बढ़ती महंगाई, दूध की कम कीमत: पशुपालकों के लिए लागत निकालना भी हो रहा मुश्किल

पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से पशु आहार जैसे दूसरे जरूरी चीजों के दाम भी बढ़े हैं, जिसका असर दूध व्यवसाय पर भी पड़ा है। अब तो पशुपालकों के लिए लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है।

Ashok ParmarAshok Parmar   4 March 2021 10:25 AM GMT

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मंदसौर (मध्य प्रदेश)। दिनेश पाटीदार ने हरियाणा से दुधारू गाय खरीदी थी ताकि उनका दूध का धंधा अच्छा चल जाए, लेकिन पशु आहार लगातार महंगा होता जा रहा है, दूसरी चीजों पर भी महंगाई का असर बढ़ता गया और अब डीजल पेट्रोल के दाम भी बढ़ने की वजह से खर्चे बढ़ते ही जा रहे हैं। अब तो दिनेश के लिए खर्च निकालना भी मुश्किल हो रहा है।

मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के किसान दिनेश पाटीदार की तरह दूसरे किसानों का भी हाल है, ऐसे में किसानों का कहना है कि दूध की कीमत 100 रुपए लीटर होनी चाहिए, नहीं तो अच्छे दूध की कीमत कम से कम 50 रुपए तो होनी ही चाहिए।

दूध की कीमतों को बढ़ाने को लेकर हरियाणा की खाप पंचायत के फैसले के बाद किसान एक मार्च से बाहर दूध नहीं भेज रहे हैं, अब दूसरे प्रदेशों में भी यही स्थिति होने लगी है। मंदसौर के किसानों की माने तो यहां औसतन किसानों को उनके दूध का दाम 19 रुपए लीटर से ज्यादा नहीं मिल पा रहा है तो वहीं अच्छे से अच्छे क्वालिटी के दूध का भी सरकारी डेरी पर 30 रुपए के लगभग ही मिल पा रहा है। सरकारी डेयरी पर जो दाम मिल रहा है उससे ज्यादा दाम निजी डेयरियों पर मिल रहा है। डीजल-पेट्रोल की कीमत बढ़ने से भी दूध का उत्पादन करने वाले किसानों को अब और ज्यादा नुकसान हो रहा है।

परेशान किसान दिनेश पाटीदार गाँव कनेक्शन से कहते हैं, "दूध का भाव सौ रुपए प्रति लीटर हो जाए तो फायदा मिलेगा। क्योंकि बाजार में आजकल पानी 20 रुपए लीटर मिल रहा है, लेकिन दूध का भाव 19 रुपए ही मिल पा रहा है। गाय भैंसों के रखरखाव में काफी खर्च हो रहा है, गाय बीमार हो जाए तो एक इंजेक्शन लगाने के 500 रुपए तो डॉक्टर ले जाता है। अब या तो दूध के दाम 100 रुपए लीटर किया जाए या फिर हम दूध बेचना ही बंद कर दें।"

किसानों का कहना है कि दूध की मौजूदा की कीमत से दुधारू पशुओं के लिए पशु आहार भी नहीं खरीद पा रहे हैं। लॉकडाउन के बाद से 60 किलो पशु आहार की एक बोरी 1450 रुपए में थी, अब उसी पशु आहार का दाम 1850 रुपए प्रति बोरी हो गया है, जोकि पहले से 400 रुपए ज्यादा है। इसके साथ ही पशुओं को भूसा, हरा चारा भी देना होता है। दिनेश कहते हैं, "औसतन एक गाय को खिलाने पर हर दिन 100 से 150 रुपए का खर्च आता है।"

जितना खर्च पशुपालक करते हैं, उसका आधा भी नहीं निकल पा रहा है। फोटो: David Brossard, Flickr

राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के अनुसार देश में लगभग 187.7 मिलियन टन (2018-19) दूध का उत्पादन होता है, जिसमें मध्य प्रदेश में 1,460 हजार टन दूध का उत्पादन होता है।

