हमारे पूर्वज ऐसे करते थे अन्न भंडारण, कई वर्षों तक सुरक्षित रहता था अनाज

गाँव कनेक्शन | Apr 14, 2018, 12:26 IST
उन्नत किसान
नवनीत शुक्ला

आज अन्नदाता किसान भले ही उपेक्षित और जीर्ण शीर्ण अवस्था में होने के कारण पिछड़ा हुआ है। लेकिन प्राचीन समय का किसान समाज में पूज्य और तकनीकी रूप से मजबूत भी था। कुछ ऐतिहासिक साक्ष्यों और अध्ययन से इस बात का पता साफ़ चलता है कि प्राचीन समय के किसानों ने किस प्रकार से बुआई-कटाई से ले कर अनाज के भण्डारण तक की समुचित व्यवस्था कर रखी थी।

ऋगवेद

1500 ई.पू. ऋगवेद की ऋचाओं में पशुपालन, वानिकी, कृषि संसाधन और कार्य प्रणाली के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत वर्णन है । दो सूक्त कृषि एवं अक्ष में खेती की महत्ता बताइ गयी है।

कृषि परासर

यह 400 ई०पूo में कृषि पर लिखी हुयी सबसे प्राचीन पुस्तक है। इसमें कृषि प्रबंधन, कृषि औजार, पशु विज्ञान गोबर खाद कृषि प्रक्रियाओं जैसे प्रत्यारोपण, बुआई, पौधों का संरक्षण, निराई, ग्रहों का प्रभाव मौसम पूर्वानुमान और अकाल की सूचना का उल्लेख है।

सुरपाल द्वारा रचित वृक्षायुर्वेद

1000 ई० में लिखी इस पुस्तक में पादप विज्ञान से जुड़ी हुयी क्रियाओं तथा जानकारी का वृहद् उल्लेख मिलता है। इसमें पौधों की बीमारी, उनके उपचार, पादप वर्गीकरण, पौधों के गुणन, भू जल, मिट्टी को वर्गों में बाटने की जानकारी, बीज एवं उनकी बुआई, पशुओं और फसलों के उन्नयन पर लेख मिलते हैं।

इतिहास विभाग में निर्मित पंचाल संग्रहालय में गुप्त कालीन पकी मिटटी का पात्र। वैदिक काल में कृषि

ऋगवेद में सिचाईं के लिए नदियों, कुओं, मानसून (वर्षा) के जल के प्रयोग की चर्चा है। लोहे के हल, कुल्हाड़ी, दराती, कुदाल, रथ, आदि के प्रयोग का उल्लेख मिलता है। मोहनजोदड़ों के समय की पीतल की छेद युक्त कुल्हाड़ियाँ इतिहासकारों को प्राप्त हुयी हैं। तैत्तरीय संहिता उपनिशद में क्रमवार फसलों को उगाने के लाभ पर प्रकाश डाला गया है। अच्छी पैदावार हेतु बीज के विभिन्न उपचार की विधी भी तत्कालीन समय में प्रचिलित थी।

छठी शती ईसवीं का भण्डारण पट

बरेली के महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग में निर्मित पंचाल संग्रहालय में गुप्त कालीन पकी मिटटी का बना पात्र रखा है, जिसका प्रयोग अनाज के भंडारण में किया जाता था। यहां कार्यरत रिसर्च सहायक डॉ. हेमंत शुक्ला का कहना है,“ इन ऐतिहासिक साक्ष्यों और अध्ययन से यह बात स्पस्ट है कि प्राचीन समय से ही हमारी कृषि और पशुपालन विकसित और उन्नत थी।”

करने होंगे उपाय

बढ़ती जनसँख्या, ऐतिहासिक ज्ञान की उपेक्षा, तकनिक का उन्नयन, कोई लाभकारी नीति न होने के कारण कृषि को भी रोजगारपरक ना बनाये जाने के कारण ही ये अवनति देखने को मिली है। गलतियों से सीख लेकर हमें फिर से कृषि और पशुपालन को ऊपर उठाना होगा क्यूंकि विज्ञानं भी ये मानता है कि इस धरती पर सिर्फ और सिर्फ पौधे ही प्रथम उत्पादक यानी प्राईमरी प्रोड्यूसर हैं, शेष उपभोक्ता हैं जिन्हें जीवित रहने के लिए पौधों का सहारा लेना ही पड़ेगा । ऐसे में समाज एवं सरकार को खेती किसानी तथा पशुपालन में उत्तरोत्तर उन्नति के लिए कुछ ठोस कदम उठाने ही पड़ेंगे नहीं तो आगे आने वाले समय में शेष सभी जीवों को जीने रहने के लिए वृहद् संघर्ष करना पड़ेगा।

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