0

ये है लाखों लोगों की जान बचाने वाला चमत्कारी चावल

गाँव कनेक्शन | May 31, 2018, 06:34 IST
ir 8 529 साल के नेकांति सुब्बा राव पहले ऐसे भारतीय किसान थे जिन्होंने चावल की इस असाधारण खूबियों को खोज निकाला था। अब सुब्बाराव 80 साल के हो गए हैं और मुस्कुराते हुए साल 1967 को याद करते हैं जब उन्होंने दक्षिण-पूर्वी राज्य आंध्र प्रदेश में अपने एक छोटे से खेत में आईआर 8 की खेती की थी।
#चमत्कारी चावल
नई दिल्ली। अभी तक आपने एक से बढ़कर एक पार्टियों के बारे में सुना होगा लेकिन क्या कभी आपने किसी फसल की बर्थडे पार्टी के बारे में सुना है…और वो भी बड़े तामझाम के साथ दिल्ली के एक शानदार पांच सितारा होटल में, क्यों चौंक गये ना? तो चलिए आज हम आपको उस फसल की दास्तान सुनाने जा रहे हैं जिसे लाखों की जान बचानेवाला 'मिरेकल राइस' का खिताब मिला है और जो आईआर 8 के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर है। उसी चमत्कारी चावल की किस्म का नाम है आईआर 8 जिसका पिछले दिनों पचासवां जन्मदिन धूमधाम से राजधानी दिल्ली में मनाया गया। दिल्ली के एक होटल में शानदार कार्यक्रम का आगाज तत्कालीन कृषि राज्य मंत्री सुदर्शन भगत ने किया और चमत्कारी चावल का परिचय देते हुए कहा कि यह भारत के इतिहास का महान क्षण है। और ये सुखद सच है कि अगर किसी फसल ने अपनी शानदार सफलता के 50 साल पूरे किये हैं तो वो है आईआर 8…।

कम पानी में धान की ज्यादा उपज के लिए करें धान की सीधी बुवाई

RDESController-2388
RDESController-2388


ir 8 529 साल के नेकांति सुब्बा राव पहले ऐसे भारतीय किसान थे जिन्होंने चावल की इस असाधारण खूबियों को खोज निकाला था। अब सुब्बाराव 80 साल के हो गए हैं और मुस्कुराते हुए साल 1967 को याद करते हैं जब उन्होंने दक्षिण-पूर्वी राज्य आंध्र प्रदेश में अपने एक छोटे से खेत में आईआर 8 की खेती की थी। मुगलों के जमाने की याद दिलाने वाले होटल के कमरे में सूकुन के पल बिताते हुए सुब्बाराव बताते हैं कि उस वक्त आप एक एकड़ में ज्यादा से ज्यादा सिर्फ डेढ़ टन अनाज के पैदा होने की ही उम्मीद कर सकते थे।

जब आईआर 8 आया तो फिर जैसे क्रांति आ गई और उत्पादन एक एकड़ में 10 टन तक पहुंच गया। सुब्बाराव ने बताया कि बाद के साल में उनके गांव से एक हजार हेक्टेयर से आईआर 8 के बीज पूरे भारत में भेजे गए। उस वक्त पूरे भारत में मिरेकल राइस अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रहा। सुब्बाराव उन दिनों की याद करते हुए बताते हैं कि वो बहुत बड़े बदलाव का दौर था और देश के सभी राज्यों के किसान बहुत खुश थे। सुब्बाराव जो पूरी दुनिया में मिस्टर आईआर 8 के नाम से मशहूर हैं उन्होंने अनजाने में ही एक बड़ी क्रांति शुरूआत कर दी थी। ऐसा माना जाता है कि आईआर 8 ने न सिर्फ लाखों लोगों की जिंदगी बचाई बल्कि उनकी जिंदगी भी बदलकर रख दी। पचास के दशक में एशिया महादेश जिसमे पूरी दुनिया की आधी आबादी रहती थी उस वक्त बड़े अन्न संकट से गुजर रहा था। इस इलाके के लोग पूरी कैलरी का 80 फीसदी हिस्सा चावल से पाते हैं।

