एक डॉक्टर जिसने हज़ारों वनवासियों की समस्याओं का कर दिया इलाज़, मिलिए जितेंद्र चतुर्वेदी से...
गाँव कनेक्शन | Sep 21, 2017, 16:08 IST
लखनऊ। वन गांवों का नाम सुना है, वो गांव जो जंगल में होते हैं, अक्सर ये गांव मूलभूत सुविधाओं को तरसते रहते हैं। ऐसा ही हज़ारों लोग बहराइच के कतर्निया घाट के जंगलों में रहते थे। सात वनग्रामों में रहने वाले ये लोग कई सालों तक पहचान और सरकारी सुविधाओं के लिए तरसते रहे। इन गाँवों में न बिजली थी, न अस्पताल, न ही स्कूल और न ही अपनी ज़मीन पर मालिकाना हक़। यहां तक कि यहां के लोगों के पास कोई पहचान पत्र तक नहीं था लेकिन अब यहां काफी कुछ बदल गया है और ये बदलाव लेकर आए हैं डॉ. जीतेंद्र।
डॉ. जितेंद्र कहते हैं, "22 वर्ष पहले जब मैं यहां पहुंचा तो इनकी हालत काफी दयनीय दिखी। इनके पास कोई पहचान ही नहीं थी, गरीबी और भुखमरी तो थी ही। वन अधिनियिम कानून बनने के बाद भी जमीन पर मालिकाना हक तक नहीं था,लंबी लड़ाई लड़नी पड़े, लेकिन अब तस्वीर आपके सामने हैं।"
वह बताते हैं कि मैं उस समय बहराइच के इस जंगली इलाके में भानुमति नाम की एक महिला से मिला जिसके पास अपना कोई पहचान पत्र नहीं था और तब मुझे पता चला कि उस गाँव में भानुमती जैसे हज़ारों लोग हैं जिनके पास अपनी कोई पहचान नहीं है। कतर्निया घाट के ये सामाज की मुख्यधारा से दूर जंगलों के बीच रहते थे। इन लोगों को न ही किसी सरकारी योजना फायदा मिलता था और न ही इनके बच्चे स्कूल जा पाते थे। 2007 में आदिवासी और वन निवासी अधिनियम लागू होने के बाद भी इन्हें अपनी ज़मीन पर मालिकाना हक नहीं मिला था।
डॉ. जितेंद्र चतुर्वेदी ने देहात नाम का संगठन बनाकर वनवासियों की ज़िंदगी बदलने की दिशा में काम शुरू किया। उन्होंनेआरटीआई, मानवाधिकार और मानव तस्करी पर किया भी काम किया और उनके प्रयासों से इन वनग्रामों के लोगों की ज़िंदगी में काफी बदलाव आए।
अब यहां 4 प्राइमरी स्कूल, 2 जूनियर हाईस्कूल हैं। सड़कों पर सोलर लाइटें लगी हैं, पीने के लिए साफ पानी है, टीकाकरण के लिए आंगनवाड़ी के जरिए सुविधा मिलती है और लोगों को उनकी ज़मीन पर मालिकाना हक भी मिल गया है। यही नहीं इस इलाके में अब इंटरनेट भी पहुंच गया है।
डॉ. जितेंद्र चतुर्वेदी बताते हैं कि 22 साल पहले मैंने डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की थी और उस समय मैंने एक शपथ ली थी। इस शपथ में गरीब और ऐसे लोगों की मदद का वादा होता है, जिन तक डॉक्टरी सुविधाएं न पहुंच पाती हों, होम्योपैथी में ग्रेजुएशन के बाद इस शर्त में मुझे ऐसे जगह जाने को प्रेरित किया जहां कोई न जाता हो।
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वह बताते हैं कि मैं उस समय बहराइच के इस जंगली इलाके में भानुमति नाम की एक महिला से मिला जिसके पास अपना कोई पहचान पत्र नहीं था और तब मुझे पता चला कि उस गाँव में भानुमती जैसे हज़ारों लोग हैं जिनके पास अपनी कोई पहचान नहीं है। कतर्निया घाट के ये सामाज की मुख्यधारा से दूर जंगलों के बीच रहते थे। इन लोगों को न ही किसी सरकारी योजना फायदा मिलता था और न ही इनके बच्चे स्कूल जा पाते थे। 2007 में आदिवासी और वन निवासी अधिनियम लागू होने के बाद भी इन्हें अपनी ज़मीन पर मालिकाना हक नहीं मिला था।
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अब यहां 4 प्राइमरी स्कूल, 2 जूनियर हाईस्कूल हैं। सड़कों पर सोलर लाइटें लगी हैं, पीने के लिए साफ पानी है, टीकाकरण के लिए आंगनवाड़ी के जरिए सुविधा मिलती है और लोगों को उनकी ज़मीन पर मालिकाना हक भी मिल गया है। यही नहीं इस इलाके में अब इंटरनेट भी पहुंच गया है।