कहीं आप भी खेतों में खरपतवार खत्म करने के लिए ग्लायफोसेट का इस्तेमाल तो नहीं करते हैं?

आंध्र प्रदेश सरकार ने इसके इस्तेमाल पर रोक लगायी है। वहीं, महाराष्ट्र के यवतमाल और तेलंगाना में भी ग्लायफोसेट युक्त राउंडअप पर रोक है।

Ranvijay SinghRanvijay Singh   1 Oct 2018 6:07 AM GMT

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कहीं आप भी खेतों में खरपतवार खत्म करने के लिए ग्लायफोसेट का इस्तेमाल तो नहीं करते हैं?

लखनऊ। ग्लायफोसेट उस रसायन का नाम है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि ये किसानों को कैंसर जैसी घातक बीमारियां दे रहा है। कई तरह की जांच में ये साबित भी हो चुका है। हाल ही में आंध्र प्रदेश सरकार ने इसके इस्तेमाल पर रोक लगायी है। वहीं, महाराष्ट्र के यवतमाल और तेलंगाना में भी ग्लायफोसेट युक्त राउंडअप पर रोक है।

खरपतवारनाशी इस रसायन से होने वाले नुकसान के बारे में लगातार ख़बरें आती रही हैं। पिछले दिनों ही अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में राउंडअप बनाने वाली कंपनी मोनसेंटो पर 29 करोड़ का जुर्माना लगाया गया था, एक स्कूल के माली ने अपने कैंसर के लिए राउंडअप को जिम्मेदार ठहारते हुए कोर्ट में याचिका डाली थी। कई दूसरे देशों में मामले कोर्ट पहुंचे हैं, बावजूद इसके भारत समेत कई देशों में इसकी बिक्री हो रही है और किसान इस्तेमाल कर रहे हैं।

इस रसायन (ग्लायफोसेट) का इस्तेमाल खेतों से खरपतवार और जंगली घास को नष्ट करने के लिए किया जाता है। इसे मॉनसेंटो नाम की कंपनी बनाती है। यह कंपनी अपने कई प्रोडक्ट को लेकर पहले भी विवादों में घिर चुकी है। मोनसेंटे भारत में ग्लायफोसेट को राउंडअप के नाम से बेच रही है।

इस रसायन का इस्तेमाल चाय के बगानों को साफ करने में किया जाता था। वहां से निकलकर ये दूसरे किसानों तक पहुंच गया। अब हाल ये है कि किसान इसका इस्तेमाल बहुत ज्यादा कर रहे हैं। बहुत से किसान तो इस बात से वाकिफ भी हैं कि उन्हें इससे कैंसर हो सकता है, इसके बावजूद वो इसका इस्तेमाल कर रहे हैं।

महाराष्ट्र के यवतमाल में कपास के किसान इसका खूब इस्तेेमाल करते हैं। पिछले साल यवतमाल में ग्लायफोसेट और अन्या पेस्‍टीसाइड के छिड़काव से 22 किसानों के मारे जाने की खबर भी आई थी। इसके बाद यवतमाल जिले के कृषि विभाग ने कई पत्र 'डायरेक्ट क्वाालिटी कंट्रोल पुणे' को लिखे।

यवतमाल के एग्रीकलचर ऑफिसर यशबीर जाधव बताते हैं, ''ग्लायफोसेट पर बैन के लिए हमारी ओर से कई पत्र भेजे गए थे। इसके आधार पर क्वा्लिटी कंट्रोल पुणे की ओर से हमें एक आदेश भेजा गया, जिसके मुताबिक हम अपने अधिकार क्षेत्र में इसको बैन कर सकते हैं। हमने ऐसा किया भी है, यवतमाल में ग्लायफोसेट के उपयोग पर रोक है।''

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महाराष्ट्र के नांदेड़ जिले के माहुर तालुका गांव के रहने वाले कपास के किसान फारूख पठान बताते हैं, ''ग्लाायफोसेट से कैंसर की बात का मुझे पता है। ऐसी कई रिपोर्ट भी आई हैं। लेकिन किसानों के पास फिलहाल कोई विकल्प नहीं है। हमारे क्षेत्र में भी इसके बैन होने की बात कही जाती है, लेकिन जब अधिक दाम देते हैं तो ये आसानी से मिल जाता है। किसान भविष्य की नहीं सोच पा रहा। वो आज में जी रहा है और उसी हिसाब से काम कर रहा है। ये जानते हुए भी कि इससे नुकसान है हमें इसका प्रयोग करना है। क्यों कि ये हमारी जेब पर भारी नहीं पड़ता।''

