चना में फूल आते समय सिंचाई न करें किसान
Ashwani Nigam | Jan 13, 2018, 12:38 IST
लखनऊ। रबी की प्रमुख दलहनी फसल चना और मटर की बुवाई इस बार पिछले साल से ज्यादा हुई है। चना की पहली सिंचाई भी हो चुकी है। कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों का सलाह दी है कि जब चने में फूल आना शुरू हो जाएं तो सिंचाई बिल्कुल न करें।
कृषि विभाग के अनुसार, चना की बुवाई 631.900 हजार हेक्टेयर में हुई है। भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. आईपी सिंह बताते हैं, “चना की फसल में सिंचाई के समय को लेकर विशेष सावधानी बरतनी की जरुरत है। बुआई के 40 से 60 दिनों बाद पौधों में फूल आने से पहले सिंचाई करनी चाहिए। चना में दूसरी सिंचाई फलियों में दाना बनते समय करनी चाहिए।“
डॉ. आईपी सिंह, कृषि वैज्ञानिक, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर
डॉ. आईपी सिंह बताते हैं, “चना की खेती में फसल सुरक्षा का भी ध्यान रखना चाहिए। फसल में कटुआ कीट, अर्धकुण्डलीकार कीट और फली बेधक कीट का खतरा रहता है। कटुआ कीट भूरे रंग की सूडियां होती हैं, जो रात में निकलकर नए पौधों को जमीन की सतह से काटकर गिरा देती हैं।“
अर्धकुण्डलीकार कीट हरे रंग की सूडियां होती है, जो लूप बनाकर चलती हैं। यह सूडियां पत्तियों, कोमल टहनियों, कलियों, फूलों और फलियों को नुकसान पहुंचाती हैं। फली बेधक में भूरे रंग सूडियां होती हैं, जिनकी पीठ पर लंबी धारी होती हैं और किनारे पर पतली धारियां होती हैं। यह नवजात पत्तियों को खुरचकर खाती हैं।
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिक डॉ. मेजर सिंह बताते हैं, “कीटों से चना की फसल को कटुआ कीट से बचाने के लिए क्लोरोपाइरीपास नामक दवा का प्रयोग करना चाहिए। फली बेधक कीट से सुरक्षा के लिए एनपीवी एच नामक दवा की 250 ग्राम मात्रा को 300 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।“
चना की फसल में जड़ सड़न, उकठा और एस्कोकाइटा पत्ती धब्बा रोग का भी खतरा रहता है, जिससे पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। ऐसे में इससे चना की फसल को बचाने के लिए कुछ खास बातों को ध्यान रखना होता है। जड़ सड़न में पौधे का तना काला होकर सड़ जाता है, जिसके कारण पौधा धीरे-धीरे निष्क्रिय हो जाता है। इसी तरह उकठा रोग में पोधे मुरझाकार सूख जाते हैं।
उकठा रोग पौधे में कभी भी हो सकता है। इसके बचाव के लिए किसानों को चाहिए कि वह मैकोजेब 75 दवा की 3 किलोग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
चना के खेत में बथुआ, सेंजी, कृष्णनील, हिरनखुरी, चटरी-मटरी, अकरा-अकरी, जंगली गाजर, गजरी, प्याजी और खरतुआ जैसे खरपतवार भी होते हैं। इनसे फसल को बचाने के लिए किसानों को चाहिए कि खरपतवार नियंत्रण की फ्लूक्लोरैलीन नामक दवा की 2 लीटर मात्रा को एक हजार लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर से छिडकाव करना चाहिए। इसके साथ ही अगर रसायन का इस्तेमाल नहीं करना चाहते हैं तो खुरपी से निराई करके खरपतवार निकालना चाहिए।
सिंचाई में सावधानी बरतने की जरुरत
चना की खेती में फसल सुरक्षा का भी ध्यान रखना चाहिए। फसल में कटुआ कीट, अर्धकुण्डलीकार कीट और फली बेधक कीट का खतरा रहता है। कटुआ कीट भूरे रंग की सूडियां होती हैं, जो रात में निकलकर नए पौधों को जमीन की सतह से काटकर गिरा देती हैं।
फसल सुरक्षा का भी रखें ध्यान
अर्धकुण्डलीकार कीट में हरे रंग की सूडियां
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कटुआ कीट से बचाने के लिए
धब्बा रोग का भी खतरा
उकठा रोग पौधे में कभी भी हो सकता है। इसके बचाव के लिए किसानों को चाहिए कि वह मैकोजेब 75 दवा की 3 किलोग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।