ओड़िशा के कंधमाल में कई परिवारों का पेट पालता है ये मुर्गा

कंधमाल में फूलबनी, खजुरीपाड़ा और फिरिंगिया ब्लॉक के 12 गाँवों में कोंध आदिवासी समुदाय के लोग अब कड़कनाथ मुर्गे के भरोसे हैं। यही उनके परिवार का मुखिया बना हुआ है, जो सभी सदस्यों का खर्चा उठा रहा है।

Niroj Ranjan MisraNiroj Ranjan Misra   17 Jun 2023 9:24 AM GMT

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ओड़िशा के कंधमाल में कई परिवारों का पेट पालता है ये मुर्गा

ओड़िशा के कंधमाल के सिरुबल्ली गाँव की कैफुला को इंतज़ार है अपने कड़कनाथ के वज़न बढ़ने का। बच्चों की तरह उसकी सेवा की है। अब वो बड़ा होकर उनका सहारा बनेगा।

सिर्फ ढाई किलो भी अगर वज़न हो गया तो 700 रुपए तक वो कैफुला को अपने दम पर दिला देगा। जी हाँ, ये कड़कनाथ कोई और नहीं बल्कि एक मुर्गा है। कोंध जनजाति की कैफुला ने हाल ही में 160 कड़कनाथ अंडे बेचे जिससे उन्हें 3,200 रुपये मिले।

"अगर सब कुछ सही रहा तो कड़कनाथ की मदद से मेरे पोल्ट्री फार्म को हर महीने 10 से 15 हज़ार रूपये की कमाई हो जाएगी।" कैफुला ने गाँव कनेक्शन कहा।


उनकी तरह, सिरुबली गाँव की लगभग 25 कोंध महिलाओं ने कड़कनाथ मुर्गी पालन शुरू कर दिया है, जिससे अब उनके पास झुना (लोबान गोंद), पलुआ (अरारोट), शहद और कटहल जैसे छोटे जँगली उत्पादों को जुटा कर बेचने के अलावा ऊपरी आमदनी हो जाएगी।

दरसल कड़कनाथ मुर्गा दूसरे मुर्गों से अलग होता है। मध्य प्रदेश के झाबुआ में कड़कनाथ मुर्गी को जीआई टैग यानि विशेष पहचान मिली हुई है। कड़कनाथ की उत्पत्ति झाबुआ के कठीवाड़ा और अलीराजपुर से हुई है। अन्य मुर्गों की तुलना में कड़कनाथ में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। देश में करीब 30 लाख किसान मुर्गी पालन से जुड़े हैं। ओड़िशा में अब कड़कनाथ किसानों का साथी बना है।

कंधमाल में फूलबनी, खजुरीपाड़ा और फिरिंगिया ब्लॉक के 12 गाँवों में कोंध आदिवासी समुदाय के 45 सदस्य कड़कनाथ मुर्गे का पालन कर रहे हैं। बल्लीगुडा ब्लॉक के सिरुबली गाँव की दूसरी 25 महिलाएँ भी आदिवासी समुदायों की आय बढ़ाने के लिए इस परियोजना का हिस्सा हैं।

एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी (आईटीडीए), बल्लीगुडा की एक पायलट परियोजना के तहत एक गैर-लाभकारी 'प्रदान' (व्यावसायिक सहायता के लिए विकास कार्य) की तरफ से प्रशिक्षित आदिवासी महिलाओं ने कुक्कुट पालन शुरू कर दिया है। उन्हें मुफ्त में कड़कनाथ के चूजे (स्वास्थ्यवर्धक और ब्रॉयलर से बेहतर माने जाते हैं) दिए गए थे, और ये महिलाएँ इसे एक फलता-फूलता व्यवसाय बनाने के लिए सभी पड़ावों को पार कर रही हैं।


उन्हें पशु संसाधन विकास, और मिशन शक्ति विभाग के ओड़िशा आजीविका मिशन से एक प्राणी मित्र की मदद मिल रही है। 2019 में लॉन्च किया गया मिशन जीविका एक आजीविका कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य कृषि और गैर-कृषि परियोजनाओं के माध्यम से आदिवासियों की कमाई को बढ़ाना है। मिशन जीविका के तहत कड़कनाथ पोल्ट्री प्रोजेक्ट 2022-23 में शुरू किया गया था।

"छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कड़कनाथ पोल्ट्री व्यवसाय के फलने-फूलने से प्रेरित होकर, पिछले दिनों अपनी यात्रा के दौरान, मैंने एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी को एनजीओ और पशु संसाधन विकास विभाग के साथ मिलकर अपने अधिकार क्षेत्र के तहत ब्लॉकों में कड़कनाथ पोल्ट्री को बढ़ावा देने का निर्देश दिया।" कंधमाल कलेक्टर आशीष किशोर पाटिल ने गाँव कनेक्शन को बताया।

आदिवासी महिलाओं को कड़कनाथ पालन का प्रशिक्षण

जिले के फूलबनी और बल्लीगुडा ब्लॉक में एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी (आईटीडीए) ने कड़कनाथ मुर्गी पालन को बढ़ावा देने के लिए पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है। परियोजना को औपचारिक रूप से 3 अगस्त, 2022 को लॉन्च किया गया था।

“हमने उन्हें चुना जिन्होंने नए उद्यम में दिलचस्पी दिखाई। फिर हमने 'प्रदान' नाम के एक गैर-लाभकारी संगठन को जोड़ा, जिसने ओड़िशा आजीविका मिशन से एक प्राणी मित्र को प्रशिक्षित किया, जो पोल्ट्री किसानों का मार्गदर्शन करेगा।" बल्लीगुडा में आईटीडीए के परियोजना प्रबंधक समीरन नायक ने समझाया।