सरकारी डेयरी पर वही दूध खरीदा जाता है, जिसकी क्वालिटी सबसे अच्छी हो लेकिन अच्छी क्वालिटी होने के बावजूद भी उचित दाम नहीं मिल पा रहा सामान्यतः जो दूध आता है उसका भाव 19 से 22 रुपए के लगभग ही मिल पा रहा है जबकि गांव में ही बनी निजी डेयरियों के दूध कलेक्शन सेंटर पर किसानों को दो से तीन रुपए ज्यादा का भाव मिल जाता है। दूध उत्पादक किसानों का कहना है कि दूध का जो भाव चल रहा है उसके कारण दुधारू पशुओं को खिलाने वाले पशु आहार का पैसा भी नहीं मिल रहा है। यहां कई किसानों ने 60 से 70 हजार तक के दुधारू पशु खरीद रखे हैं, लेकिन इस कीमत से ब्याज भी नहीं निकल पा रहा है। इन किसानों ने अपने दुधारू पशुओं के लिए पंखे कूलर पानी की अच्छी व्यवस्था उचित किस्म का पशु आहार आदि की व्यवस्था कर रखी है, जिनमें खर्च भी काफी होता है। डीजल और पेट्रोल का दाम बढ़ने के बाद इन किसानों को काफी पैसा अपने वाहनों में ईंधन के लिए जा रहा है लेकिन इनके दूध की कीमत दिनों दिन घटती ही जा रही है।

पिछले साल लॉकडाउन के दौरान के दौरान भी किसानों को दूध का दाम नहीं मिला था, बहुत से राज्यों में तो किसानों को दूध तक फेकना पड़ा था। गाँव कनेक्शन के सर्वे में डेयरी कारोबार से जुड़े 60% लोगों ने कहा था कि उन्हें दूध के कम दाम नहीं मिला था, जबकि 56% डेयरी किसानों को दूध की सप्लाई में परेशानी हुई थी।

निजी डेयरी पर पशुपालकों को सरकारी से ज्यादा फायदा मिल रहा है। फोटो: अशोक परमार

युवा दूध उत्पादक किसान पंकज पाटीदार भी दूध का व्यवसाय करते हैं, पंकज का कहना हैं, "दूध के जो दाम मिल रहे हैं उसमें उनका खर्च भी नहीं निकल पाता। पशुओं को पालने में पशु आहार दवाई तथा बिजली का खर्च भी आता है। डीजल और पेट्रोल के दाम बढ़ने के बाद खर्च और बढ़ गया है, दूध गांव से बाहर यदि बेचने जाते हैं डीजल और पेट्रोल लगता है। डीजल के दाम बढ़े हैं तो अब पशु आहार का भाड़ा भी बढ़ जाएगा। अगर हालात ऐसे ही रहे तो हमें घर पर ही दूध से ही देसी घी बनाकर बेचना पड़ेगा, जो 700 रु किलो तक बिकता है।"

इसी गांव में निजी डेयरी चलाने वाले दीपक गुर्जर की डेयरी पर किसानों को सरकारी डेयरी ज्यादा भाव मिल जाता है लेकिन डेयरी चलाने वाले दीपक की भी अपनी परेशानियां हैं। दीपक पिछले 10 सालों से निजी तौर पर दूध कलेक्शन का काम कर रहे हैं अभी प्रतिदिन लगभग 400 लीटर दूध इकट्ठा कर लेते हैं। डीजल पेट्रोल के बढ़ते दामों की वजह से दीपक को भी लग रहा है कि यदि वे किसी बड़े ऑर्डर पर दूध सप्लाई करते हैं तो भाड़े के कारण उन्हें कुछ रुपए दूध का बढ़ाना ही पड़ेगा। दीपक कहते हैं, "शहरों में मिलावटी दूध बहुत बिकता है, जिसकी वजह से दूध उत्पादक किसानों का दूध बिक नहीं पाता। सैकड़ों लीटर नकली दूध पकड़ा जाता है, ऐसे में जो किसान असली दूध 10 से 20 लीटर भी निकालता है तो उसका नुकसान भी तो हो रहा है। जब नकली दूध से पूर्ति हो जाएगी तो असली दूध को कौन पूछेगा।"

पशुपालन और डेयरी विभाग मंत्रालय की एक विज्ञप्ति के अनुसार, "कोऑपरेटिव मिल्क यूनियन उपभोक्ताओं को (6 फीसदी फैट और 9 फीसदी एसएनएफ सहित) दूध 48 से 56 रुपए प्रति लीटर बेच रहा है। इसके बदले में किसानों को प्रति लीटर 29 से 39 रुपए दिया जाता है।"

