लखनऊ (भाषा)। रमजान के पाक महीने में हाईटेक युवा पीढ़ी के रोजेदारों के लिए मोबाइल टेक्नोलॉजी वरदान साबित हो रही है। मोबाइल एप्लीकेशंस ने उर्दू और अरबी पठन-पाठन के धुंधलाते माहौल की वजह से दीन की बारीकियों से लगभग महरूम हो चुकी नई पीढ़ी के लिए रमजान की फजीलत (फायदों) से रूबरू होने का अच्छा जरिया उपलब्ध करा दिया है।
धर्मगुरुओं एवं इस्लामी विद्वानों का कहना है कि यह अच्छा चलन है, बशर्ते उन एप्लीकेशन में दी गयी जानकारी इस्लामी तालीम से अलग या खिलाफ न हो।
गूगल-प्ले पर ऐसे ढेरों मोबाइल एप्लीकेशन उपलब्ध हैं, जिनके जरिए रोजे की अनिवार्यताएं, रोजे की हालत में अपनाये जाने वाले तौर-तरीके, नमाज और तरावीह का तरीका, अजान की रूहानी टोन्स, खूबसूरत लिपि में लिखा कुरान शरीफ और उसका अनुवाद, नमाज के रिमाइंडर, विभिन्न परिस्थितियों में पढ़ी जाने वाली दुआओं समेत इस्लाम से जुड़ी तमाम जानकारियां मिलती हैं।
युवा मुसलमानों में इसका काफी क्रेज देखा जा रहा है। प्रमुख इस्लामी शोध संस्थान दारुल मुसन्निफीन शिबली एकेडमी के निदेशक प्रोफेसर इश्तियाक अहमद जिल्ली ने कहा कि अगर तकनीक से चीजों को समझने में मदद मिलती है तो कोई हर्ज की बात नहीं है। जिल्ली ने कहा कि खासकर धार्मिक एप्लीकेशंस की प्रामाणिकता की जांच के लिए एक तंत्र विकसित होना चाहिए। देश के प्रमुख इस्लामी शिक्षण 0संस्थान दारुल उलूम देवबंद के प्रवक्ता अशरफ उस्मानी ने कहा कि युवा पीढ़ी और अन्य लोग अगर रमजान और इस्लाम को समझने के लिए मोबाइल एप्लीकेशंस का इस्तेमाल कर रहे हैं तो यह अच्छा है।
200 से ज्यादा एप्लीकेशंस हैं मौजूद
गूगल-प्ले पर मुस्लिम प्रो, रमजान प्रो, रमजान नशीद, रमजान दुआज एण्ड अजकार, मुस्लिम कम्पेनियन और आई-मुस्लिम कुरान रमजान किबला समेत 200 से ज्यादा एप्लीकेशंस मौजूद हैं, जिनसे रमजान के माह से जुड़ी हर छोटी-बड़ी जानकारी मिल जाती हैं। आज की नेट-सैवी पीढ़ी रोजों के दरम्यान सहरी, अफ्तार और नमाज के लिए मस्जिदों की अजान पर निर्भर रहने के बजाय मोबाइल एप्लीकेशंस का इस्तेमाल करते देखी जा रही है।