आखिर कब तक सड़कों पर सब्जियां फेंकने को मजबूर होते रहेंगे किसान
vineet bajpai 15 Feb 2018 2:53 PM GMT
किसानों द्वारा सड़क पर अपनी उपज को फेंकने की घटनाएं अब आम होती जा रही हैं। जब किसान को उसकी उपज का सही मूल्य नहीं मिलता है तो वो अपनी उपज को सड़क पर फेंक कर अपना विरोध और गुस्सा प्रकट करता है। बुद्धवार को ऐसा एक मामला बिहार की मूर्तिपुर सब्ज़ी मंडी में सामने आया जहां किसानों ने टमाटर के सही मूल्य नहीं मिलने से उसे सड़क पर फेक कर प्रदर्शन किया।
बिहार के समस्तीपुर जिले की मूर्तिपुर सब्ज़ी मंडी में जब किसान कल अपने टमाटर को लेकर गए तो व्यापारी उसे मुश्किल से एक रुपए किलो के हिसाब से खरीदने को तैयार थे। इससे परेशान किसानों ने सड़क पर अपने टमाटर को फेंक कर प्रदर्शन किया।
''किसानों को उनकी टमाटर की उपज का मूल्य तो छोड़ों उन्हें उसकी तुड़वाई तक नहीं निक पा रही है। व्यापारी मुश्किल से एक रुपए किलो टमाटर खरीद रहे हैं,'' अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य सह सचिव राजेन्द्र पटेल ने ने गाँव कनेक्शन को बताया, ''इस लिए किसानों ने अपने टमाटक को सड़क पर फेंक कर प्रदर्शन किया और इसके साथ ही सरकार के सामने अपनी कुछ मांगे रखीं हैं।''
प्रदर्शन का नेतृत्व भाकपा मखले प्रखंड सचिव सह इनौस जिला अध्यक्ष सुरेन्द्र प्रसाद सिंह, अखिल भारतीय किसान महासभा के प्रखंड संयोजक ब्रहमदेव प्रसाद सिंह, राजदेव प्रसाद सिंह, भूषण साह, भूषण राय, भाग्यनारायण साह, कमलेश त्रृषिदेव, मंजित कुमार, दीपन कुमार समेत अन्य किसानों ने किया।
इस दौरान किसान नेताओं ने टमाटर उत्पादक किसानों का किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) का लोन माफ करने, बर्बाद फसल का मुआवजा देने एवं सरकारी स्तर पर टमाटर खरीदने की व्यवस्था करने की मांग प्रखंड प्रशासन से की। नेताओं ने प्रखंड कृषि पदाधिकारी से बर्बाद हो रहे टमाटर की खेत का मुआयना करने की मांग भी की।
इस दौरान अध्यक्षिय भाषण में किसान नेता ब्रहमदेव प्रसाद सिंह ने कहा कि लोन लेकर सपरिवार खेत में काम कर कुछ पैसे कमाने की आशा में टमाटर उगाया लेकिन आज इसके खरीददार नहीं है। टमाटर तोडने वाले मजदूर एवं ठेला भाडा तक का पैसा टमाटर बेचने पर नहीं हो पाता है। टमाटर उत्पादक किसान की स्थिति आत्महत्या करने जैसा हो गया है।
किसानों द्वारा टमाटर एन एच-28 पर फेंककर विक्षोभ जताने को माले नेता सुरेन्द्र ने उचित ठहराया है साथ ही उन्होंने 24 फरवरी को मोतीपुर खैनी गुदाम पर प्रखंड स्तरीय किसान सम्मेलन कर किसानहित में आंदोलनात्मक निर्णय लेने की जानकारी दी है। टमाटर उत्पादक किसानों के खेतों की जायजा लेने की घोषणा भी की गई है।
इससे पहले भी ऐसी बहुत सी घटनाएं सामने आई हैं जिसमें किसानों ने अपनी उपज को सड़क पर फेंका है क्योंकि उन्हें उसकी उपज का सही मूल्य नहीं मिल पा रहा था। हर बार इस पर दो-चार दिन बात होती है और फिर सब शांत हो जाता।
अभी पिछले वर्ष ही उत्तर प्रदेश में दिसंबर-जनवरी महीने में रेट सही नहीं मिलने की वजह से कई जगह आलू सड़कों या बाहर यूं ही कूड़े की तरह फेंक दिया गया। उसके बाद सरकार ने कुछ कीमत बढ़ाई लेकिन उससे किसान को कुछ खास फायदा नहीं हुआ।
इससे पहले मई 2017 में गुजरात में किसानों ने हज़ारों कुंतल प्याज सड़क पर फेंक कर नाराजगी जाहिर की थी, उस समय प्याज का अच्छा उत्पादन हुआ था और किसानों को उसकी फसल में आने वाली लागत भी नहीं निकल पा रही थी। महाराष्ट्र के बाद गुजरात के भावनगर और अमरेली जिलों में प्याज का बडा उत्पादन होता है। उस समय अहमदाबाद के होलसेल मार्केट में प्याज का प्रति किलो 3 से 6 रुपये तक दाम चल रहा था।
वहीं पिछले वर्ष फरवरी महीने में ओडिशा में टमाटर की पैदावार करने वाले किसानों को काफी आर्थिक हानि उठानी पड़ थी। उस समय भी किसानों को एक रुपए किलो टमाटर बेचना पड़ा था। इसको लेकर किसानों ने कई दिनों तक विरोध प्रदर्शन किया था।
जब भी किसान की फसल अच्छी होती है किसान को उसके अच्छे रेट नहीं मिलते हैं और उसे मजबूर होकर अपनी उपज पर औने-पैने दामों पर बेचना पड़ता है।
फिलहाल केन्द्र सरकार ने इस वर्ष बजट में देश में 22,000 हाट को संगठित खुदरा कृषि मंडियों में विकसित करने का फैसला लिया है। इसके साथ ही आलू, प्याज़ और टमाटर की खेती करने वाले किसानों को फायदा देने के लिए सरकार ने इन ग्रामीण हाटों को ऑपरेशन ग्रीन से जोड़ने जा रही है। लेकिन इससे किसानों को कितना फायदा होगा आगे देखना होगा।
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