पढ़ें कुछ ऐसे किसानों के बारे में जिन्होंने खेती की परिभाषा ही बदल दी

Astha Singh | Dec 23, 2017, 14:41 IST
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ऐसा कहा जाता है कि किसान नहीं तो अन्न नही, अन्न नहीं तो हम नहीं। चलिए आज आपको कुछ ऐसे किसानों से मिलवाते हैं जिन्होनें ऐसी उन्नत खेती की कि लोग अब उनसे सबक लेते हैं।

पढ़ें खेमाराम की सफल कहानी

दिल्ली से करीब 300 किलोमीटर दूर राजस्थान के जयपुर जिले में एक गांव है गुड़ा कुमावतान। ये किसान खेमाराम चौधरी (45 वर्ष) का गांव है। खेमाराम ने तकनीकी और अपने ज्ञान का ऐसा तालमेल भिड़ाया कि वो लाखों किसानों के लिए उदाहरण बन गए हैं। आज उनका मुनाफा लाखों रुपए में है। खेमाराम चौधरी ने इजरायल के तर्ज पर चार साल पहले संरक्षित खेती (पॉली हाउस) करने की शुरुआत की थी। आज इनके देखादेखी आसपास लगभग 200 पॉली हाउस बन गये हैं, लोग अब इस क्षेत्र को मिनी इजरायल के नाम से जानते हैं। खेमाराम अपनी खेती से सलाना एक करोड़ का टर्नओवर ले रहे हैं।

चार हजार वर्गमीटर में इन्होने पहला पॉली हाउस सरकार की सब्सिडी से लगाया। खेमाराम चौधरी गाँव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "एक पॉली हाउस लगाने में 33 लाख का खर्चा आया, जिसमे नौ लाख मुझे देना पड़ा जो मैंने बैंक से लोन लिया था, बाकी सब्सिडी मिल गयी थी। पहली बार खीरा बोए करीब डेढ़ लाख रूपए इसमे खर्च हुए। चार महीने में ही 12 लाख रुपए का खीरा बेचा, ये खेती को लेकर मेरा पहला अनुभव था।" वो आगे बताते हैं, "इतनी जल्दी मै बैंक का कर्ज चुका पाऊंगा ऐसा मैंने सोचा नहीं था पर जैसे ही चार महीने में ही अच्छा मुनाफा मिला, मैंने तुरंत बैंक का कर्जा अदा कर दिया। चार हजार वर्ग मीटर से शुरुआत की थी आज तीस हजार वर्ग मीटर में पॉली हाउस लगाया है।"

जानिये उत्तराखंड की मशरुम गर्ल के बारे में

उत्तराखंड राज्य के चमोली (गढ़वाल) जिले से 25 किलोमीटर दूर कोट कंडारा गाँव की रहने वाली दिव्या रावत दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रही थी, लेकिन पहाड़ों से पलायन उन्हें परेशान कर रहा था, इसलिए 2013 में वापस उत्तराखंड लौटीं और यहां मशरूम उत्पादन शुरु किया। दिव्या फोन पर गांव कनेक्शन को बताती हैं, "मैंने उत्तराखंड के ज्यादातर घरों में ताला लगा देखा। चार-पांच हजार रुपए के लिए यहां के लोग घरों को खाली कर पलायन कर रहे थे जिसकी मुख्य वजह रोजगार न होना था। मैंने ठान लिया था कुछ ऐसा प्रयास जरुर करूंगी जिससे लोगों को पहाड़ों में रोजगार मिल सके।" सोशल वर्क से मास्टर डिग्री करने के बाद दिव्या रावत ने दिल्ली के एक संस्था में कुछ दिन काम भी किया लेकिन दिल्ली उन्हें रास नहीं आई।

दिव्या रावत ने कदम आगे बढ़ाए तो मेहनत का किस्मत ने भी साथ दिया। वो बताती हैं, "वर्ष 2013 में तीन लाख का मुनाफा हुआ, जो लगातार कई गुना बढ़ा है। किसी भी साधारण परिवार का व्यक्ति इस व्यवसाय की शुरुवात कर सकता हैं । अभी तक 50 से ज्यादा यूनिट लग चुकी हैं जिसमे महिलाएं और युवा ज्यादा हैं जो इस व्यवसाय को कर रहे हैं ।" मशरूम की बिक्री और लोगों को ट्रेनिंग देने के लिए दिव्या ने मशरूम कम्पनी 'सौम्या फ़ूड प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी' भी बनाई है। इसका टर्नओवर इस साल के अंत तक करीब एक करोड़ रुपए सालाना का हो जाएगा।

पॉलीहाउस में सब्जी उगाकर कैसे कमाएं मुनाफा सीखिए प्रतीक शर्मा से

होशंगाबाद के ढाबाकुर्द गाँव के किसान प्रतीक शर्मा जैविक तरीके से खेती करते हैं और ये अपनी फसल को मंडी में बेचने के बजाय सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचाते हैं, जिससे लागत कम आती है व मुनाफा अच्छा होता है।