प्रदान के एक कार्यकारी अधिकारी स्वाधीन राउत ने बताया कि आदिवासी किसानों को कड़कनाथ मुर्गे के सभी पहलुओं पर प्रशिक्षित करने के लिए भुवनेश्वर स्थित ओड़िशा कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को भी बुलाया गया था।


आईटीडीए बल्लीगुड़ा ने छत्तीसगढ़ से 90 रुपये प्रति माह की लागत से एक महीने के चूजों को मँगाया और हर एक लाभार्थी को 20 चूजे दिए गए। इसी तरह, आईटीडीए फूलबनी ने महाराष्ट्र से 120 रुपये प्रति चूजे की खरीद की और अपने प्रत्येक लाभार्थी को 10 चूजे दिए गए। खास बात ये है कि सभी किसानों को ये चूजे मुफ़्त दिए गए।

बल्लीगुडा ब्लॉक के सिरुबली गाँव की सुजाता ने गाँव कनेक्शन को बताया, "आईटीडीए ने 12,000 रुपये दिए , बाकि 4,000 रुपये खुद से लगाने थे। पोल्ट्री शेड चलाने की लागत 16,000 रुपये है।

फूलबनी के पूर्व ब्लॉक पशु चिकित्साधिकारी सुमित रंजन मिश्रा ने कहा, "पहले सिरुबली में बहुत कम लोगों के पास कड़कनाथ पोल्ट्री थी, लेकिन आईटीडीए ने तमाम हितधारकों को एक साथ लाकर इसे एक संगठित तरीके से पेश किया।"

कड़कनाथ के माँस और अंडों की विशेषता के चलते मार्केट में इसकी खासी माँग है। आईटीडीए, बल्लीगुडा के सब्जेक्ट मैटर स्पेशलिस्ट राजेश प्रधान ने कहा, "इसमें कोलेस्ट्रॉल कम होता है और माँस प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, विटामिन बी और विटामिन ई से भरपूर होता है।"

एक पौष्टिक व्यवसाय

प्रदान के स्वाधीन राउत ने कहा कि कड़कनाथ चूजे अच्छी प्रगति दिखा रहे हैं। गाँव वाले उन्हें साग, चावल की भूसी, और झींगे और सुखुआ (नमकीन सूखी मछली), और प्रोटीन युक्त हरी आइज़ॉल, एक स्थानीय घास के पाउडर के साथ खिलाते हैं। कैल्शियम जोड़ने के लिए हरा चारा चूने के साथ मिलाया जाता है।

“हर एक मुर्गा ने तीन महीनों में 768 ग्राम वजन बढ़ाया और पाँच महीनों के बाद उसका वजन 900 ग्राम हो गया। उन्होंने 24 सप्ताह के बाद अंडे दिए, जिसे महिलाओं ने बेच दिया। एक कड़कनाथ-अंडा 20 रुपये में बिकता है जबकि सिरुबली में अन्य पक्षियों की कीमत 12 रुपये से 15 रुपये है। 1,800 कड़कनाथ के अंडों की पहली खेप की बिक्री से गाँव वालों को करीब 36,000 रुपये मिले।" प्राणी मित्र गोलापी लीमा ने गाँव कनेक्शन को बताया।


“एक कड़कनाथ हमें लगभग 700 रुपये प्रति किलो मिलता है, जबकि दूसरे नस्ल के मुर्गे 350 रुपये से 400 रुपये प्रति किलो बेचते हैं। एक ब्रायलर या लेयर 170 से 200 रुपये में बिकती है।" सिरुबली की लाभार्थी महिला किसानों में से एक सुमित्रा ने कहा।

“पिछले महीने मैंने दो कड़कनाथ बेचे थे। एक को 800 रुपये किलो और दूसरे को 1000 रुपये किलो बेचा गया। इसके अलावा, मैं 25 रुपये प्रति पीस के हिसाब से अंडे बेचती हूँ। ” फिरिंगिया ब्लॉक के बेदकेता गाँव की सुनामा ने कहा।

झारसुगुड़ा में कड़कनाथ पालन

इस बीच राज्य के एक अन्य जिले झारसुगुड़ा में भी कड़कनाथ पालन जोर पकड़ रहा है। झारसुगुड़ा में पशु संसाधन विकास ने 10 गाँवों में परियोजना शुरू की है।

“हमने अपने अनुभव और रुचि के आधार पर 98 लाभार्थियों का चयन करने के लिए ब्लॉक प्रशासन और संबंधित पंचायतों के साथ एक सर्वेक्षण किया। हमने शुरुआत करने के लिए 25 पर ध्यान दिया। " झारसुगुड़ा के मुख्य जिला पशु चिकित्सा अधिकारी पबित्रा परीजा ने गाँव कनेक्शन को बताया।

जिला प्रशासन ने पड़ोसी संबलपुर के चिपलीमा में राज्य स्तरीय प्रजनन फार्म से चूजों की खरीद की है और इस साल जनवरी-फरवरी में 25 लाभार्थियों में से प्रत्येक को 20 चूजे दिए गए।

परियोजना के लिए जिला खनिज फाउंडेशन ने 34 लाख रुपये दिए हैं। प्रयोग शुरू करने में अब तक करीब 1.3 लाख रुपये खर्च किए जा चुके हैं। बाकी राशि का इस्तेमाल पहले चरण की सफलता को देखने के बाद दूसरे गाँवों में इस परियोजना को चलाने के लिए किया जाएगा। ” मुख्य जिला पशु चिकित्सा अधिकारी ने कहा।

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