शहद उत्पादक किसान और उत्पादक बोले, तय की जाए एमएसपी

Arvind Shukla | Jul 25, 2018, 14:20 IST
कषि एवं ग्रामीण विकास केंद्र, उद्यान विभाग और खादी बोर्ड के सेमिनार में मधुमक्खी पालकों ने गिनाईं समस्याएं, रखी मांगें
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लखनऊ। "शहद के किसानों की भलाई के लिए सबसे जरूरी है कि प्रदेश में एक ऐसा कोई सेंटर हो, जहां मधुमक्खी पालक जाकर आसानी से अपनी शहद बेच सकें। दूसरा शहद का एक सरकारी रेट (एमएसपी) तय की जाए, जिससे नीचे कोई खरीद न हो।" प्रगतिशील शहद उत्पादक निमित सिंह ने सरकार को सुझाव दिया।

पिछले 30 वर्षों से मधुमक्खी पालन कर रहे सहारनपुर के तंजीम अंसारी कहते हैं, "एक्सपोर्टर शहद उत्पादक किसानों का उत्पीड़न कर रहे हैं, वो हमारे प्राकृतिक शहद के नमूनों को फेल कर देते हैं, फिर मुनाफे के लिए उसमें चायनीय शहद (इंपोर्टेड चीनी) मिलाकर मोटा मुनाफा कमाते हैं। सरकार को कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिए जिससे मधुमक्खी पालकों को कम से कम 150 रुपए किलो का रेट मिल जाए।" तंजीम अंसारी को यूपी एस्टेट एग्रो कॉर्पोरेशन और कषि मंत्रालय भारत सरकार ने मधुमक्खी पालन के लिए प्रमाणित है।

निमित और तंजीम यूपी के समेत 100 से ज्यादा मधुमक्खी पालक और शहद उत्पादक किसान लखनऊ के उद्यान भवन में आयोजित बीकीपिंग सेमिनार 2018 में शामिल होने आए थे। सेमिनार का आयोजन सेंटर फॉर एग्रीकल्चर एंड रुरल डेवलमेंट द्वारा किया गया, जिसे खादी बोर्ड और उद्यान विभाग की सहायता से किया गया।

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मधुमक्खी पालकों के सामने मार्केटिंग और न्यूनतम समर्थन मूल्य की समस्या है। जिस पर मंत्री जी (सत्यदेव पचौरी) ने आश्वासन दिया है कि खादी के आउटलेट और मंडी समितियों की मंडियों में दुकानें आवंटित कराने का आश्वासन दिया है। मधुमक्खी पालन में बहुत संभावनाएं और रोजगार के अवसर हैं। - डॉ.अनीष अंसारी पूर्व आईएएस, निदेशक. कृषि एवं ग्रामीण विकास केंद्र, (कार्ड)
इस मौके पर डॉ. अनीस अंसारी निदेशक कार्ड (पूर्व आईएएस) ने कहा, "मधुमक्खी पालकों के सामने मार्केटिंग और रेट दो बड़ी समस्याएं हैं। खादी-ग्राम उद्योग और लघु सूक्ष्म उद्यम मंत्री सत्यदेव पचौरी ने किसानों से कहा है कि वो खादी में अपना पंजीकरण करा लें, जिसके तहत उनके उत्पाद खादी बोर्ड के आउटलेट और मंडी परिषद में बेचने के लिए वो आवंटन कराने की कोशिश करेंगे।"

मधुमक्खी पालकों की शहद की कीमतों को लेकर दूसरी मांग के बारे में कैबिनेट मंत्री सत्यदेव पचौरी ने किसानों को आश्वासन दिया कि वो इस मामले को सरकार के सामने रखेंगे।

मौनपालन में रोजगार की अपार संभावनाएं बताते हुए डॉ. अंसारी आगे बताते हैं, "किसानों की आय बढ़ाने के लिए परंपरागत खेती के साथ मधुमक्खी पालन, भेड़-बकरी, औषधीय पौधों की खेती जैसी गतिविधियों को बढ़ाने की जरूरत है। ऐसे समारोहों में किसान अपनी बात खुल कर रख पाते हैं, जिससे उनके रोजगार को विस्तार मिलता है। हमने तय किया है जो प्रगतिशील मधुमक्खी पालक हैं, उनकी सफलता की कहानियां बाकी किसानों तक पहुंचाई जाएंगी।"

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट हनी मिशन के तहत पूरे देश में मधुमक्खी पालन को ग्रामीण रोजगार के बड़े अवसर के रूप में विकसित किया जा रहा है। इसके लिए सरकार 75 फीसदी तक अनुदान भी देती है। खादी ग्राम उद्योग और उद्यान विभाग के अलावा कई दूसरी योजनाओं से इन किसानों को सुविधाएं दिलाई जाती हैं।

हनी मिशन- खादी देता है सहूलियत

10 बॉक्सों की एक इकाई की लागत- 35000 रुपए

मधुमक्खीपालक की लागत – 7000 रुपए

खादी आयोग द्वारा अनुदान- 28000 रुपए

सालाना उत्पादन- 500 किलो

बिक्री से कमाई-50000 रुपए

मोम- 75 किलो निकल सकता है, जिससे 22500 की अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। इस तरह कुल आमदनी दूसरे मदों पराग और रायल नेली को मिलाकर एक लाख रुपए हो सकती है।

(नोट- आय और व्यय का आंकड़ा खादी आयोग से लिए गए हैं।)

शहद के किसानों की भलाई के लिए सबसे जरूरी है कि प्रदेश में एक ऐसा कोई सेंटर हो जहां मधुमक्खी पालक जाकर आसानी से अपनी शहद बेच सकें। दूसरा शहद का एक सरकारी रेट (एमएसपी) तय की जाए, जिससे नीचे कोई खरीद न हो। - निमित सिंह, मधुमक्खी पालन, रॉयल हनी
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