अपने क्षेत्र के लिए विकसित धान की किस्मों का करें चयन, तभी मिलेगी अच्छी पैदावार

इस दिशा में साल 1960 में दो अमेरिकी चैरिटी संस्थान फोर्ड और रॉकफेलर फाउंडेशन ने बड़ा कदम उठाते हुए फिलीपींस में द इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईआरआरआई) की स्थापना की। चैरिटी संस्थान का मानना था कि पौधे के प्रजनन विज्ञान में विकास से दुनिया में होने वाली संभावित तबाही यानी भूख से बड़ी संख्या में मौत को टाला जा सकता है। नई टीम ने अब एक और अहम कार्य को हाथ में लिया है और वो था दस हजार किस्मों की क्रॉस ब्रीडिंग का कार्य। डॉ. गुरुदेव सिंह खुश का मानना है कि इस दिशा में कड़ी मेहनत की जरूरत है। डॉ. गुरुदेव कृषि और आनुवांशिकी विज्ञानी हैं जो उस टीम का अहम हिस्सा थे जिसने 1967 में आईआर 8 का विकास किया। उन्होंने बताया कि आमतौर पर हर साल पैदावार में एक से दो फीसदी का इजाफा हो रहा है।



धान नर्सरी डालने से पहले करें बीजोपचार, मिलेगी अच्छी उपज

ir 8 fourआईआर 8 धान की बिल्कुल अलग और अनूठी किस्म थी। आईआर 8 इंडोनेशिया (पेटा) की लंबी और उच्च पैदावार वाली किस्म और चीन (डीजीडब्लूजी) की छोटे कद वाली विविधता से भरपूर मजबूत किस्म का प्रभावकारी संकर है जिसने कमाल का परिणाम दिया। डॉ. खुश अपनी टीम की सफलता से आज भी हैरत में हैं और गर्व से बताते हैं कि कृषि के विश्व इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ जब एक कदम से चावल की पैदावार दोगुनी हो गई हो। चावल की दूसरी परंपरागत किस्म के मुकाबले आईआर 8 बेहतर वातावरण में 10 गुना ज्यादा पैदावार देती है। आईआरआरआई के मौजूदा अध्यक्ष मैथ्यू मोरल का मानना है अगर ठीक से काम करें तो आनुवांशिक विज्ञान कमाल का परिणाम देता है। उनका मानना है चमत्कार की वजह हाईब्रिड का छोटा होना है। सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा का अधिकांश हिस्सा इसकी पैदावार में सहायक साबित होता है। मैथ्यू मोरल बताते हैं कि एक पौधे से ज्यादा अनाज मिलता है और साथ ही खाद डालने के बाद भी इसकी लंबाई ना तो बढ़ती है और न ही ये दूसरी फसलों की तरह झड़ती है।

परंपरागत चावल की किस्म के मुकाबले आईआर 8 बेजोड़ है पूरे एशिया में इसका तेजी से प्रसार हुआ और इसके बेहतर परिणाम भी मिले हैं। यहां तक कि इसकी वजह से होने वाले अकाल भी टल गए। ज्यादा उत्पादन की वजह से जहां एक ओर किसानों को फायदा हुआ वहीं, इसके दाम में गिरावट की वजह से ग्राहकों को भी फायदा पहुंचा। इतना सब होने के बावजूद श्री मोरल का मानना है कि आईआर 8 संपूर्ण नहीं है। ir riceमोरल की असंतुष्टि के बावजूद आईआर 8 की सफलता संदेह से परे है और यही वजह है कि एशिया के अधिकांश किसान इस किस्म की खेती की ओर झुके। साथ ही ये भी साफ है कि कई इलाकों में इकलौते इसी किस्म की खेती की जाती रही है। हालांकि इससे जैव विविधता में कमी आई और तबाही का नया खतरा भी पैदा हो गया है। इसके पीछे ये तर्क दिया जाता है कि अगर कोई इस फसल में घातक कीड़ा या बीमारी लग गई तो बड़े विनाश का खतरा पैदा हो जाएगा। इस फसल के लिए इस्तेमाल होने वाले खाद की वजह से पर्यावरण को भी खतरा पैदा हो गया है।