वहीं यवतमाल जिले के खैरगांव (देशमुख) गांव के रहले वाले कपास के किसान नेमराज राजुरकर का कहना है, ''ग्लायफोसेट से कैंसर होने की बात का आधार नहीं है। मैंने वॉट्सएप पर खबर देखी है, जिसमें बताया गया है कि ग्लायफोसेट के नुकसानदेह होने की बात सिद्ध नहीं हो पाई है। इस वजह से इसपर से रोक हटा ली गई है।''

जब हमने पूछा कि अगर कैंसर की बात सच हो तो? इसके जवाब में नेमराज कहते हैं, ''हम क्या कर सकते हैं। अगर इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे तो लागत बहुत हो जाएगी। एक एकड़ में खरपतवार को साफ करने के लिए मजदूरों का खर्च करीब 4 से 5 हजार तक आता है। वहीं, ग्लायफोसेट के प्रयोग से 600 से 700 रुपए में ये काम हो जाता है। हमारे पास कोई विकल्प नहीं है।''

भारत में ग्लायफोसेट (राउंडअप) के प्रभाव पर उस हिसाब से अध्ययन नहीं हुआ है, लेकिन विदेशों में हुए कई अध्ययन में इसके खतरनाक होने की बात सामने आई है। अमेरिका के सैन फ्रांसिस्‍को के एक स्कूल में माली का काम करने वाले डेवेन जॉनसन 2012 से राउंडअप का प्रयोग कर रहे थे। 2014 में उन्हें कैंसर हुआ, जिसके बाद उन्होंने मोनसेंटे कंपनी पर मुकदमा किया। इस केस में सैन फ्रांसिस्‍को की अदालत ने कंपनी पर 289 मिलियन डॉलर का जुर्माना लगाया था।

इस केस से पहले भी ग्लायफोसेट को बैन करने की मांग होती रही है। श्रीलंका ने इस रसायन को बैन भी कर दिया था। श्रीलंका में इसे 2014 से लेकर 2018 तक बैन किया गया। वहां के धान के किसान इसकी चपेट में आए थे। इसके अलावा विश्व के कई देशों में इसे बैन करने की मांग उठती रही है। फ्रांस के मोलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट Gilles-Eric Seralini ने अपने अध्ययन में इस रसायन को तुरंत बैन करने की मांग भी की है। उनके मुताबिक, ये रसायन मानव स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है। लेकिन मोनसेंटे लगातार ऐसे आरोपों से इनकार करती रही है।

किसान स्वराज (आशा) की सदस्य कविथा कुरुगंति बताती हैं, ''ग्लायफोसेट पर कई राज्यों में रोक है। लेकिन भारत में पेस्टीसाइड के लिए बना कानून राज्यों को इस बात का अधिकार नहीं देता कि वो इसपर पूरी तरह से बैन लगा सकें। राज्य सरकार पेस्टीसाइड के नुकसाना देख पा रही है, लेकिन कानून उन्हें कदम उठाने से रोक देता है। जहां तक किसानों के पास विकल्प न होने की बात है तो ये भी राज्यों का मामला है। राज्य सरकारें किसानों तक विकल्प की जानकारी पहुंचा ही नहीं पा रहीं। वहीं, कंपनियां अपने एजेंट के माध्यम से पेस्टीसाइड गांव-गांव तक पहुंचा रही हैं। इसलिए विकल्प हैं, लेकिन उन्हें पहुंचाने वाला कोई नहीं हैं।''

कीटनाशकों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता कविथा कुरुगंति आगे बताती हैं, '' केंद्र सरकार पर भी पेस्टीसाइड लॉबी का बहुत दबाव है। इस कारण वो इनके रोक के प्रति कदम नहीं उठा पा रहे। उनका अभी भी मानना है कि पेस्टीसाइड के बगैर भुखमरी के हालात हो जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं है। कीटनाशक से कितना नुकसान हो रहा है इसे आप नकार नहीं सकते हैं। साथ ही ऑर्गेनिक खेती से भी कितनी अच्छी फसल हो रही है इसे भी नकारा नहीं जा सकता। केंद्र सरकार को अपनी धारणा को बदलने की जरूरत है।''

छत्तीसगढ़ में फर्टिलाइजर का कारोबार करने वाले पुनीत मिश्रा बताते हैं, ''किसानों को पता है कि राउंडअप उनकी सेहत के लिए सही नहीं है। इसके बावजूद वो इसे खरीद रहे हैं। हर साल इसकी खपत बढ़ती जा रही है। हमारे स्टॉक में ये बचता नहीं।''

जाहिर सी बात है किसानों को जल्दी और कम लागत में खेत साफ करने का इससे बढ़िया उपाय नजर नहीं आता, लेकिन फौरी तौर पर ये लाभ तो दे रहा है पर इससे उनकी सेहत और जमीन दोनों को ही नुकसान है।

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