प्रतीक बताते हैं कि हम जैविक विधि से खेती करते हैं और इसके लिए हम खाद भी खुद ही बनाते हैं। फसल नियंत्रण के लिए नीमास्त्रिका, भ्रमास्त्रिका आदि का उपयोग करते हैं। इसके अलावा पोषण और फसल का कीट नियंत्रण हम खुद करते हैं जिससे लागत काफी कम हो गई और हम सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचते हैं। इसलिए हम बाज़ार के सामान्य दामों में ही अपनी जैविक विधि से तैयार की गई सब्ज़ियां बेच पाते हैं।

ऑस्ट्रेलिया से लौटी पूर्वी से समझिए खेती के तरीके

ऑस्ट्रेलिया की वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी से पर्यावरण प्रबंधन में ग्रेजुएशन करने वाली पूर्वी व्यास की ज़िंदगी उनके एक फैसले ने पूरी तरह बदल दी। अब वह पूरी तरह से जैविक विधि से खेती करने वाली किसान बन चुकी हैं। वह अगली पीढ़ी के किसानों और युवाओं को सिखा रही हैं कि किस तरह खेती करके भी अच्छी ज़िंदगी बिताई जा सकती है।

उन्होंने हर उस चीज़ को पैदा करना शुरू किया जो ज़मीन और उस जगह की भौगोलिक स्थिति उन्हें वहां उगाने देती, जैसे अनाज, फल, आयुर्वेदिक औषधीय पौधों, फलियां, फूलों और सब्जियां। यह एक ऐसा मॉडल था जिससे किसान लगातार पैसा कमा सकते हैं। एक किसान दूध बेचकर रोज़, फूल बेचकर सप्ताह में, सब्ज़ी बेचकर 15 दिन में, फल बेचकर महीने में और अनाज बेचकर साल में पैसे कमा सकते हैं। बाकी चीजों के लिए, पूर्वी ने गांव में वस्तु विनिमय प्रणाली को पुनः शुरू कर दिया है, जहां लोग अपने उत्पाद के बदले उत्पाद ले सकते हैं, पैसे नहीं। पूर्वी कहती हैं कि अब हम अपने खाने के लिए ज़रूरत की 75 से 80 प्रतिशत चीज़ें खुद ही उगा लेते हैं। इससे हमें काफी फायदा हुआ है।

सीए की नौकरी छोड़ शुरू कर दिया खेती करना राजीव बिट्टू ने

वाणिज्य की पढ़ायी करने के बाद हर कोई चार्टर्ड अकांउटेंट (सीए) बनने का सपना देखता है लेकिन झारखंड के राजीव बिट्टू ने ये चलन ही बदल दिया, वो सीए तो बन गए, लेकिन इसे उन्होंने अपना पेशा नहीं बनाया और अपना रुख खेती की तरफ किया।राजीव आज रांची के ओरमांझी ब्लॉक में लीज पर खेती कर रहे हैं। राजीव ने फोन पर गाँव कनेक्शन को बताया, ''मुझे हमेशा से लगता कि जो किसान हमारे लिए अनाज, सब्ज़ियां, फल उगाते हैं उन्हें हम नज़रअंदाज़ कर देते हैं जो सही नहीं है। इसलिए मैंने ये फैसला किया कि अब मैं भी खेती करूंगा और लोगों को किसानों की कीमत समझाने की कोशिश करूंगा।''

राजीव ने उसी गाँव में 13 एकड़ और जमीन लीज पर ली और वहां भी खेती करने लगे। 2016 के अंत में उन्होंने इसी खेती से लगभग 40-45 लाख का कारोबार किया। उन्होंने हाल ही में कुचू गाँव में तीन एकड़ जमीन और लीज पर ली है जहां वे सब्जियां उगाते हैं। राजीव का लक्ष्य सालाना एक करोड़ का टर्नओवर करने का है। बाढ़ और सूखे जैसे हालात की चिंता उन्हें हमेशा रहती है क्योंकि इससे खेती को काफी नुकसान पहुंचता है और अचानक से सारी मेहनत पर पानी फिर जाता है। राजीव के इस काम में उनके दो साथी देवराज (37 वर्ष) और शिव कुमार (33 वर्ष) भी हाथ बंटाते हैं। आजकल राजीव 32 एकड़ में खेती कर रहे है मल्चिंग और ड्रिप इरीगेशन से खेती कर रहे हैं और साल में लगभग 50 लाख रुपये का मुनाफा कमाते हैं।

सीखिए इस महिला इंजीनियर से जो किसानों को सिखा रही है बिना खर्च किए कैसे करें खेती से कमाई

पेशे से इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर, 24 साल की हर्षिता प्रकाश को जब यह समझ आया कि इंजीनियरिंग वो काम नहीं है जो उनके दिल को सुकून दे, उससे पहले तक वह आईटी सेक्टर में ही नौकरी करती थीं।

आज हर्षिता महाराष्ट्र के बीड ज़िले के डुनकवाड़ गाँव के किसानों को बिना किसी खर्च के प्राकृतिक तरीके से खेती करना सिखा रही हैं। उनका उद्देश्य ज़ेडबीएनएफ यानि शून्य बजट में प्राकृतिक कृषि के जरिए छोटे पैमाने के किसानों को सशक्त बनाना है जिससे वे बाहरी संसाधनों पर अपनी निर्भरता कम करके उत्पादन को बढ़ा सकें। हर्षिता का उद्देश्य वहां के किसानों के लिए एक ऐसा बाज़ार बनाना भी है जहां वे अपने उत्पाद सीधा बेच सकें।

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