण्ड कम्पनी’ (विल्डिंग फिटिंग हार्डवेयर) का कारोबार संभालने के लिए सपरिवार अलीगढ़ से कोलकाता चले गए थे। अमर सिंह की हायर सेकेंडरी शिक्षा 4 मदनमोहन वर्मन स्ट्रीट स्थित खत्री विद्यालय से हुई। कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीए., एलएलबी की शिक्षा डिग्री ली।

कोलकाता में शुरू की छात्र राजनीति

1971-72 में अमर सिंह पश्चिम बंगाल के छात्र नेता सुब्रत मुखर्जी के नेतृत्व में कांग्रेस के छात्र परिषद में शामिल हो गए थे। यही सुब्रत मुखर्जी तत्कालीन सरकार में गृह राज्य मंत्री बने। तब अमर सिंह ने कोलकाता के ‘बड़ा बाजार’ जिला कांग्रेस की राजनीति से अपने राजनैतिक जीवन की शुरूआत की। जनता पार्टी का अभ्युदय हुआ वैसे ही एक झटके में सुब्रतो मुखर्जी के प्रति अमर सिंह की निष्ठा न सिर्फ बदल गई, बल्कि सुब्रतो मुखर्जी की जगह दूसरा राजनैतिक माई-बाप ढूढ़ने में भी अमर ने देर नहीं लगाई। अब अमर सिंह के राजनैतिक गुरू पश्चिम बंगाल में जनता पार्टी के नेता बाद में अमर सिंह जनता पार्टी से जुड़ गये। विजय सिंह नागर के नेतृत्व में अमर ने जनता पार्टी की सदस्यता स्वीकार कर ली थी।

वीर बहादुर सिंह लाए थे यूपी

कुछ समय बाद कोलकाता में कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ। इस राष्ट्रीय अधिवेशन में भाग लेने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सिंचाई एवं परिवहन मंत्री वीरबहादुर सिंह भी पहुँचे थे। वीर बहादुर सिंह से निकटता करने के बाद जब वे यूपी के मुख्यमंत्री बने तब अमर सिंह पहली बार लखनऊ आए। इसके बाद में यहां से दिल्ली पहुंचे। दिल्ली में माधवराव सिंधिया के नजदीकी बन कर अमर सिंह ने कांग्रेस की सियासत में भी हाथ आजमाए।

समाजवादी पार्टी में लाए थे कॉरपोरेट कल्चर

आखिरकार 2003 के बाद में वे मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी के नजदीक आ गए। अब तक कांग्रेसी चोला धारण करने वाले अमर सिंह देखते-देखते मुलायम सिंह यादव जैसे समाजवादी नेता के खास बन गए। उनको कारपोरेट समाजवादी कहा जाने लगा। अमर सिंह के इस रुख की वजह से समाजवादी पार्टी में आन्तरिक रूप से मुखर विरोध शुरू हो गया। सबसे पहले अंगुली उठाने वाले राजबब्बर को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता तक से निलंबित होना पड़ा। कई बार मंत्री रहे भगवती सिंह, पूर्व सांसद रहे बृजभूषण तिवारी, पूर्व विधायक मधुकर दिघे और विधायक राजमणि पाण्डे के अलावा छोटे लोहिया के नाम से विख्यात जनेश्वर मिश्र जैसे कद्दावर नेताओं को संगठन में उपेक्षित कर दिया गया। उनकी जगह पार्टी में अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, अनिल अम्बानी, जयाप्रदा, शिल्पा शेट्ठी जैसे कारपोरेट समाजवादियों ने लेना शुरू कर दी थी। अमर सिंह के सिर पर उत्तर प्रदेश विकास परिषद के अध्यक्षी का ताज पहना दिया गया था। मगर उनका विरोध बढ़ता गया। इस बीच में रामपुर में जया प्रदा के दखल और अमर सिंह के साथ तल्खी के चलते कद्दावर नेता आजम खान की सपा से विदाई हो गई।

परिवार के भीतर भी गूंजने लगे विरोध के स्वर

इसके बाद में परिवार के भीतर भी अमर सिंह को लेकर विरोध के स्वर गूंजने लगे। इसके बाद में दबाव में आए अमर सिंह ने तीन बार इस्तीफे के लिए पत्र मुलायम सिंह यादव को भेजा। आखिरकार तीन बार के बाद जब चौथी बार 6 जनवरी 2010 को अमर सिंह ने पार्टी के सभी पदों से मुक्त होने का इस्तीफा लिखा। तब मुलायम सिंह यादव ने 17 जनवरी 2010 को अमर सिंह को एक पत्र भेजा जिसमें उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया था। करीब चार महीने पहले जब राज्यसभा सदस्यों को चुना जाना था, तब अमर सिंह की एक बार फिर से समाजवादी पार्टी में वापसी हो गई। उनको राज्यसभा का सांसद बना दिया गया। उनके साथ में जयाप्रदा भी आईं।

अमर सिंह ही सपा की टूट की सबसे बड़ी वजह

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हों या फिर पूर्व राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव दोनों के लिए अमर सिंह ही सबसे बड़ी किरकिरी बने हुए हैं। दोनों कहते हैं कि वह ही सारे बवाल की जड़ हैं। मगर नेता जी मुलायम सिंह यादव और शिवपाल ये मानने को तैयार नहीं हैं कि अमर में कोई गड़बड़ है। जिसकी वजह से सपा टूट के आखिरी मुकाम पर खड़ी है।

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