500 बेटियों वाली इस मां को क्या आप जानते हैं ?

Shrinkhala Pandey | Feb 08, 2018, 16:37 IST
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महिलाओं का ऐसा तबका जिनसे ‘सभ्य समाज’ के लोग बात करना पसंद नहीं करते हैं और इनके घरों को बदनाम गलियों के नाम से पुकारा जाता है। वेश्यावृत्ति के जाल में फंसी इन लड़कियों को सहारा देने का जिम्मा उठाया एक महिला त्रिवेणी आचार्या ने।

पिछले 23 सालों से ह्यूमन ट्रैफ़िकिंग के ख़िलाफ़ मुहिम चला रही त्रिवेणी आज 500 बेटियों की ‘मां’ हैं। त्रिवेणी ने अपने करियर की शुरुआत पत्रकार के दौर पर की थी और इसी सिलसिले में वो महाराष्ट्र के कमाठीपुर गई जहां उनका सामना देह व्यापार से हुआ। वो बताती हैं, “मेरे पति बालकृष्ण मोहनलाल आचार्य पहले जबरन देह व्यापार में फंसी लड़कियों को रेस्क्यू करते थे। इसके कारएा उनके बहुत दुश्मन भी बन गए थे। उन्हें हमेशा फोन पर धमकियां आती थीं।”

कुछ साल बाद त्रिवेणी के पति की एक कार एक्सीडेंट में मौत हो गई। हालांकि त्रिवेणी का मानना है कि ये एक्सीडेंट नहीं था पूरी तरह से प्लान की गई हत्या थी। वो बताती हैं, “मैं हिम्मत हार चुकी थी। पहले तो मैंने सोचा उन लड़कियों को सरकार को दे दूं और अपने बेटे के साथ कहीं दूर निकल जाऊं।” देह व्यापार से रेस्क्यू की गई महिला के लड़के को मैंने गोद लिया था मेरी खुद की कोई संतान नहीं थी।

बहुत सोचने समझने के बाद मुझे लगा इससे मेरे पति की अब तक की मेहनत तो बेकार जाएगी ही। साथ ही उन महिलाओं की उम्मीदों पर भी पानी फिर जाएगा। मैं इन्हें दोबारा वहां नहीं ढकेल सकती थी इसलिए मैंने पति के बाद ये जिम्मेदारी खुद उठाने का जिम्मा लिया।

त्रिवेणी बताती हैं, कुछ महिलाएं ऐसी भी होती थीं जो काफी लंबे समय से इस दलदल में फंसी थीं और उनके साथ बहुत बुरा हो चुका था। उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं होती थी। उन्हें इन सबसे बाहर आने के लिए काउंसलिंग व सहयोग की जरूरत होती है। इन्हें खतरा भी रहता है कई बार मैं खुद उन्हें घर तक छोड़नी जाती थी। ये लड़कियां बांग्लादेश, नेपाल, थाईलैंड, भूटान, उज़्बेकिस्तान जैसे देशों और हमारे देश में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और सबसे ज़्यादा पश्चिम बंगाल से लाई जाती हैं।



देह व्यापार से निकली इन लड़कियों को ट्रेंनिंग भी दी जाती है।
500 से ज्यादा लड़कियां आज त्रिवेणी आचार्या को अपनी मां कहती हैं। मौत की धमकी आने के बावजूद भी त्रिवेणी देह व्यापार में फंसी महिलाओं व युवतियों का रेस्क्यू कर उन्हें मॉल्स, एयरपोर्ट, सोसायटियों में काम करने का हुनर सिखाती है।


आत्मनिर्भर बनने के लिए ले रहीं हैं ट्रेनिंग

हम इन लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं जिससे वो खुद का सहारा बन सकें। मुंबई, बोईसर, पुणे और दिल्ली सेंटर्स में इन्हें सिलाई-बुनाई, खेती जैसे काम सिखाए जाते हैं। इन्हें टेलरिंग, कुकिंग, कराटे, सेल्फ डिफेंस और नर्सिंग का कोर्स सिखाया जाता है। कई मामलों में घर वापस लौटने पर भी समाज इन्हें स्वीकार नहीं करता, इनके अपने परिवारवाले इनसे पल्ला झाड़ लेते हैं, ऐसी लड़कियां एक साथ रहकर एक दूसरे का सहारा बनती हैं।



आत्मनिर्भर बनने के गुर सीख रहीं ये लड़कियां।

500 से ज्यादा लड़कियों की सहारा बन रहीं त्रिवेणी

500 से ज्यादा लड़कियां आज त्रिवेणी आचार्या को अपनी मां कहती हैं। मौत की धमकी आने के बावजूद भी त्रिवेणी देह व्यापार में फंसी महिलाओं व युवतियों का रेस्क्यू कर उन्हें मॉल्स, एयरपोर्ट, सोसायटियों में काम करने का हुनर सिखाती है। यही कारण है कि आज भी कई लड़कियां अपनी अतीत को भूलकर सिक्युरिटी गार्ड्स से लेकर नर्सिंग का काम कर रही है। अपने इस निस्वार्थ काम के लिए देश-विदेश से तक़रीबन 10 से ज़्यादा अवॉर्ड पा चुकीं त्रिवेणी भविष्य में नाबालिग लड़कियों को वेश्यावृत्ति से बचाने के लिए और भी कड़े क़दम उठाने की योजना बना रही हैं।

सिलाई के साथ खेती भी सीखती हैं ये लड़कियां।

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