सरकारी और निजी डेयरी पर गाय और भैंस के दूध में फैट के हिसाब से पशुपालक को मिली रसीद। फोटो: अशोक परमार

बही गाँव में ही सांची की सरकारी डेयरी भी है, मनोज पाटीदार जो खुद एक किसान भी हैं, इस डेयरी का संचालन करते हैं। मनोज के मुताबिक यहां 5 से 6 प्रतिशत फैट के भाव से दूध लिया जाता है । मनोज अपनी सरकारी डेरी पर प्रतिदिन लगभग 300 लीटर दूध का कलेक्शन कर लेते हैं। मनोज बताते हैं, "पहले दूध का कलेक्शन ज्यादा होता था, लेकिन अब भाव कम होने के कारण कलेक्शन कम होने लगा है।"

मनोज मानते हैं कि सरकार की पॉलिसी कहीं ना कहीं फेल है हो सकता है कि मार्केट में नकली दूध की सप्लाई बहुत ज्यादा होने और दूध की आवक कम होने का एक कारण यह भी हो सकता है कि आजकल किसानों ने दुधारू पशु रखना कम कर दिए हैं। क्योंकि पशु आहार के अलावा और भी नहीं खर्चे बढ़ गए हैं। मनोज किसान होने के नाते बताते हैं, "किसानों की सबसे बड़ी पीड़ा दूध का कम भाव मिलना है जो खर्च पशुपालन में आता है वह अब काफी ज्यादा हो चुका है।"

एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले चार वर्षों में भारतीय डेयरी सेक्टर 6.4 फीसदी की दर से बढ़ गया है, जबकि विश्व स्तर पर दुग्ध उत्पादन वृद्धि दर मात्र 1.7 प्रतिशत है। देश में दूध उत्पादन 2014-15 के 146.3 मिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर 2018-19 में 187.7 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है। लेकिन इसकी एक सच्चाई यह भी है कि दूध कारोबार से जुड़े किसानों को लिए यह सेक्टर घाटे का सौदा बनता जा रहा है। लगभग आठ करोड़ ग्रामीण परिवार दुग्ध उत्पादन से जुड़े हुए हैं। इनमें भूमिहीन, छोटे और सीमांत किसानों की संख्या सबसे अधिक हैं।

पशुपालकों का कहना है कि दूध का व्यवसाय अब घाटे का सौदा बनता जा रहा है। Photo: Meena Kadri, flickr

इसी सरकारी दूध कलेक्शन सेंटर पर अपना दूध बेचने आए राहुल पाटीदार बताते हैं, "दूध के धंधे में अब कोई फायदा नहीं बचा क्योंकि दूध के सरकारी रेट काफी कम है और पशुओं को पालने का खर्चा काफी बढ़ गया है पेट्रोल डीजल के भाव घर बढ़ने के कारण पशुओं के लिए बाहर से हरी घास वह अन्य साधनों के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च बढ़ता जा रहा है लेकिन दूध के भाव नहीं बढ़ रहे हैं। सरकार ने लॉकडाउन के दौरान कहा था कि जिन लोगों ने लोन लेकर पशु पाल रखे हैं, उनकी किस्तों में ध्यान रखा जाएगा। लेकिन मैं कई ऐसे किसानों को जानता हूं जिन पर क़िस्त ना भरने के चलते हैं जुर्माना देना पड़ा। वह किसान लोन की किस्त ही जमा नहीं कर पा रहे हैं। अपनी दूध की पर्ची दिखाते हुए राहुल कहते हैं, "हमारे अच्छे से अच्छे दूध का भाव 29 रुपए प्रति लीटर ही मिला है जबकि इस दूध का भाव कम से कम 50 रुपए प्रति लीटर मिलना ही चाहिए।"

राहुल जो क्वालिटी दूध की देते हैं वह काफी ऊंची है इस क्वालिटी को मेंटेन करने के लिए उन्हें प्रति लीटर लगभग 45 से 50 रुपए प्रति लीटर का खर्च आता है लेकिन उन्हें सरकारी डेरी पर इसका भाव सिर्फ 29 रुपए ही मिला है। राहुल ने कई गाय भैंसे पाल रखी है, उन्हें लगता है कि यदि दूध में कमाई नहीं हुई तो गाय भैंसों से मिलने वाला गोबर उनकी ऑर्गेनिक खाद के काम आता है। यही सोच कर वह पशुपालन कर रहे हैं।

    

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