बासमती की इस किस्म में नहीं लगेगा रोग, होगा अच्छा उत्पादन

RDESController-2389
RDESController-2389


इसके बाद अहम बात इसके स्वाद और संरचना की भी है। पकने के बाद आईआर 8 बिल्कुल सफेद और कड़ा हो जाता है। कहा जाता है कि इसकी मात्रा भले ही ज्यादा हो लेकिन ये स्वादिष्ट नहीं होता है। डॉ. खुश और आईआर 8 की टीम ने अन्न की गुणवत्ता बढ़ाने पर दो दशक तक जमकर पसीना बहाया। इसके बाद अन्न की गुणवत्ता में और सुधार आया और अब ये रोग और कीटाणु को और भी बर्दाश्त करनेवाला बन गया। इतना ही नहीं फसल के तैयार होने में लगने वाला वक्त भी कम हो गया। IR8_2हालांकि आज के दौर में अकाल का खतरा बेहद कम हो गया है लेकिन रिसर्च संस्थान आज भी चावल की नई किस्म के विकास के लिए लगातार कार्य कर रहा है। विश्व की नई चुनौतियों से मुकाबला करने के लिए रिसर्च जारी है। शोध का ज्यादा जोर इस बात पर है कि चावल की एक ऐसी नई किस्म ईजाद की जाए जो मौसम के बदलाव का मजबूती से मुकाबला कर सके। श्री मोरल ने बताया कि आईआरआरआई सूखा, बाढ़, नमक और तापमान को बर्दाश्त कर सकने वाली चावल की नई किस्म पर कार्य कर रहा है। इतना ही नहीं शोध में इस बात भी काम चल रहा है कि चावल की नई किस्म के विकास से कुपोषण से लड़ने में भी कारगर साबित हो।

तथाकथित विवादित 'गोल्डन राइस' किस्म के विकास में आईआरआरआई ने अहम रोल अदा किया था। आनुवांशिक तौर पर तैयार की गई चावल की वही किस्म है जो विटामिन ए की कमी को दूर करता है। गौरतलब है कि इसी विटामिन ए की कमी से हर साल पांच साल से छोटे 6 लाख 70 हजार बच्चों की मौत हो जाती है। और संस्थान अब एक ऐसी किस्म के विकास में भी लगा है ताकि ज्यादा खाना खाने की समस्या से भी निपटा जा सके।

Good News : चटाई पर धान बोकर बचाएं 30 फीसदी लागत

एशिया में मधुमेह की बड़ी समस्या है और इससे निपटने के लिए भी आईआरआरआई ने बड़ा काम किया है। संस्थान ने एक चावल की एक ऐसी किस्म तैयार की है जिसमे ग्लाइसेमिक की मात्रा कम होती है। इसका मतलब ये है कि जब खाना पच जाता है तब चावल ऊर्जा को धीरे-धीरे निकालता है और जिससे ब्लड सुगर की मात्रा को स्थिर रखने में मदद मिलती है। और यह सबको पता है कि यह मधुमेह प्रबंधन का अहम हिस्सा है। डॉ. खुश बड़े गर्व से बताते हैं कि आईआर 8 ने लाखों लोगों की जिंदगी को बदल रख दिया है। एशिया की आबादी करीब साढ़े चार अरब की है और यहां अधिकांश लोग चावल पसंद करने वाले लोग हैं। हरित क्रांति के बाद से चावल के दाम में आधी गिरावट आई है। एक आंकड़े के मुताबिक 1980 में एशिया की आबादी का जहां 50फीसदी हिस्सा भूखा था वहीं, आज ये आंकड़ा गिरकर महज 12 फीसदी रह गया है। ये उपलब्धि आईआर 8 के लिए ऐतिहासिक है जिसे विश्व इतिहास कभी भूल नहीं सकता।

साभार: इफको लाइव

आमदनी बढ़ाने का फार्मूला : थाली ही नहीं, खेत में भी हो दाल - चावल का साथ

सात राज्य ही उगा सकेंगे बासमती धान का बीज

Tags:
  • चमत्कारी चावल
  • आईआर 8 चावल
  • इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट
  • Miraculous rice
  • ir8 rice

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.